दस जनवरी विश्व हिन्दी दिवस पर हिन्दी के दोहे
'कबिरा'घर खेली पली,होकर बड़ी निहाल
ठुमक-ठुमक चलने लगी,'सूरा'की तुक-ताल
'मीरा' होकर के मगन,धरै न धरती पाँव
नज़र न लग जाए कहीं,दी आँचल की छाँव
'दास नरोत्तम' ही नहीं,'रहिमन'आदि प्रमाण
'खुसरो' ने डाली यहाँ,है हिन्दी में जान
'भूषण'की भाषा बनी,तेज धार तलवार
गाया 'तुलसीदास' ने, घर-घर पाया प्यार
सहज सरल भाषा वही,जो देती रस घोल
अंतस स्वयं टटोलिए,हिन्दी- हिन्दी बोल
हिन्दी का पर्याय हैं, और दूसरा कौन
देती सब सम्मान हैं,भाषाएं हो मौन
यात्रा तो लंबी रही,किन्तु न मानी हार
सब भाषाओं का रहा,संस्कृत ही आधार
सात समुन्दर पार तक,पहुंच गयी है धाक
हिन्दी का जादू चला ,बगल रहे सब झांक
हिन्दी वाले लोग कुछ,होते बडे़ कृतघ्न
अवसर मिलता है जहाँ,अंग्रेजी संग जश्न
हिन्दी हिन्दुस्तान की,भाषा है अनमोल
देख प्रगति सब देश ने,द्वार दिए हैं खोल
*
~जयराम जय
'पर्णिका,'11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,
कल्याणपुर, कानपुर-208017(उ प्र)
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