शनि
ग्रह ::: कुछ विशेष बातें
नीलाञ्जनसमाभासंविद्युतकान्तिसमप्रभम्,
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
(१) शनिदेव एक कठोर और ईमानदार न्यायाधीश की तरह हैं।हालाकि इनके सम्बन्ध में
अनेक भ्रान्तियाँ हैं।सच्चाई यह है कि इनके शासन काल में मनुष्य का सम्यक् रुप से
परिमार्जन(बाहर-भीतर की सफाई जैसी) होता है;न कि ये दुष्ट
प्रकृति के हैं।अतः इनके प्रभाव क्षेत्र(शासन-काल) से घबराना नहीं चाहिए।बल्कि,शान्त चित्त होकर यथोचित जप-हवन-स्तोत्र पाठ आदि में संलग्न रहना
चाहिए।संसारिक वस्तुओं में ये नौकर(सेवक) का प्रतिनिधित्व करते हैं।नौकर आदि को
अपनानित करने से, मजदूरी में कटौती करने से शनिदेव कुपित
होते हैं।अनुकूल स्थिति में अति प्रसन्न भी होते हैं। उड़द,तिल,नीले वस्त्र, लोहा, सोना,
नीलम, नीली आदि इनके प्रिय पदार्थ हैं।शमी
इनकी प्रिय संमिधा है। वास्तु मंडल में मध्यपश्चिम इनका वास स्थान है।वरूण इनके
सखा हैं।वात इनकी प्रकृति है।अस्थि इनका धातु है।मेष इनकी नीच और तुला उच्च राशि
है।इनकी जप-संख्या २३००० है। जप के बाद दशांश हवन शमी की लकड़ी(मध्यमा अंगुली के
बराबर)और घी से करना चाहिए।उतना हवन न कर सकने की स्थिति में दशांश का दुगना
अर्थात् चार हजार छःसौ अतिरिक्त जप करके,पुनः मात्र एक सौ आठ
शमी के टुकड़े और घी से हवन कर लेने से भी कार्य सम्पन्न हो जाता है। जप का आरम्भ
किसी शनिवार संध्या समय (पश्चिम मुख बैठ कर)ही प्रारम्भ करना चाहिए,और नित्य समान संख्या में ही होना चाहिए।अन्तिम दिन शेष जप न्यूनाधिक हो
सकता है,जैसे दो हजार नित्य का क्रम रखते हैं तो बारहवें दिन
शेष एक हजार ही करना रह जायेगा।उसी दिन हवन कर देने से अग्नि विचार नहीं करना
पड़ता है।व्यवधान हो जाने पर हवन के लिए अग्नि का वास विचार करना पड़ता है।
(२) कुण्डली में जब ये मारकेश की भूमिका में हों यानि- दूसरे,सातवें, आठवें और बारहवें घर के स्वामी हों तो इनसे
सम्बन्धित वस्तुओं का दान प्रायः अशुभ फल देता है।यानी दान जैसा पुण्यकर्म भी
सोच-विचार कर करना चाहिए।तुला राशि पर,अथवा लग्न में हों तो
भी दान का अशुभ फल होगा। प्रायः हनुमानजी की आराधना से शनि को शान्त किया जाता है;
किन्तु यह आंशिक सत्य है।प्रत्येक व्यक्ति को इस उपाय से लाभ हो ही
जायेगा- आवश्यक नहीं है।कुण्डली की हर स्थिति में यह क्रिया उचित नहीं है।मान लिया
कि किसी की जन्म कुण्ली में तुलाराशि के यानी उच्च के शनि लग्न में बैठ कर उसके
पराक्रम,पत्नी,और भाग्य भाव को पीड़ित
कर रहे है,वैसी स्थिति में हनुमानजी की आराधना से विपरीत फल
मिलेगा, यानी शनि प्रसन्न होने के वजाय कुपित होकर और परेशान
करेंगे।महाराज दशरथ और रामभक्त हनुमान से शनि बचन बद्ध हैं,उनसे
भयभीत भी। स्वाभाविक है कि किसी से भय दिखाकर कराया गया कार्य बिलकुल सही ही हो-
कोई आवश्यक नहीं।हनुमानजी की आराधना से शनि को दबाने की बात तब आती है जब नीच
राशि(मेष)के शनि किसी भाव फल को विकृत कर रहे हों।दूसरी बात है कि उक्त परिस्थिति
