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अनाथों के नाथ रघुपति को

अनाथों के नाथ रघुपति को

जब वो नरपिशाच-
हाथों में नंगी तलवार लिये,
रौंद रहे थे सब तरफ-
हमारी सभ्यता संस्कृति को।।
तब रामबोला जन्मा-
उद्धार करने इस धरती को।।
         एक पर एक आती रही विपत्ति,
         शायद यही थी उसकि नियति,
         जब छोड गये पिता और माता-
        तब चुनिया ने दिखाई स्वामी भगति।।
        किया लालनपालन प्रज्ञा महति को।।
फिर वह भी अबोध को छोड गई ,
मनोहारी ममता मुँह को मोड गई,
तब दर दर का ठोकर खाकर के-
नीत विपदा भी दामन जोड गई।।
लग गई नजर जो सुमति को।।
        तब नरहरि दास ने पालन किया,
        रामबोला से तुलसीदास नाम दिया।
        सुनाते रहे हमेशा रख अपने साथ-
       अमर कथा गायक राम का नाम दिया।
       मिटाने को कुअंक भाल विपत्ति को।।
तब पंद्रह साल क रखे शेषसनातन,
बनाया निस्नात वेद वेदांग का मनन।
ततपश्चात आये अपने जन्म स्थान-
कहने लगे लोगों में कथा रामायण।
जगाकर राममय भक्ति को।।
        एक दिन दीनबंधु मिले अचानक से,
        देखते रह गये तुलसी को एकटक से।
        और अपनी रत्नावली  के लिए सोंचा-
        ऐसा योग्य वर मिलेगा नहीं निष्कंटक से।
         और पाणीग्रहण करवा दिया युवती को।।
 तुलसी रत्नावली में आशक्त थे,
जबकि वे पहुंचे हुए भक्त थे।
एक दिन असमय में पहुंचे पास-
ये देख हुए नयन अनुरक्त थे।
फटकार दी तत्क्षण ऐसी कुमति को।।
            हुआ वैराग्य बस बदल गई धारा,
            लिया जीवन में रामनाम का सहारा।
            अनाथों के नाथ विश्वनाथ के शरण में-
             सब छोड माया मोह से थका हारा।।
             किया प्राप्त दुर्लभ सदगति को।।
वह रामबोला हीं बना तुलसीदास है,
जीसकी आभा से दिप्त साहित्याकाश है।
वंदन सहित नमन है उस मानव को-
बनकर "मिश्र अणु" दासों का दास है
मान अनाथों के नाथ रघुपति को।
         ----:भारतका एक ब्राह्मण.
       © संजय कुमार मिश्र "अणु"
            वलिदाद,अरवल(बिहार)
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