
इस बार की सूर्यसप्तमी : शाकद्वीपीय जागरण के शुभ संकेत
प्रस्तुति : बिबेका नन्द मिश्र
मैंने पहले भी कई बार कहा है और अब भी कह रहा हूँ । स्वयं या स्वयं के समाज के उन्नयन हेतु प्रयास करने में कुछ भी गलत नही है। सभी जातियों या धर्म के लोग ऐसा करते हैं और करना भी चाहिए । कोई गोवर्धनपूजा या चित्रगुप्तपूजा के बहाने अपना गौरव बढ़ाने का प्रयास करता है तो कोई भिखारी ठाकुर, अम्बेडकर या वाल्मीकि या गुरुगोविंद सिंह में अपने सशक्तिकरण का सूत्र ढूंढता है। कोई ब्रहर्षिपूजा करता है , कोई विद्यापति जयंती मनाता है तो को भगवान परसुराम में अपना स्वाभिमान ढूंढता है। अर्थात सभी अपने समाज को उन्नत करना चाहते हैं और करना भी चाहिए । अपनी जाति या समुदाय के सशक्तिकरण के इन प्रयासों से परोक्ष रूप से भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का पोषण व संवर्धन समृद्धि को प्राप्त होता है जो कि अंततः राष्ट्रीय ऐक्य या वसुधैव कुटुम्बम्म की अवधारणा को ही बल प्रदान करता है।
शाकद्वीपीय ब्राह्नण चूंकि सूर्योपासक जाति है , और सूर्याराधना से हमारा गहरा नाता है तो ज़ाहिर है कि इस एकमात्र साक्षात देवता के पूजन में हम या हमारे पूर्वज सतत सजग रहे हैं । प्रत्येक वर्ष सूर्यसप्तमी की पूजा हम करते हैं और अपने आराध्य के प्राकट्योत्सव को सेलिब्रेट कर अपने गौरव व सवाभिमान को संपुष्ट करते हैं । इसी प्रकार इस वर्ष की सूर्य सप्तमी भी हमने मनाई ।
किन्तु, मुझे एक कहने में बहुत हर्ष हो रहा है कि इस बार की सूर्य सप्तमी कुछ अलग ही रंग की थी । ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मगवाणी संयोजक के नाते इसबार मैंने देश भर के सूर्यसप्तमी-आयोजनों को क़रीब से देखा है या यूं कहें कि कवर किया है। क्या गाँव या क्या कस्बा ,क्या शहर या क्या महानगर , क्या पूरब या क्या पश्चिम ; भारत का हर कोना सूर्य सप्तमी के रंग में रंगा हुआ दिखा । कहीं एक दिन का कार्यक्रम तो कहीं दो दिनों का तो कहीं सप्ताह भर का आयोजन । हर तरफ सूर्य ही सूर्य । हर तरफ शाकद्वीपीय उल्लास । हर तरफ स्वजातीय जागरण ।
भगवान भास्कर के जन्मोत्सव पर कहीं साप्ताह्पर्यंत कथा चली तो कहीं भव्य रथयात्रा निकाली गई । कहीं 108 शंखों से सूर्य का अभिषेक हुआ तो कहीं सूर्यध्वज फहराया गया । कहीं अनवरत सांस्कृतिक कार्यक्रम चले तो कहीं प्रभात फेरी निकाली गयी । किसी संस्था ने भाषण प्रतियोगिता के बहाने समाज को जगाया तो किसी ने शाकद्वीपीय विभूतियों को सम्मानित किया। कुल मिलाकर समूचा देश सूर्यसप्तमी से जुड़ा रहा ।
सबसे बड़ी बात रही कि अपने इन प्रयासों को सोशल मीडिया या मगवाणी में प्रसारित करवाना भी मानो इन कार्यक्रमों का ही एक हिस्सा था। किसी ने फोटो भेजी, किसी ने वीडियो भेजी तो किसी ने अपने प्रयासों या कार्यक्रमों के प्रकाशन की कतरनें भी हम तक भेजीं । कुलमिलाकर ये सारे लक्षण शुभ हैं । शाकद्वीपीय जागरण के लिहाज़ से । स्वजातीय उत्थान के दृष्टिकोण से । अपनी जड़ों से जुड़ते नौनिहालों में पनपते प्रेम के आलोक में।
आज जबकि आधुनिक शिक्षा में जाति व धर्म से ऊपर उठने की बात सिखाई जाती है ,ऐसे में बच्चों के संस्कारों में अपनी विरासत या अपनी जड़ों के बीज अंकुरित करना कठिन चुनौती है। इन चुनौतियों से निपटने के आलोक में सूर्यसप्तमी कदाचित हमारी मदद करती दिखी या दिख रही है।
तो, आइये अपनी इस पारम्परिक धरोहर को सजो कर रखने का प्रण लेते हैं । अपने समाज को समृद्ध करने का व्रत लेते हैं । अपने बच्चों को अपने समाज मे ही जोड़े रखने का संकल्प लेते हैं । जय सूर्यसप्तमी । जय भास्कर ।
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