ऋद्धि-सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश
पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्मा,
अवकाश प्राप्त अध्यापक
सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली
बुधवार है, ऋद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी का दिन है,
आज हम सब मिलकर इन्हीं की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!!
गाइये गनपति जगबंदन,संकर-सुवन
भवानी नंदन ॥ गाइये गनपति जगबंदन।

गणेशजी का रूप देखते ही बच्चे खुश हो जाते हैं। उनके मोटे से पेट,
हाथ और हाथी वाले मुखड़े को देखकर हर बच्चे को आनन्द आने लगता है,
इसलिए बच्चों में जिसके प्रति ललक नजर आए और वे जिससे प्रेम करने
लगे उन्हें इसके बारे में भी अवगत कराना चाहिए। गणेश भगवान शिवजी और माता पार्वती
के पहले पुत्र हैं। उन्हें 'प्रथम पूज्य भगवान' भी कहा जाता है।
जब गणेशजी ने पलक झपकते ही कर ली 'पूरे संसार' की परिक्रमा!!!!!!!
एक बार सभी देवता किसी मुसीबत में पड़ गए थे। सभी देव शिवजी की शरण
में गए और अपनी परेशानी बताई। उस समय भगवान शिवजी के साथ गणेश और कार्तिकेय भी
वहीं बैठे हुए थे।
देवताओं को परेशान देख शिवजी ने गणेश और कार्तिकेय से पुछा कि इन
परेशान देवताओं की मुश्किलें तुम दोनों में से कौन हल कर सकता है और उनकी मदद कौन
कर सकता है। जब दोनों भाई मदद करने के लिए तैयार हुए तो शिवजी नें उनके सामने एक
प्रतियोगिता रख दी। इस प्रतियोगिता के अनुसार दोनों भाइयों में जो भी सबसे पहले
पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, वही देवताओं की
सर्व प्रथम पूज्य होगा।
अपने पिता शिवजी की बातें सुनकर कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठकर
पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। लेकिन, गणेशजी
वहीं अपनी जगह पर खड़े रहे और सोचने लगे कि वह मूषक की मदद से पूरे पृथ्वी की
परिक्रमा कैसे लगा पाएंगे...। इसमें तो बरसों बीत जाएंगे। उसी वक्त उनके मन में एक
उपाय सूझा। वे अपने पिता शिवजी और माता पार्वती के नजदीक आए और उनकी सात बार परिक्रमा
करके वापस अपनी जगह पर खड़े हो गए।
कुछ समय बाद जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके लौटे तो
स्वयं को विजेता कहने लगे। तभी शिवजी ने गणेशजी की ओर देखा और उनके पूछा कि क्यों
गणेशजी तुम क्यों पृथ्वी की परिक्रमा करने नहीं गए?
इस पर गणेशजी ने तपाक से कहा कि माता-पिता में ही तो पूरा संसार है,
चाहे में पृथ्वी की परिक्रमा करूं या अपने माता-पिता की, एक ही तो बात है...। यह सुन शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश को
सभी देवताओं की मुश्किलें दूर करने की आज्ञा दे दी। इसके साथ ही शिवजी ने गणेशजी
को यह भी आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा
और व्रत करेगा उसके सभी दुःख दूर हो जाएंगे और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होगी।
क्यों कहते हैं गणेशजी को एकदंत?????
