बितते फाग (मगही कविता)
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
बितते फाग।
बरसे आग।।
जिनगी बनल-
भगम भाग।।
अबके रिश्ता
बनल काग।।
मन पिआसल-
सुखल तडाग।।
बढल हे द्वेष-
जइसे झाग।।
आपसी प्रेम के-
टूटल ताग।।
जेकरा के देखs-
ओकरे में दाग।।
डांस रहल हे-
विषधर नाग।।
दिखs हे लहलह-
बबूर के बाग।।
कहीं मिले ना-
अब अनुराग।।
खा हथ अब सब-
सब्जी बिन साग।।
जरनिआह जग-
अप्पन आग।।
वलिदाद अरवल(बिहार)
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