में अधिक मात्रा में शनि की वस्तुयें दान करने से भी गलत प्रभाव ही
पड़ेगा।तात्पर्य यह है कि किसी भी ग्रह का गहन छानबीन करके ही उपचार करना चाहिए।और
गहन विचार विशेष जानकार ज्योतिषी ही कर सकता है।
(३) आमतौर पर लोग सीधे राय दे देते हैं- शनि को प्रसन्न या शान्त करने के लिए
नीलम धारण करने के लिए; किन्तु मेरा कथन है कि यह एक बहुत ही
जोखिमभरी राय है,अनजाने में बालक को बारुद पर बैठा देने
जैसी।कई चरणों के गहन अध्ययन और परीक्षण के बाद ही नीलम धारण करना चाहिए।धारण से
पूर्व रत्न-परिष्कार,संस्कार और अभिमंन्त्रण भी अति आवश्यक
है।
(४) समाज में एक और प्रचलन है- कुछ भी,किसी भी ग्रह जनित
पीड़ा हो- सीधे सवालाख महामृत्युञ्जय जप,या रुद्राभिषेक
कराने की बात की जाती है।यह ठीक है कि महामृत्युञ्जय और रुद्राभिषेक एक अमोघ
मन्त्र है,किन्तु इसका उपयोग सोचविचार कर करना श्रेयस्कर
है।मुखिया से होने वाले कार्य के लिए मुख्यमंत्री के पास दौड़ लगाना नादानी ही कही
जायेगी।दूसरी बात यह कि परिणाम में भी विलम्ब होगा,या अर्जी
ही नामंजूर हो जा सकती है।सैकड़ों मामलों में मेरा अनुभव है कि कम खर्च और कम समय
में जो काम सीधे प्रभावित ग्रहों का जप-हवन,स्तोत्र-पाठ आदि
करके प्राप्त होता है,वह लाख महामृत्युञ्जय या रुद्राभिषेक
से नहीं होता।ये दोनों बाद के अस्त्र हैं,प्रारम्भ के नहीं।
(५) शनिदेव की प्रसन्ना और शान्ति दोनों कार्यों में महाराज दशरथ कृत
शनिस्तोत्र भी बड़ा ही लाभकारी है। मात्र दस-बारह मिनट का यह पाठ किसी शनिवार की
रात्रि सोते समय सीधे विस्तर पर,पश्चिम या उत्तरमुख बैठकर
करना प्रारम्भ करे,और नित्य समुचित समय पर किया करे।अधिक पाठ
कर सके तो नित्य तेईस पाठ का क्रम रखा जाय,और लागातार तेईस
दिनों तक अवश्य चलाया जाय।इसके बाद हो सके तो जारी रखे या एक सौ आठ आहुति शमी की
लकड़ी और घी से देकर क्रिया समाप्त कर दे।पुनः सुविधानुसार किसी शनिवार से
प्रारम्भ किया जा सकता है।ध्यातव्य है शनि की चाल सतरंज के घोड़े की तरह है।बारह
राशियों में प्रायः राशियां न्यूनाधिक रुप से हमेशा इनके गिरफ्त में रहती ही है,अतः यथाशक्ति इनकी आराधना निरन्तर करनी चाहिए।
(६) शनिवार को पीपल में जल देने,सायंकाल में दीपदान करने
का भी अच्छा फल है।जल देने के लिए ध्यान रहे कि जलपात्र पीतल या अन्य धातु का हो,तांबे का नहीं,क्यों कि तांबे में गुड़ मिश्रित जल
रखना मदिरा तुल्य हो जाता है,और मदिरा शनि को ग्राह्य नहीं
है।दीपक तिल तेल का होना चाहिए। शनिवार को दही और काला साबूत उड़द पत्तल के दोने
में रख कर जल सहित पीपल के जड़ में अर्पित करना भी अति लाभदायक है।इन सभी कर्मों
में शनि का तान्त्रिक वा पौराणिक मन्त्र मानसिक रुप से चलता रहना चाहिए।
(७) शनि की प्रसन्नता और शान्ति के लिए लोग सामान्य लोहे की या घोड़े के नाल,या नाव से निकाली गयी कांटी से बनी अंगूठी पहनते हैं।इस विषय में भी कुछ
