Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हो मौन सहूँ क्या?

हो मौन सहूँ क्या?

अंदर से कुछ,बाहर से कुछ,
ऐसे लोगों को कहूँ क्या?
चलते घटिया चाल जो जग में,
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या??

ऐसे ही सम्मान हैं पाते।
दुनिया को हैं मूर्ख बनाते।
साधारण जन भोले-भाले।
कवियों के मुँह पर हैं ताले।
सबकी चालें समझ रहा हूँ,
बोलो,फिर भी मौन रहूँ क्या-
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या?

परिवर्तनकामी जो जग में,
बिछे हैं काँटें उनके मग में।
उनकी राह सरल ग़र होती,
तब दुनिया ऐसे ना रोती।
कठिन राह है मेरी लेकिन,
घटिया लोगों के चरण गहूँ क्या-
उनको हो मैं मौन सहूँ क्या?
     -मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |www.divyarashmi.com

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