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शिक्षा के अधिष्ठाता कलक्टर सिंह केसरी - एक जन्मजात कवि!

जयंती पर  विशेष----

शिक्षा के अधिष्ठाता कलक्टर सिंह केसरी - एक जन्मजात कवि!


'दैव पेट की भूख जहाँ हो, वहाँ हृदय की भूख न देना; 
जलने को जो बनी चकोरी, उसको चन्द्र मयूख न देना!'
कलक्टर सिंह केसरी की कविता गरीबिन का बेटा की ये पंक्तियाँ किसी के भी मर्म को छू लेती हैं। आज जब कोरोना महामारी के चलते लाखों लोग कमाने को गये सुदूर स्थानों से अपने घर लौट रहे हैं तो उनकी भी स्थिति वही देखी जा रही है, जिसका वर्णन इस कविता में किया गया है। 

कलक्टर सिंह केसरी मर्म और प्रकृति के कवि थे। उनका मानना था कि किसी में कवि का बीज 
 उसके जन्म के साथ ही आता है। इसीलिए वे अपने गांव में आच्छादित प्रकृति की सुषमा के बीच घंटों विचरण करते थे. यह सुषमा उन्हें गंगा के कछार पर एवं गाँव की घनी अमराइयों में अपनी ओर खींचती रहती थी. देखिये उसका असर  उनकी पहली प्रकाशित कविता की इन पंक्तियों पर कितना पड़ा है.
'किया है भावों से शृंगार
मनोमंदिर का अति अभिराम, 
विराजो, आवो मित्र सूजान
बिछा है हृद्-आसन सुललाम।'

गूगल प्रकाशित 'केसरी ग्रंथावली' में कवि 'केसरी' 'मेरी काव्य-यात्रा' खुद कहते हैं कि 'अक्षर ज्ञान के साथ ही महाकवि तुलसीदास से परिचय हो गया। रामचरितमानस और मैथिली शरण गुप्त की भारत-भारती एवं जयद्रथ-बध ने मुझे बचपन से ही सरल, सुबोध भाषा के प्रति आकृष्ट कर लिया, जो मेरी रचनाओं में आज विद्यमान है। गंगा कछार की शीतल, सलोनी छवियाँ मुझपर अनजाने जादू कर देती थीं और मुझमें सौंदर्यबोध उन्हीं दिनों आ गया था जब मैं गाँव की पाठशाला में पढ़ता था। छोटी-छोटी पाठ्य पुस्तकों की सुंदर पंक्तियाँ मुझे पकड़ लेतीं और फिर जबान पर बैठ जातीं।'

केसरीजी जवान हुए तो 1928 में जब वे पटना कॉलेज में पढ़ते थे तो उनकी कविताएँ हिदू पंच और मतवाला में छपती थीं, लेकिन तब ये कलक्टर सिंह 'कमल' के नाम से रचनाएँ छपवाते थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर'  इनसे उम्र में थोड़े बड़े और इनके सहपाठी थे. वे एक दबंग कवि थे और ऊंचे स्वर में कविता पाठ करते थे. उन्हें इनकी 'कमल' उपाधि रास नहीं आई,   अत: ये 'कमल' से 'केसरी' हो गये. दिनकरजी अपनी कविता केवल पढ़ते ही नहीं थे, वरण, दहाड़ते भी थे और केसरी जी कविता कोमल कंठ से पढ़ते थे. इस पर भी दिनकरजी कटाक्ष करते थे कि केसरी नाम से कोयल की कूक कंठवाली कविता कैसे निकलेगी! इस तरह उन्होंने कविता पढ़ने का ढर्रा भी बदल लिया. आम की अमराईयों में आये मंजर के परिदृश्य में उनकी ये पंक्तियाँ देखिए : 
'फूल ये रसाल के!
अमराई लाई है संभाल के!
फूल ये रसाल के!

देखो, कहीं चूए नहीं
हवा कहीं छूए नहीं
अभी-अभी खिले स्वर्ण-पुष्प डाल-डाल के!
फूल ये रसाल के!'

