सपनों के सौदागर
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ओ सपनों के सौदागर,
कबतक बेचोगे सपने!
अच्छे आए अच्छे दिन,
कि साँसें लगीं हैं रुकने।
बीत गये छः वर्ष मगर,
क्यों अच्छे दिन हैं अटके?
खोज में अच्छे दिन के,
हम कहाँ-कहाँ ना भटके!
हाँ,आए हैं अच्छे दिन,
नीरव जैसों के आए।
सौदागर, बाकी का क्या,
वह रोए या फिर गाए।
-मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द'
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