बिहार के युवाओं के लिए एक बेहतर स्टार्टअप विकल्प है - प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पादों का उद्यम

बिहार के युवाओं के लिए एक बेहतर स्टार्टअप विकल्प है - प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पादों का उद्यम 


पॉलिमर आधारित पॉलिथीन से बने थैले आधुनिक जीवन शैली का अभिन्न अंग बन चुका है और यह पर्यावरण के बेहद खतरनाक है।पर्यावरण की रक्षा एवं मानव के स्वास्थ्य के लिए इसका प्रतिबंधित उपयोग आवश्यक है। परंतु इसका बाज़ार स्थापित हो चुका है । प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल थैला इसके एक बेहतर विकल्प के रूप मे सामने आया है जो प्राकृतिक परिस्थितियों में अपघटनीय है। 

प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद (थैला ) विषय पर आयोजित एक वेबिनार में इस पर चर्चा के दौरान है वक्ताओं ने कहा कि केला, आलू, मक्के इत्यादि के सह उत्पाद से बने यह थैले ना सिर्फ सस्ते होते हैं बल्कि प्रदूषण रोकने एवं जमीन की उर्वरकता को भी बढाते हैं। वेबिनार का आयोजन भारत सरकार, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास संस्थान, पटना द्वारा DSCRD इंक्यूबेशन सेंटर के सहयोग से आज किया गया। वेबिनार के वक्ताओं ने बताया कि ये थैले मिट्टी मे डालने के बाद खाद में परिवर्तित हो जाते है। प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद से न केवल थैले बल्कि कई तरह के शीट, बैग, और पैकिंग मटेरियल आदि भी बनाए जा सकते हैं। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास संस्थान, पटना के निदेशक (प्र.) श्री विश्व मोहन झा ने की। अपने संबोधन मे उन्होने कहा की आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहा है। इसके कई कारण हो सकते हैं, परंतु सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग इसके सभी कारणों मे प्रमुख है। यह न सिर्फ धरती की सतह के ऊपर रहकर गंदगी फैलाने मे बल्कि धरती की सतह के नीचे जाकर भी जमीन की उर्वरा शक्ति को कमजोर करता है। इसकी वजह से आज पूरा विश्व जगह-जगह अपर्याप्त वर्षा, असामान्य तापमान, ग्लेशियर का पिघलना इत्यादि अनेक प्रकार की समस्याएँ झेल रहा है। इससे निजात पाने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक का एक बेहतर विकल्प प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद है। यह कार्यक्रम मुख्य उद्देश्य इस उत्पाद की संभावनाओं को तलाशना है ताकि बिहार मे इस पर आधारित नए उद्यमों का सृजन किया जा सके। इससे न सिर्फ कोरोना काल मे बेरोजगारी की समस्या से लड़ने मे सहायता मिलेगी बल्कि एक इन्नोवेटिव उत्पाद का विकल्प भी मिलेगा। उन्होने सभी उद्यमियों, युवाओं, बैंकों एवं अन्य स्टेक होल्डर्स से इस उद्यम को बढ़ावा देने के लिए आगे आने की अपील भी की। 

इस मौके पर DSCRD इंक्यूबेशन सेंटर के अध्यक्ष श्री संजीव श्रीवासत्व ने कहा की लॉकडाउन से उत्पन्न विपरीत परिस्थितियों से निजात पाने के लिए अब बहुत ही आवश्यक हो गया है कि बिहार के उद्यमी एवं युवा नए प्रकार के उद्यमों कि राह पर आगे बढ़ें, तभी बिहार आत्मनिर्भर बन सकता है। इसके लिए बिहार के युवाओं मे उद्यमी बनने की ललक जगाने की आवश्यकता है। बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद का प्लांट लगा कर उद्यमी बनने और आपदा को अवसर मे बदलने का यह बेहतर मौका है। भारत सरकार एवं राज्य सरकार के विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाते हुए DSCRD इंक्यूबेशन सेंटर ऐसे युवाओं को प्लांट लगाने संबंधी इंजीनियरिंग, मशीनरी, बैंकिंग, इस उद्योग से संबन्धित प्रशिक्षण इत्यादि आवश्यकताओं को पूरा करने मे उनकी मदद करने को प्रतिबद्ध है। इस कार्यक्रम का संचालन सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विकास संस्थान, पटना के सहायक निदेशक श्री संजीव कु. वर्मा ने किया। कार्यक्रम में संस्थान के सहायक निदेशक श्री नवीन कुमार एवं श्री रवि कान्त के साथ पूर्व निदेशक श्री डी. के. सिंह ने भी भाग लिया एवं प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया। इस कार्यक्रम में तकनीकी विशेषज्ञ मो. सिराजुद्दीन, चार्टर्ड अकाउंटेंट श्री राहुल कुमार, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और केनरा बैंक के अधिकारियों ने भी भाग लिया और प्राकृतिक स्टार्च पर आधारित बायो-डिग्रेडेबल उत्पाद की इकाई लगाने के इच्छुक उद्यमियों को आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करने की प्रतिबद्धता जताई। कार्यक्रम का समापन श्री संजीव कु. वर्मा, सहायक निदेशक के धन्यवाद ज्ञापन के साथ सम्पन्न हुआ। 
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