बात जान लेने जैसी है- सामान्य लोहे की अंगूठी तो किसी भी तरह से बनाई जा सकती है,किन्तु नाल वा नाव की कांटी का उपयोग करने के लिए उसे गरम करके
काटने-पीटने से बिलकुल ही गुणहीन हो जाता है।यानी नाल य़ा कांटी को बिना गरम किये
ही छेनी और रेती के सहारे अंगूठी बनना चाहिए,तभी उचित फलदायी
होगा,और बाजार में बिकने वाली अंगूठी इस प्रक्रिया से नहीं
बनायी जाती – यह तय बात है।दूसरी बात यह कि लोहे की अंगूठी
को तेईस हजार शनिमंत्र से अभिमंत्रित करके ही धारण करना चाहिए,तभी उचित लाभ मिलता है। अभिमन्त्रण का कार्य किसी शनिवार को संध्या समय से
प्रारम्भ किया जा सकता है।धारण करने के लिए भी शनिवार-संध्या का होना आवश्यक
है।इसे पुरुषों को दायें और स्त्रियों को बायें हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण
करना चाहिए।
(८) शनि की शान्ति और प्रसन्नता के लिए भिक्षुक,सेवक,नौकर,स्टाफ आदि का कभी अनादर नहीं करना चाहिए,उनके वेतन,मजदूरी आदि में कटौती करना भी अनुचित है।
(९) शनि की सामान्य शान्ति के लिए एक अति सरल उपाय भी करना चाहिए- एक मुट्ठी
काला खड़ा उड़द,नीले कपड़े में बाँध कर पोटली बना, अपने सिर के उपर सात बार घुमाकर(अऊंछकर)किसी चौराहे पर फेंक देना चाहिए।यह
क्रिया लागातार पांच या सात शनिवार संध्या समय करना चाहिए।
(१०) एक अन्य उपचार है- काले रंग का धागा अपने पांव के अंगूठे से सिर पर्यन्त
नाप का लेले।या सबसे अच्छा होगा कि व्यक्ति को सीधा सुला कर कोई अन्य व्यक्ति काले
धागे के रील को पांव के तलवे से सिर पर्यन्त सात बार घुमाते हुए लपेट दे।थोड़ी देर
बात उसे आहिस्ते से निकाल कर मोड़कर,पुनः सिर पर या पूरे
शरीर पर सात बार घुमावे,और बाहर जाकर विसर्जित कर दे।इस
क्रिया को करते हुए शनि का मन्त्र मानसिक रुप से चलते रहना चाहिए।स्त्रियों,बालकों आदि के टोने-टोटके उतारने में यह क्रिया काफी कारगर है।इस क्रिया
को भी आवश्यकता और स्थितिनुसार पांच या सात शनिवार को संध्या समय करना चाहिए।
(११) शनि जनित विशेष परेशानी हो तो शनिवार को काले खड़े उड़द से दहीबड़ा
बनावे।इसके कोई खास आकार की बात नहीं है,पर संख्या का
महत्त्व है।तेईस दहीबड़े स्टील के किसी पुराने(उपयोग में लाये गये)कटोरे में रखकर
अपने सिर के ऊपर तीन या सात बार घुमाकर,बाहर जा,किसी भिखारी को देदे।साथ में तेईस सिक्के(नोट नहीं)दक्षिणा स्परुप देना भी
आवश्यक है।देने के बाद जल लेकर हाथमुंह अवश्य धोलेना चाहिए।घर आकर शेष बचे
दहीबड़ें में से खुद खाये और घर के अन्य लोगों को भी खाने को दे।इस क्रिया को करते
समय भी शनि का मानसिक जप निरंतर चलता रहना चाहिए।क्रिया आवश्यकतानुसार तीन या सात
शनिवार को करना चाहिए।
(१२) कम्बल,जूता,छाता,कालातिल,तिल का तेल,नीले
वस्त्र,लोहे के सामान (स्टील भी) आदि उपयुक्त समयानुसार दान
करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।लोहे के सामानों में कोई हथियार(चाकू,तलवार,भाला आदि नहीं होना चाहिए।कोई अन्य उपयोगी
सामान ही उचित है-तावा,कड़ाही,कलछुल,
छोलनी,चिमटा आदि।
