
हो मौन सहूँ क्या?
अंदर से कुछ,बाहर से कुछ,
ऐसे लोगों को कहूँ क्या?
चलते घटिया चाल जो जग में,
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या??
ऐसे ही सम्मान हैं पाते।
दुनिया को हैं मूर्ख बनाते।
साधारण जन भोले-भाले।
कवियों के मुँह पर हैं ताले।
सबकी चालें समझ रहा हूँ,
बोलो,फिर भी मौन रहूँ क्या-
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या?
परिवर्तनकामी जो जग में,
बिछे हैं काँटें उनके मग में।
उनकी राह सरल ग़र होती,
तब दुनिया ऐसे ना रोती।
कठिन राह है मेरी लेकिन,
घटिया लोगों के चरण गहूँ क्या-
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या?
-मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
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