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पालतू पशु-पक्षी ,कहीं बन जाये न जी का जंजाल

पालतू पशु-पक्षी का साथ, कहीं बन जाये न जी का जंजाल!


योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे. पी. मिश्र)
हमारे पड़ोस में रहनेवाले एक जानकार का पालतू श्वान-शिशु (पिल्ला) दूसरे के घर में रहने चला गया है, रजामंदी से ही। लेकिन, जानकार परिवार उसके विछोह में बहुत उदास हो गया है। खाने-पीने में रुचि नहीं है और उनका विद्यार्थी पुत्र तो गुमसुम पड़ा है। वे आये थे और दूर बैठकर ही उन्होंनें अपनी स्थिति से परिचित कराया तथा अपनी पत्नी को समझाने के लिए मुझसे बार-बार आग्रह किया। मैंने उनके घर जाकर जब हालचाल पूछा तो उनकी पत्नी ने बताया कि कहीं उनके बेटे को कुत्ता काट नहीं ले, इसी आशंका में मैं जी रही थी; क्योंकि वह उससे बहुत हिलमिल गया था और पढ़ाई के बदले उसी की खातिरदारी में लगा रहता था, इसीलिए दिलपर पत्थर रखकर मैंने पालतू कुक्कुर-शिशु को अपने एक परिचित को ही पालने के निमित्त सदा के लिए दे दिया।




मैंने उन्हें सान्त्वना की बहुत बातें कहीं और उन्हें इसके लिए सोच नहीं करने को कह पुत्र की शिक्षा पर ही अपना पूरा ध्यान लगाने को कहा। मैंने निम्न उद्धरण भी दिया।

'ॐ अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ।।११।।

अर्थात्,

तू न शोक करनेयोग्य के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जो चले गये हैं और जो आ गये हैं, उनके लिए पंडित जन शोक नहीं करते!' श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का यह ग्यारहवां श्लोक ऐसी परिस्थिति के लिए सही मार्ग दिखाता है कि जो चला गया या जो आया है, उसके लिए पंडित लोग सोच नहीं करते हैं।

मैंने उन्हें स्पष्ट किया कि बड़े लाड़ से आपने जिस श्वान-शिशु का नाम मोहन दिया था, उसकी तो गति ऐसी ही थी। जिसने जन्म दिया, उससे बिछुड़न हुआ और जिसने पालन किया, उससे भी उसका बिछोह हो गया, पर, वह राजा बनकर द्वारिका में रहा और वहीं घर वसाया। दोनों माता-पिताओं से सर्वथा दूर रहकर!
आपके मोहन के बारे में भी यही बात चरितार्थ हो रही है। भले ही आपने उसे जन्म के बाद ही पाला, पर, उसके लिए, मोह और बिछोह का दु:ख त्यागना ही श्रेष्ठ है, ताकि आपका औरस पुत्र अध्ययन में एकनिष्ठ होकर अपनी पढ़ाई में अच्छा कर सके और जीवन में आगे बढ़ सके!
पालतू पशु-पक्षी को पालने की ललक किसमें नहीं होती है, पर उसके साथ जो बंधन बंध जाता है, वह उसे स्वतंत्र जीवन जीने की राह में रोड़े भी अटकाता है। क्या जाने कौन किस परिशानी में पड़ जाय! इस पिल्ले को मैंने तब देखा था, जब दो माह पू्र्व ही उन्होंने अपने पुत्र के जन्मदिन पर शामिल होने के लिए मुझे अपने घर बुलाया था और उस पिल्ले के बारे में बताया भी था। तभी मैंनै उन्हें टोक दिया था कि ऐसा करके उन्होंने अपने को बंधन में बांध लिया है। वैसे उस समय एकाएक मुंह से निकल गया था कि 'काटे-चाटे श्वान के दुहू भांति बिपरीत!' दु:संयोग यह हुआ कि मेरे दायें पैर की कनिष्ठा में किसी नुकीली चीज के चुभने का अहसास हुआ और थोड़ी खोज पर मुझे मालूम हुआ कि वही छोटा सा पिल्ला मेरे पैर पर सैर को निकला था और शायद उसका नख मुझे चुभ गया था। खैर, पिल्ला को सूई दी गई थी, इसीलिए यह बात आई-गई हो गयी! पर, पूर्व में मैं तीन-तीन बार कुत्ता-काटने के ईलाज़ के चपेटे में आ चुका हूँ। हुआ यूं कि एकबार मैं एक भैरो-भक्त के कार्यालय से एक समारोह में भाग लेकर निकल रहा था कि बीच रास्ते में एक कुत्ता सोया पड़ा मिला। मैं उसे सोया जानकर उसे बचाता हुआ उसके ऊपर से लम्बा डेग भरकर पार हो रहा था कि हमारी घुट्टी के ऊपर खरोंच लग जाने की प्रतीति हुई। मैंने इस पल अधिक ध्यान नहीं दिया और सामान्य रूप से अपने कार्य में व्यस्त रहा। पर, लगभग छ: माह बीतते-बीतते मुझे महसूस होने लगा कि मेरी तबियत बिगड़ रही है। मैं दौड़ा-दौड़ा पी. एम. सी. एच., पटना के कूत्ता-काटे- मरीज़ के विभाग में गया। वहाँ डाक्टरों ने जांच-परखकर देखकर किसी कुत्ता काटने के असर से इन्कार किया, पर लगातार दूसरे दिन उनके पास जाने पर उन्होंने इसकेलिए लगनेवाली सूई ले लेने की सलाह दे दी। मैंने निर्धारित तीन सूई ली और अच्छा भी महसूस करने लगा। उसके बाद एक समारोह में मंच पर बैठे हुए में टेबुल-क्लाथ से ढके टेबुल के भीतर से एक बिल्ली के बच्चे ने मेरे पैर को नोंच लिया और एक बार रास्ते में पैदल चलते हुए हाथ में झूलते हुए पोलीथीन बैग में खाना होने के अंदाज में एक बंदर ने पेड़ से तेजी से उतरकर झपट्टा मार दिया, जिससे मेरे हाथ में खरोंच लग गई। दोनों मामलों में कुत्ता काटने के ईलाज वाले डाक्टरों ने मुझे एहतियातन निर्धारित सूई ले लेने की ही सलाह दी और अपने को सुरक्षित महसूस करने के ख्याल से सूई लेनी पड़ी।
एक बार हमने दो तोता पाल लिया था, जो प़िजड़े का दरवाजा खुला रहने की गल्ती से उड़कर बगल के एक बड़े पेड़ पर बैठ गया। घर के सभी लोग इन दोनों तोतों की देखभाल में लगे रहते थे। दोनों को पिंजड़ा दिखाकर मिट्ठू-मिट्ठू की आवाज देकर बहुत पुकारता रहा तो एक बार तो एक तोता आगया, लेकिन फिर वह जो उड़ा तो लौटकर नहीं आया। मन में एक गहरी उदासी छा गई। पालकर खोने का गम जो था!
अब थोड़ा पालतू पशु-पक्षी के बारे में भी जान लें, जो हमारे साथ या आसपास रहते हैं।