(१३) शनिवार को दूसरे के द्वारा दिये गये या दूसरे के पैसे से उड़द का बना कोई
सामान- दहीबड़ा,मसालडोसा,इडली,पापड़ आदि का सेवन कदापि न करे।न इन वस्तुओं को उपहार में लें।
(१४) शनिजनित विभिन्न विघ्नों को शान्त करने और शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु एक
सुन्दर और सरल उपाय है-शनियन्त्र की उपासना।तांबे के बने बनाये यन्त्र बाजार में
आसानी से मिल जाते हैं।इन्हें खरीद कर विधिवत प्राणप्रतिष्ठा करके नित्य पूजा में
शामिल किया जा सकता है। नवरात्रि अथवा अन्य शुभ योगों में साधित कर कुछ यन्त्र
प्रायः रख लिया जा सकता है,जो समय पर अन्य लोगों को दिया जा
सके।
(१९) सिर्फ शनि के वजाय पूरे नवग्रह यन्त्र को भी स्थापित करके नित्य पूजा में
रखा जा सकता है।इससे एकत्र रुप में सभी ग्रहों की तुष्टि होते रहती है।नित्य की
पूजा कोई कठिन और समय साध्य भी नहीं है।दस-पन्द्रह मिनट का रोज का काम है।
(२०) शनि के सम्बन्ध में एक अत्यावश्यक बात ध्यान में रखने योग्य है कि इनकी
मूर्ति घर में रखकर उपासना करना वर्जित है।हाँ,आसपास कोई
मन्दिर में हो तो कोई बात नहीं।नित्य दर्शन किया जा सकता है।
(२१) शनिदेव की प्रसन्नता के लिए आजकल लोग शमी का पौधा घर में लगाते हैं,और नित्य उसकी पूजा करते हैं।यह अच्छी बात है;किन्तु
इसके बारे में कुछ आवश्यक नियमों की जानकारी के अभाव में परिणाम अच्छे के बजाय
बुरे मिलने लगते हैं।
प्रसंगवश
उसकी जानकारी यहाँ दे रहे हैं- वास्तुमंडल में शनि का स्थान ठीक पश्चिम दिशा में
है।इस स्थान पर ही इनके मित्र वरुण देव हैं।इस दिशा में शमी का पौधा रखना
श्रेयस्कर है।
यदि आपका घर पूर्वाभिमुख है,या किसी अन्य मुखी है,तो मुख्य द्वार पर सामने या
आसपास शमी का पौधा कदापि स्थापित न करें। उससे लाभ के जगह हानि होगी।ठीक पूर्व
दिशा,उत्तर दिशा,ईशान, अग्नि, वायु कोण में भी पौधा रखना उचित नहीं है।ये
क्रमशः हानिकारक विन्दु हैं।यानी पूरब में सर्वाधिक हानि कारक,उत्तर में उससे थोड़ा कम,अग्नि में उससे
कम...इत्यादि।नैऋत्य कोण में शमी के पौधे को रखा जा सकता है,किन्तु
विशेष लाभ नही होगा।
शमी
के पौधे को समयानुसार छँटाई करते रहना चाहिए,और उसकी टहनियों को सुखाकर सुरक्षित रख लिया जाना
चाहिए।हो सके तो नित्य अथवा प्रत्येक शनिवार को मध्यमा अंगुली के नाप के एक सौ आठ
टुकड़े बना कर घी में डुबोकर ऊँ शँशनैश्चरायनमः स्वाहा- कहते हुए हवन करने से कभी
भी शनि के कोप का भाजन नहीं बनना पड़ता।
शुक्रवार
की संध्या समय अक्षत-फूल-जल-पैसा-सुपारी लेकर शमी के जड़ में रखते हुए निवेदन करें
कि कल प्रातः आपके मूलांग को ग्रहण करना चाहता हूँ- और अगले प्रातः यानी शनिवार को
स्नान करके पौधे के पास जायें।थोड़ा कच्चा दूध पौधे की जड़ में डालें और प्रणाम
करते हुए, किसी औजार से थोड़ा सा जड़ खोद कर काट लें।इसे
लाकर गंगाजल से पुनः प्रक्षालित करें और नीले(काले नहीं) नये वस्त्र में लपेट कर
पीतल की तस्तरी में रख कर, पंचोपचार पूजन करें,और अन्त में तेईसमाला(१०८×२३)ऊपर बताये गये शनि
