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मानव के मौलिक अधिकारों का सशक्त माध्यम मानवाधिकार

मानव के मौलिक अधिकारों का सशक्त माध्यम मानवाधिकार 

 
जहानाबाद । मानव के मौलिक अधिकारो तथा स्वतंत्रता का सशक्त माध्यम मानवाधिकार है । मानव अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं की गणना नागरिक और राजनैतिक अधिकार तथा  जीवन और आजाद रहने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून की समानता , आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ ही साथ सांस्कृतिक अधिकार एवं शिक्षा का अधिकार है । सच्चिदानंद शिछा एवं समाज कल्याण संस्थान द्वारा  विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर आयोजित  मानवाधिकार संगोष्टी के अवसर पर  जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन जहानाबाद के उपाध्यछ साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने  कहा है कि प्राचीन  धार्मिक , दार्शनिक ग्रंथों में  मानवाधिकार की प्रमुुखता  है। मगध सम्राट अशोक के आदेश पत्र, मुहम्मद साहेब द्वारा निर्मित मदीना का संविधान , मानवाधिकार कानून तथा 1525 ई. का  द ट्वेल्व आर्टिकल्स ऑफ़ द ब्लैक फॉरेस्ट यूरोप में मानवाधिकारों का उलेख है।  जर्मनी के किसान - विद्रोह  सोवियत संघ के समक्ष उठाई गई किसानों की मांग का हिस्सा है। ब्रिटिश बिल ऑफ़ राइट्स ने युनाइटेड किंगडम में सिलसिलेवार तरीके से सरकारी दमनकारी कार्रवाइयों को अवैध करार दिया था । 1776 में संयुक्त राज्य में और 1789 में फ्रांस में 18 वीं शताब्दी के दौरान दो प्रमुख क्रांतियां घटीं जिसके फलस्वरूप क्रमशः संयुक्त राज्य की स्वतंत्रता की घोषणा एवं फ्रांसीसी मनुष्य की मानव तथा नागरिकों के अधिकारों की घोषणा का अभिग्रहण हुआ। क्रांतियों द्वारा  निश्चित कानूनी अधिकार की स्थापना की गयी थी। मानवाधिकारों की सार्थकता प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारी और गैर सरकारी मानवाधिकार संगठनों के  मानवाधिकारों का परिदृश्य तमाम इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार मानवाधिकार है। भारतीय संविधान में मानव अधिकार की गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को अदालत सजा देती है।'संयुक्त राष्ट्र संघ' के मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के पश्चात विश्व में मानवाधिकार प्रारंभ किये गए है । मैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क शहर में मानवाधिकार  के लिए न्यूयॉर्क , संयुक्त राज्य  ,भारत आदि  देशों के 192 सदस्य शामिल है । संयुक्त राष्ट्र मानव की गरिमा और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार के लिए प्रयत्न हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार की। एलेनोर रूजवेल्ट और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1949 ई. में की गयी है ।इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया।10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। मानवाधकार के  सदस्य देशों अथवा प्रदेशों की राजनैतिक , सामाजिक स्तर पर पर बल दिया गया है । मानवाधिकार के उद्देश्यों को सामाजिक चेतना जगाने के लिए मानवाधिकार जागरूता अभियान  के लिए कार्यशाला , प्रदर्शिनी , वाद विवाद प्रतियोगिता , बैठक आदि कार्य करना चाहये । मानवाधिकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए  सामाज के प्रबुद्ध साहित्यकारों , इतिहासवेताओं , पत्रकारों , समाज सेवियों , जनप्तिनिधियों , पदाधिकारियों तथा न्याय विदों की भूमिका महत्वपूर्ण है । ईस अवसर पर डॉ . विवेकानंद मिश्र , अधिवक्ता पप्पु कुमार , संस्थान के कार्यक्रम पदाधिकारी उर्वशी आदि ने अपने अपने विचार प्रकट किए ।
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