ग्राम्य प्रवृत्तियों के साथ ग्रामवासियों से केसरीजी का बड़ा लगाव रहा। भिखारिन, मजदूरिन, पावस-प्रवासी, गरीबिन का बेटा तथा लखिया की मनौती शीर्षक कविताओं में गरीबी और मायूसी का जो चित्र उन्होंने खींचा है, उसमें तन की गरीबी से मन की गरीबी अधिक है। गरीबिन का बेटा कविता में मां की इच्छाओं से ओत-प्रोत ये पंक्तियाँ देखें:
'बेटा! बेटा!! आह! जीवन में जी भर न बेटा कह पाई।
हाय न मुझ माँ की गोदी के दूध पूत की साध  अघाई।।
कठिन गरीबी की दुनिया! मायूसी के जीवन की आहें।
रही सिसकती ही कितने मन की मेरे मन में ही चाहें।'

उनका प्रिया अनुभव कैसे विश्व अनुभव बन गया, उनकी कवि-प्रिया कविता को  विश्व-प्रिया रूप में देखें:
'अकेला चाँद तू ही क्या किसीका चाँद हूं मैं भी,
सुधाकर एक तूँ ही क्या! सुधा का स्वाद हूँ मैं भी।
 गगन की नीलिमा में फूलती है चाँदनी तेरी,
किसी के नयन में अभिमानिनी छवि झूलती मेरी।
जलन उतनी नहीं तेरे लिए प्रेमी चकोरों में,
जलन कितनी किसी के प्राण के रीते कटोरे में।'

ऐसे बेजोड़ कवि कलक्टर सिंह 'केसरी' का जन्म सन् 1909 के 5 जून को बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले के एकवना (बड़हरा) गाँव में हुआ था। उनका निधन 18 सितम्बर 1989 को 80 वर्ष की आयु में हुआ। वे हिन्दी के कवि एवं साहित्यकार थे, और जीवन में सदा उच्च पदों पर रहे।

कलक्टर सिंह 'केसरी' ने अंग्रेजी में एमए किया। वे समस्तीपुर कॉलेज के संस्थापक थे जिसके प्राचार्य पद को उन्होने २० वर्षों तक सुशोभित किया। वे विश्वविद्यालय सेवा आयोग के सदस्य रहे और फिर अध्यक्ष भी बने। उन्होने 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की अध्यक्षता की। राष्ट्रभाषा परिषद् के निदेशक-मण्डल के सदस्य रहे। उन्हें बिहार सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा भी सम्मानित किया गया।

उनकी साहित्यिक कृतियाँ एक-से-एक अच्छी हैं और विज्ञ पाठकों को अपनी ओर खींच लेती हैं।
काव्य साहित्य : मराली, कदम्ब, आम-महुआ, परिचयहीन, उत्तरसीताचरित (खण्डकाव्य), गाँव मेरे गाँव, स्फुट कविताएं।
गद्य साहित्य :
सफल जीवन की झांकियाँ, अक्षर पुरुष, संस्मरण, निबंध, ललित निबंध, डायरी के पन्ने, लघुकथाएं।

इनकी रचनाओं की एक ग्रंथावली गूगल द्वारा निकाली गई है। 

पटना में इनके नाम पर एक मोहल्ला 'कलक्टर सिंह केसरीनगर' बसाया गया है। इसे लोग अब 'केसरीनगर' से जान रहे हैं। इनके नाम को उजागर करते हुए, इस मुहल्ले - केसरीनगर' में एक  डाकघर भी चल रहा है, जिसका पिन कोड 800 024 है और दो बैंक शाखाएँ, एक एटीएम भी हैं।

