अब आ रहलो नयका साल (मगही कविता)

अब आ रहलो नयका साल (मगही कविता)

बडी सतौलक  बीस बिसहुआ
अब आरहलो नयका साल
का जानी ई का -का करतो
अखनी तो हौ हाल, बेहाल।।
केतनन नेता ,जनता कॅ॑हरित
पार हो गेलन दुनिया से
कोरोना के मरकट सोंटा
सगरो चललो बढ़िया से।।
कुर्सी कुर्सी खेल खेल के
सींग भिड़ौले नेता लोग
बन सेबकिया ऐन बखत में
परदे नुकल बढ़ेता लोग।।
ई तो बढ़िया भेल ,रामजी
भूम विवाद मेटा देलन
अखबद के तकरार मिंझाके
सब जन के हुलसा देलन।।
बाकी सिच्छा रोजगार के
जाम लगल कंगाली में
जे कमगरुआ हे असगरुआ
हाफ रहल बदहाली में।।
अइसे तो सरकारी सदाबरत में
चाउर गेहुम,बूट
लेकिन बिच्चे झपटन टोली
हरिअर रूख बनगेलक ठूंठ।।
      आ रहलो अब नया बरिस
       स्वागत में संख बजाबीजा
      नीके-सुखे रहथ सब लोगन
      देवी देव मनाबी जा।।
      हम तो मनवऽही समाज में
       हंसी खुसी‌‌के छानी तर
      सबके बसे घरौंदा जगमग
      अंचरा ,गोदी,सान्ही,घर।।
रामकृष्ण/गया
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