मंत्र का जप करें।हो सके तो कम से कम तेइस आहुतियां भी डालें शमी की सूखी लकड़ी और
घी से।इस प्रकार यह जड़ सिद्ध हो गया। इसका अद्भुत और आश्चर्यजनक प्रयोग है।हजारों
बार आजमाया हुआ। इस सिद्ध जड़ को अपनी तिजोरी,पर्स,बटुये आदि में सुरक्षित रख दें।धन की बढोत्तरी होने लगेगी।किसी सार्थक
योजना(घर बनाने हेतु,वच्चों की पढ़ाई हेतु,बेटी की शादी हेतु...)का संकल्प लें और एक नये बटुए में कुछ रकम डाल कर यह
सिद्ध किया हुआ शमीमूल भी डालदें,और निवेदन करें कि हे
शनिदेव आप मेरी सार्थक और पुनीत कर्म को सफल करें। धीरे-धीरे आपकी योजना हेतु धन
इकट्ठा होने लगेगा। आश्चर्यजनक रुप से शनिदेव की सहायता मिलने लगेगी।मैं कई ऐसे
प्रयोग अपने जीवन में किये हैं।मेरी पूरी आस्था है-इस सिद्धान्त पर।
किन्तु एक गूढ़ बात का ध्यान रखें- यदि कमाई
गलत(दो नंबर की)है, तो इस यन्त्र का उलटा प्रभाव पड़ेगा। ध्यान रहे
मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि शनिदेव एक कठोर न्यायाधीश हैं।सजा भी कठोर ही
देते हैं।
सामान्य
तौर पर जाना जाता है कि शनि जिस स्थान पर होते हैं उसे बनाते हैं,और जिस स्थान पर दृष्टिपात करते हैं (सात,तीन,
दश पर पूर्ण दृष्टि;चार-आठ पर आधी दृष्टि;पांच-नौ पर चतुर्थांश दृष्टि,मातान्तर से सात पर
त्रिपाददृष्टि) उस स्थान जनित फल को विकृत करते हैं।किन्तु पुनः ध्यातव्य है कि यह
जन्मकालिक(कुण्डली में बैठे)शनि का स्थायी प्रभाव है। यानी जीवन में जब-जब उनका
शासन (महादशा, अन्तर्दशा,प्रत्यन्तर्दशादि)
आयेंगे, उस समय में अपना विशेष प्रभाव दिखलायेंगे।
इससे बिलकुल भिन्न स्थिति है- गोचर। संचरण से (गति करते हुए) होने
वाले प्रभाव(फल) को गोचरफल कहा जाता है।शनि का गोचर प्रभाव जन्म कालिक प्रभाव से
बिलकुल भिन्न होता है।चूँकि शनि त्रिपादीय(तीन पैरों वाले) हैं,इस कारण एक समय में उनके तीनों पैर एक ही राशि पर न होकर आगे,पीछे और मध्य में होते हैं।उदारहण स्वरुप- वर्तमान में शनि वृश्चिक राशि
पर आगये,यानी वृश्चिक राशि पर उनका मध्यपाद(बिचला पैर)
है।अगला पैर धनुराशि पर,और पिछला पैर अब तुला राशि पर आचुका
है। पूर्व में स्पष्ट कर चुके हैं कि एक राशि पर ढ़ाई बर्षों तक रहते हैं,यानी ढ़ाई बर्षों पर कोई भी पैर उठ कर विलकुल आगे जाता है।इस प्रकार हम
देखते हैं कि एक समय में तीन राशि वाले लोग शनि के गिरफ्त में रहते हैं। त्रिपादीय
शनि के इस गोचर प्रभाव को ज्योतिष शास्त्रीय भाषा में महाकल्याणी कहते हैं।गौर तलब
है कि कल्याणी शब्द से अकल्याण की आशंका हम कैसे कर लेते हैं?वस्तुतः हमें प्रसन्न होकर शनि देव का स्वागत करना चाहिए कि वे हमारे
दुष्कृत्यों का मार्जन कर कल्याण करने को प्रस्तुत हैं। सामान्य लोक भाषा में यह
साढ़ेसाती के नाम से जाना जाता है।साढ़ेसाती का अर्थ हुआ ढ़ाई गुने तीन यानी
साढ़ेसात बर्षों तक जारी रहने वाला शनिप्रभाव।यहाँ एक और बात स्पष्ट कर दूँ कि शनि
