शेर की सवारी
-- वेद प्रकाश तिवारी
भूखे शेर पर सवार होकर
निकल पड़ा हूँ लंबी यात्रा पर
नहीं है मेरे पास सिवाय इसके
यात्रा का कोई दूसरा साधन
वह करता है मुझे
बार- बार जख्मी
क्योंकि,शेर को लगाम
नहीं दी जा सकती
मैं कुछ सुखी हड्डियाँ
फेंक देता हूँ उसके सामने
और बचा लेता हूँ अपने को
उसका निवाला बनने से
इसी तरह करता हूँ मैं
अपनी रोज की यात्रा पूरी
ये हड्डियाँ उन लोगों की हैं
जिन्होंने की थी विवशतावश
इसी भूखे शेर की सवारी ।
-- वेद प्रकाश तिवारी
देवरिया (उ०प्र०)
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