मारीच
(अणु राम काव्य)
घुम रहा है-
सजाकर रुप।
कुकर्मी नीच-
मारीच।१।
हां! हां! वही-
जिसे देख वैदेही।
चाहिए मृग चर्म-
प्रभु राम से कहीं२।
राम ने समझाया,
निशाचरों की माया।
वह जिद कर बैठी-
तब शर चाप उठाया।३।
लक्ष्मण को कहे,
रखना कड़ी सुरक्षा।
और दौड़ पड़े पीछे-
जानकर विधि इच्छा।४।
वह कपटी मृग,
राम को देख भागा।
करता रहा लुक-छिप,
वो मायावी अभागा।५
सब जानते हुए भी,
राम पीछा करते रहे।
समय-समय पर वे-
निशाना साधते रहे।६।
बार-बार देखता,
हैं कैसे मेरे राम।
प्रभु विलोकते रहे-
होकर मुक्तिधाम।७।
उचित समय जान,
किये बाण संधान।
लक्ष्य वेधकर वह-
आया स्वस्थान।८।
लगते उर में बाण,
बोला राम धीरे।
हा सीते!हा लक्ष्मण-
अवनी अंबर को चीरे।९।
जब सीता ने सुनी-
विचार ली अनहोनी।
बोली लक्ष्मण से-
जल्दी जाओ शेष योनि।१०।
लक्ष्मण भी समझाया,
पर समझी नहीं सीता।
क्षण भर के लिए तो-
वह बन बैठी कुपिता।११।
भला बुरा कह डाली,
उरग और कुचाली।
विषम परिस्थिति जान,
एक रेखा खींच डाली।१२।
और हाथ जोड़ कहे-
मत आइएगा बाहर।
जबतक हमलोग-
लौट न आएं सादर।१३।
राम मायावी के पीछे थे,
लक्ष्मण माया पति के।
समय ने खेल रचकर-
भ्रम में डाली सुमति को।१४।
एक प्रभु को खोजते हैं,
एक को खोजते हैं प्रभु।
नेति नेति कहता है वेद-
अज,अनादि,अनंत,विभु।१५।
स्वयं का उद्धार किया,
माया और ब्रह्म के बीच।
लोग जो कुछ समझ ले-
पर बडभागी है मारीच।१६।
जिसके पीछे-पीछे,
दौड़ते रहे भगवान।
वह दिव्य आत्मा है-
ठीक परमात्मा समान।१७।
भले क्षणभर कह लो,
उसे मायावी,दुष्ट,नीच।
धन्य है काया की माया,
और धन्य हैं वह मारीच।१८।
जो सीता को भ्रमित किया,
और राम को किया चकित।
लोग कुछ भी कहते रहे पर-
कहता 'मिश्रअणु' यथोचित।१९।
--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
वलिदाद,अरवल(बिहार
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1 टिप्पणियाँ
अद्भुत लेखनी है आपकी विप्रवर।।
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