संत सा जीवंत जिसका राष्ट्रहित संकल्प
संत सा जीवंत जिसका राष्ट्रहित संकल्प
क्या बिगाड़ेगा अनर्गल शाब्द दूषक जल्प।
कभी अपने स्वार्थ में मुह तक न खोला है
चित्त जिसका तल्ख बाणों से न डोला है।
उस महत्तम सिंधु की सम्पन्नता का स्वर
प्राप्त है सेवा सु्रक्षा का परीक्षित वर।
देश की धरती प्रफुल्लित पा उसे अब तक
दुष्टता का दौर आखिर चले भी कब तक।
न्याय पथ का सधा राही न्याय चाहेगा
जन प्रवंचक सदा ही अन्याय चाहेगा।
राष्ट्र सेवक राष्ट्र को समृद्ध कर इतना
शत्रुओ ं को देश में मुश्क़िल लगे रहना।
आंधियां आती रहेंगी लौट जाएंगी
अस्मिता अक्षुण्ण हो फिर प्रभा लाएंगी।
जग उठा है कमलवन सा देश काअब शौर्य
तुम दिवाकर,नए भारत का नया हो मौर्य।।
डा रामकृष्ण
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