
सब वादे भूले जैसे हैं
प्रगति हुई
कुछ गाँव हमारे
बस वैसे के ही वैसे हैं
छप्पर वही
वही कोठरियाँ
इधर-उधर लटकी पोटलियाँ
बातें रहे
बनाते हरदम
वही कहानी वाली परियाँ
नयी योजना
फिर लाए हैं
आएंगे शायद पैसे हैं
जाँचे हुईं
'कमीशन'लेकर
खुश कर देते पट्टे देकर
खाना-पूरी
करके केवल
ग्राम सभा वटवाए ऊसर
लागत भर
मुश्किल पैदा हो
मूढ़ बने जैसे-तैसे हैं
बस वादों के
हैं आवर्तन
युग सापेक्ष हुए परिवर्तन
धेला भर का
काम न करते
झूंठ-मूठ के महा प्रलोभन
सत्तासीन
हुये हैं जबसे
सब वादे भूले जैसे हैं
*
~जयराम जय
पर्णिका,11/1,कृष्ण विहार आ वि
कल्याणपुर कानपुर -208017(उ प्र)
मो नं 9415429104;9369848238
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