का यह प्रभाव उक्त प्रभावित तीनों राशियों पर समान रुप से नहीं रहता,बल्कि भिन्न-भिन्न होता है,क्यों कि अलग-अलग राशियों
पर अलग-अलग पैरों का दबाव होता है।इस बात को और अधिक रुप से स्पष्ट करने के लिए कह
सकते हैं कि शनि किसी व्यक्ति के सिर से चढ़ते हुए पैर से उतरते हैं। इसके वर्तमान
उदाहरण को देखें- अभी शनि वृश्चिक राशि पर आये हैं,यानी
वृश्चिक राशि वाले लोगों की छाती पर शनि सवार हैं।तुलाराशि वालों के पैर पर शनि का
पिछला पैर है,और धनुराशि वालों के सिर पर शनि का अगला पैर
है।और सच पूछें तो प्रभाव भी उसी अनुसार होता है।मान लें किसी के सिर पर कुछ बोझ
आपड़ा है,तो इससे वह खुद को वोझिल महसूस करेगा। दिमागी
परेशानी, मानसिक तनाव, अकारण उत्पन्न
होते रहेंगे।किसी बात का निर्णय लेने में अक्षम होगा।वौद्धिक ह्रास के कारण गलत
निर्णय लेकर गलत काम कर बैठेगा,जिसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा।इसी
प्रकार जब बोझ खिसक कर सिर से छाती पर आजायेगा तो अधिक कष्टकर हो जायेगा। सांस
फूलने लगेगी,दम घुटने लगेगा।अदृश्य,अकारण
भय का अनुभव होगा।पारिवारिक दायित्व,ऋण बोझ,व्यर्थ के व्यय आदि परेशानियाँ शुरु हो जायेंगी।तीसरी स्थिति में जब दबाव
छाती से सरक कर पैरों पर आ जायेगा,तब वैसी स्थिति में पहले
की तुलना में काफी राहत महसूस होगी।पुराने बिगड़े काम भी बनने लगेंगे।सारा अवरोध
समाप्त होने लगेगा, जैसे बादल के छंटने के बाद धूप खिल जाती
है।जीवन में साढ़ेसात बर्षों तक चलने वाले इस शनि चक्र –साढ़ेसाती
के नाम से ही लोग घबरा उठते हैं;घबड़ाकर आदमी विवेकहीन हो
जाता है,और समुचित उपचार से भी विमुख होजाता है।
शनि
का एक और प्रभाव होता है, जिसे ज्योतिष में लघुकल्याणी और लोक- भाषा में
अढ़ैया कहा जाता है।अढ़ैया यानी ढाई बर्ष(एक राशि पर रहने का फल)।नियम है कि शनि
जहाँ होते हैं उससे छठी और दशवीं राशि को अढ़ैया के प्रभाव से ग्रसित करते हैं।
नोटः-
(क) आम तौर लोग चन्द्रमा की राशि
के अनुसार ही राशिफल देख कर निश्चिन्त हो जाते हैं,किन्तु सच
पूछा जाय तो जन्मलग्न से भी उसी प्रकार फल विचार करना चाहिए।हाँ,ये बात अलग है कि गोचर शुभाशुभ प्रभाव चन्द्रराशि से अधिक फलदायी होता है,फिर भी लग्न जनित परिणाम को बिलकुल नकारा नहीं जा सकता।
(ख) जन्मांक
चक्र में विभिन्न लग्नों और तदस्थापित,संचरित अन्यान्य
ग्रहों के अन्तर के अनुसार अलग-अलग लोगों के फल-प्रभाव में अन्तर होना स्वाभाविक
है।यही कारण है कि एक राशि के सभी जातकों का फल एक तरह का कदापि नहीं हो सकता।
(ग) किसी
ग्रह का गोचर प्रभाव जन्मकालिक ग्रह के प्रभाव से कैसा सम्बन्ध रखता है,इस बात पर ही पूर्ण प्रभाव का आंकलन किया जाना चाहिए। विशेष रुप से अपना
राशिफल जानने के लिए उचित है कि जन्म कुण्डली पर विशेष विचार कराया जाय। तभी
भविष्यानुमान सटीक और अपेक्षाकृत सत्य के करीब हो सकता है,अन्यथा
आम राशिफल तो स्थूल फलकथन मात्र है।अस्तु।
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