Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

स्त्री अपने लिए कई सम्बोधनों के साथ एक पुरुष के जीवन में उतरती है

स्त्री अपने लिए कई सम्बोधनों के साथ एक पुरुष के जीवन में उतरती है |

साहित्य कार का सभी कुछ साहित्यिक ही होता है | प्रशिद्ध साहित्यकार श्री ज्योतिन्द्र मिश्र जी का आज शादी की ४९ वी वर्षगांठ है दिव्य रश्मि परिवार की ओर से उन्हें बधाई | आज उन्हों ने स्त्री के कई सम्बोधनों को एक साथ दर्शाया है इस लिए उनकी रचना को यहाँ आप सभी के समुख प्रकाशित कर रहा हूँ|


तीन जून 1971 की याद लिए आज 3 जून 2020 आ ही गया ।उनचास हवाओं को झेलती ,यह जिंदगी बीसम बीसा तक पहुंच ही गयी। यह दिन उस दिन की याद कराता है जब एक युवा को आगे की जिंदगी बिताने के लिए , जीवन की राहों को आसान बनाने के लिए, जीवन चक्र को अवाध रखने के लिए, वंश वृद्धि के लिए , कर्म भूमि में उतरने के लिए एक युवती को आपके साथ कर दिया जाता है। लोग कहते हैं कि अब एक नया जीवन शुरू हुआ है।भारतीय परिवार में इस प्रक्रिया को अत्यंत समझदारी के साथ पूरा करने का दायित्व अमूमन लड़का और लड़की के माता पिता ही पूरा करते हैं। कुछ मामलों में लड़का लड़की भी अपने स्तर से सामाजिक वर्जनाओं को तोड़कर इसे अंजाम देते हैं और वे भी इसे जीवन की शुरुआत ही मानते हैं ।हर हालत में एक पुरुष का एक स्त्री से जैविक मिलन ही होता है। दो विपरीत लिंग का मिलन । यह स्त्री अपने लिए कई सम्बोधनों के साथ एक पुरुष के जीवन में उतरती है :-


पत्नी ,परिणीता, प्राण प्रिया
प्राण वल्लभा प्रियतमा
प्राणेश्वरी, प्रिया ,तिरिया
वामा, वामांगिनी, वनिता तू

श्रीमती, सजनी ,संगिनी
सह धर्मिनी, अर्धांगिनी तू
गृह लक्ष्मी, गेहिनी, गृहिणी
बीबी, वेगम और वधू

स्त्री ,दारा, जाया , जोरू
तू ही तिय और लुगाई तू
तू ही कलत्र, कांता, भार्या
बनकर जीवन में आई तू

वेशक, इतने सारे सम्बोधनों से महिमामण्डित हुई एक गोरी चिट्टी युवती आज से 49 वर्ष पूर्व मेरे साथ हो गयी।
काल चक्र घूमता रहा । हम भी कभी रोये , कभी मुस्कुराए, कभी तंगदस्ती झेली , अपमान - सम्मान , आदर उपेक्षा सहते यहॉं तक पहुंच गए । इस जीवन यात्रा में हमारे बच्चों के मासूम और निर्दोष चेहरों ने सरकारी सेवा में मिलने वाले तरह तरह के प्रलोभनों और उपहारों से बचाये रखा और अंततः काजल की कोठरी से अपनी सफेदी के साथ बाहर आ गए। इस बीच वैवाहिक जीवन यात्रा में हमें भी वही करना पड़ा जो हमारे माता पिता ने मेरे साथ किया अर्थात चार पुत्रियों और एक पुत्र का विवाह संपन्न करना पड़ा। यही क्रम हमारे बच्चे भी जारी रखेंगे।यही हमारी भारतीय संस्कृति की सुंदरता है, श्रेष्ठता है। हम कितने भी आधुनिक हो जाएं हमारी श्रेष्ठता का मुकाबला समलिंगी विवाह , या लिव इन रिलेशन , या कोई और प्रयोग मनुष्य के जीवन को भरमा सकता है। सुकून नहीं दे सकता ।हमारी पीढ़ी हमारे माता पिता द्वारा संपन्न कराई गई इस वैवाहिक पद्धति का शुक्रगुजार है ।
हम अपनी वैवाहिक मर्यादाओं में रहकर ,सहकर आने वाली दुनियां के लिए अपनी संततियों को छोड़ जाएंगे।
और जीवन चक्र यूँ ही चलता रहेगा।
हम अपने वैवाहिक वर्षगांठ के मौके पर आप सभी आदरणीय जनों , आदरणीय मित्रों से आशीर्वाद , शुभ कामनाओं का प्रार्थी हूँ ।


जब तक हूँ तब तक आप सबों के स्नेह का भाजन बना रहूँ । हम दोनों का सादर प्रणाम स्वीकार हो ।
दिव्य रश्मि केवल समाचार पोर्टल ही नहीं समाज का दर्पण है |

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