गणेशजी को बच्चे कहते हैं 'हाथी
भगवान'
एक दिन माता पार्वती स्नान कर रही थीं, लेकिन वहां पर कोई भी रक्षक नहीं था। इसलिए माता पार्वती ने चंदन के पेस्ट से अवतार दिया और गणेशजी प्रकट हो गए। माता ने पुत्र के अवतार लेते ही गणेश को आदेश दिया कि उनकी अनुमति के बगैर किसी को भी घर में प्रवेश न देना।
एक दिन माता पार्वती स्नान कर रही थीं, लेकिन वहां पर कोई भी रक्षक नहीं था। इसलिए माता पार्वती ने चंदन के पेस्ट से अवतार दिया और गणेशजी प्रकट हो गए। माता ने पुत्र के अवतार लेते ही गणेश को आदेश दिया कि उनकी अनुमति के बगैर किसी को भी घर में प्रवेश न देना।
इसी बीच जब शिवजी वापस लौटे तो उन्होंने देखा कि द्वार पर एक बालक
खड़ा हुआ है। जब शिवजी वापस लौटे तो उन्होंने देखा की द्वार पर एक एक बालक खड़ा है।
जब वे अन्दर जाने लगे तो बालक नें रोक लिया और भीतर नहीं जाने दिया। यह देख शिवजी
क्रोधित हो उठे और अपनी सवारी बैल नंदी को उस बालक के साथ युद्ध करने का आदेश दे
दिया। युद्ध में उस छोटे बालक ने नंदी को भी हरा दिया। यह देख भगवान भी अचरज में
पड़ गए और वे क्रोधित हो गए। उन्होंने त्रिशूल उठाया और उस बालक गणेश का सिर धड़
से अलग कर दिया।
इसी बीच वहां माता माता पार्वती स्नान के बाद वापस लौटती हैं तो यह
नजारा देख बेहद दुखी हो जाती है। वे जोर-जोर से रोने लग जाती हैं। यह देख शिवजी भी
हैरान हो जाते हैं। तब वे उन्हें बेटे के अवतार लेने की कथा बताती हैं। शिवजी भी
परेशान हो जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि यह बालक तो उन्हीं का पुत्र था,
तो उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है। भेलेनाथ माता पार्वती को
समझाने की बहुत कोशिश करते हैं, लेकिन वे नहीं मानती हैं। और
गणएश का नाम लेते लेते रोती रहती हैं।
अंततः माता पार्वती ने क्रोधित होकर शिवजी को अपनी शक्ति से गणेश
को दोबारा जीवित करने के लिए कह दिया। शिवजी बोले- हे पार्वती में गणेश को जीवित
तो कर सकता हूं पर किसी भी अन्य जीवित प्राणी के सिर को जोड़ने पर ही वह जीवित हो
सकता है। पार्वती रोते-रोते कह देती है कि मुझे हर हाल में मेरा पुत्र जीवित
चाहिए...।
यह सुनते ही शिवजी नंदी को आदेश देते हैं कि जाओ और इस संसार में
जिस किसी भी जीवित प्राणी का सिर दिखे काटकर ले आओ। शिवजी का आदेश पाते ही नंदी
चले गए और उन्हें जंगल में एक हाथी का बच्चा दिखा, जो अपनी मां की पीठ के पीछे सो रहा था। नंदी ने हाथी के बच्चे का सिर काट
लिया और ले आए। वह सिर गणेशजी को जोड़ दिया गया। इस प्रकार गणेशजी को जीवनदान मिल
गया। शिवजी ने इसीलिए गणेश का नाम गणपति रखा। इसी प्रकार सभी देवताओं ने उन्हें
वरदान दिया कि इस दुनिया में जो भी नया कार्य किया जाए, तो
पहले श्री गणेश को जरूर याद किया जाए।
क्या है गणेश और मूषक की कथा!!!!!!
एक बार बहुत भयानक असुरों का राजा गजमुख चारों तरफ आतंक मचाए हुए
था। वह सभी लोकों में धनवान और शक्तिशाली बनना चाहता था। वह साथ ही सभी
देवी-देवताओं को अपने वश में भी करना चाहता था। वह इस वरदान को पाने के लिए भगवान
शिवजी की भी तपस्या करता रहता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़
कर जंगल में रहने लगा और बिना भोजन-पानी के ही दिन-रात तपस्या में लीन रहने लगा।
कुछ सालों बाद शिवजी उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और सामने पहुंच
गए। शिवजी ने खुश होकर उसे दैवीय शक्तियां प्रदान कर दी,
जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। उसे शिवजी ने सबसे बड़ी शक्ति दे
दी थी। भोलेनाथ ने उस असुर को वह शक्ति दी जिसमें उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा
जा सकता था। असुर गजमुख को शक्तियों पर गर्व होने लगा और वह इसका दुरुपयोग भी करने
लगा। उसने देवी-देवताओं पर भी आक्रमण कर दिया।
गणेशजी को क्यों चढ़ाते हैं दूर्वा?????
सिर्फ भोलेनाथ, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे रह सकते थे। गजमुख चाहता था कि सभी
देवी-देवता उसकी पूजा करने लगे। इससे परेशान होकर सभी देवगण शिवजी, विष्णु और ब्रह्मा की शरण में पहुंचे...। शिवजी ने गणेशजी को असुर गजमुख
को रोकने के लिए भेजा। गजमुख नहीं माना और गणेशजी को गजमुख के साथ युद्ध करना
पड़ा। इस युद्ध में गजमुख बुरी तरह से घाल हो गया, लेकिन तब
भी वह नहीं माना।
देखते-ही-देखते उस राक्षस ने अपने आपको एक मूषक के रूप में बदल
लिया और गणेशजी की ओर हमला करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेशजी के पास आया,
गणेशजी कूदकर उसके ऊपर बैठ गए और गणेशजी ने गजमुख को जीवनभर के लिए
मूषक में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवनभर के लिए रख लिया। इस घटना के बाद
गजमुख बेहद खुश हुआ कि वह गणेशजी का प्रिय मित्र भी बन गया...।
दिव्य रश्मि समाज का दर्पण
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