कोई कवि-साहित्यकार जब अपने से ही अपनी रचना के बारे में बखान करता है, तो परोक्ष में भी उसकी कही हुई बातें पतथर की लकीर की तरह अमिट हो जाती हैं। गूगल ने जो केसरीग्रंथावली प्रकाशित की है, उसमें कविवर केसरीजी द्वारा अपने काव्य-यात्रा के बारे में कही गई बातों को भी समाहित किया गया है।
इस ग्रंथावली की भूमिका लिखते हुए प्रसिद्ध राजनेता, सांसद, साहित्यकार और बिहार-हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अर्थमंत्री रहे- डॉ. शंकरदयाल सिंह ने जो कहा है, वह मील का पत्थर साबित हो रहा है। उसके अनुसार 'जिन साहित्यकारों ने छायावादोत्तर  शिल्प शैली को ग्रहण किया, जिसमें प्रयोगवाद और प्रगतिवाद, दोनों का पुट था। सर्वश्री रामधारी सिंह दिनकर, मोहनलाल महतो 'वियोगी', प्रफुल्ल चंद ओझा 'मुक्त, केदारनाथ मिश्र 'प्रभात', नागार्जुन तथा आरसी प्रसाद सिंह के नाम इसी पीढ़ी के उन नायकों में लेना आवश्यक है जिनकी बागडोर श्री कलक्टर सिंह केसरी जी सम्हाले हुए थे।
काव्य की चेतना के साथ-साथ एक शिक्षाविद् के रूप मैं भी केसरी जी ने छाप छोड़ी। मुझे वह दिन याद आ रहा है, जब बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन।
के अध्यक्ष पद के लिए मैं उनके पास गया तो वे अवाक् से मेरी ओर देखते हुए बोले - मुझसे भी वरेण्य अनेक साहित्यकार अभी जीवित हैं, उन्हें यह  गौरव मिलना चाहिए। यह उनके व्यक्तित्व की सरलता थी; जो उनकी साहित्यिक सजगता से मिलकर एकाकार हो जाती थी।'

एक बार जयन्ती-सुमन अर्पित करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा था कि 'कलक्टर सिंह केसरी  सच्चे और अच्छे साहित्य-साधक थे, जिनकी काव्य-प्रतिभा ने विज्ञ-समाज को आकर्षित किया था। उनकी कारयित्री प्रतिभा बहुमुखी थी। वे अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे, किंतु जिस मन-प्राण से उन्होंने हिंदी की सेवा की, उससे वे हिंदी-सेवी ही माने गए। केसरी जी बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष तथा विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष के रूप में दिए गए अपने विशिष्ट अवदानों के लिए भी सदा याद किए जाएंगे। वे समस्तीपुर महाविद्यालय के संस्थापक और २० वर्षों तक प्राचार्य भी रहे। वे स्वयं में ही एक साहित्यिक-कार्यशाला थे। उनका सान्निध्य पाकर अनेक व्यक्तियों ने साहित्य-संसार में लोकप्रियता अर्जित की।'

इतना ही नहीं, उनके नाम पर केसरीनगर में ' कलक्टर सिंह केसरी साहित्य-परिषद् की भी सथापना हुई है, जिसके प्रधानमंत्री का दायित्व-भार इस आलेख के लेखक के ही पास है।

शिक्षा के अधिष्ठाता कलक्टर सिंह केसरी - एक जन्मजात कवि को उनकी जयन्ती (5 जून, 2020) पर शत नमन, शत-शत नमन!

'जयन्ती ते सुकृतिनो रससिद्धा: कवीश्वरा:।
नास्ति येषां यश:काये जरामरणजं भयम्।।' -भर्तृहरी
'(वे पुण्यवान रससिद्ध महाकवि धन्य हैं, जिनकी कीर्तिरूपी काया को वार्द्धक्य या मृत्यु का भय नहीं रहता।)'
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योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र), प्रधानमंत्री, कलक्टर सिंह केसरी साहित्य परिषद्, पटना- 800024: /अर्थमंत्री एवं कार्यक्रम संयोजक, बिहार हिन्दी साहित्य समेलन, पटना- 800003.
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