पालतू - जानवर (पशु-पक्षी)

"पालतू या साथी जानवर एक जानवर है जिसे मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के साथ के लिए, मनोरंजन के लिए, या काम करने वाले जानवर, पशुधन या प्रयोगशाला जानवर के बजाय भूखे आवारा बिल्ली को लेने और बचाने के लिए दया के कार्य के रूप में रखा जाता है। लोकप्रिय पालतू जानवरों को अक्सर उनके आकर्षक दिखावे, बुद्धिमत्ता और भरोसेमंद व्यक्तित्व के लिए जाना जाता है, या उन्हें सिर्फ इसलिए स्वीकार किया जा सकता है क्योंकि वे एक घर की जरूरत होते हैं।
गाय

सर्वप्रथम पालतू जानवर में गाय का और भैंस का स्थान रहता है। इनसे प्राप्त दूध से पोषण तो मिलता ही है, दूध, दही, पनीर, क्रीम, मक्खन, मिठाइयं आदि का बड़ा व्यवसाय चलता है। डेरी उद्योग से कौन परिचित नहीं है। दूध तो हमारे जीवन का एक अंग हो गया है। गाय का दूध तो अमृत माना जाता है और नवजात शिशुओं तक को पिलाने के काम आता है।

एक समय था जब राजाओं, ऋषियों की समृद्धि गाय की संख्या और उससे प्राप्त दूध से भी, आंकी जाती थी। अभी समाप्त हुए धारावाहिक महाभारत में तो हांक कर ले जाती हुई गायों को छुड़ाने के लिए युद्ध होते हमने देखा ही है।

वैसे बकरी पालन का कार्य गरीबों की आर्थिक- स्थिति को अच्छी करने के लिए होता ही है।
कुत्ता

कुत्ता या श्वान भेड़िया कुल की एक प्रजाति है। यह मनुष्य के पालतू पशुओं में से एक महत्त्वपूर्ण प्राणी है। इनके द्वारा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली एक भयंकर बीमारी रेबीज होती है। इसकी मादा को कुतिया और शावक को पिल्ला कहते हैं। इसका औसत जीवनकाल लगभग 12 वर्ष होता है।
बिल्ली

बिल्ली एक मांसाहारी स्तनधारी जानवर है। इसकी सुनने और सूंघने की शक्ति प्रखर है और यह कम रोशनी, यहाँ तक कि रात में भी देख सकती है। लगभग 9500 वर्षों से बिल्ली मनुष्य के साथी के रूप में है। प्राकृतिक रूप से इनका जीवनकाल लगभग 15 वर्षों का होता है।
खरगोश

ख़रगोश खरहा रूपीगण के खरहा दृष्टकुल के खरहा और पिका के साथ, छोटे स्तनधारी हैं। खनखरहा शशबिल में यूरोपीय ख़रगोश और उसके वंशज, पालतू ख़रगोश की दुनिया की 305 नस्ले शामिल हैं। सिल्वीखरहा में तेरह वन्य ख़रगोश शामिल हैं, जिनमें से सात कपासपुच्छ के प्रकार हैं। अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर परिचय में आया हुआ यूरोपीय ख़रगोश, दुनिया भर में एक जंगली शिकार प्राणी के रूप में और पशुधन और पालतू जानवर के पालतू रूप में परिचित है। पारिस्थितिकी और संस्कृतियों पर इसके व्यापक प्रभाव के साथ, खरगोश (या बनी) दुनिया के कई क्षेत्रों में, दैनिक जीवन का एक हिस्सा है- भोजन, कपड़ों और साथी के रूप में, और कलात्मक प्रेरणा के स्रोत के रूप में।
हैम्स्टर्स

हैम्स्टर्स सांध्यचर होते हैं। जंगली क्षेत्रों में वे शिकारियों द्वारा पकड़े जाने से बचने के लिए दिन के उजाले में भूमिगत बिल में छिपे रहते हैं। उनके आहार में सूखे भोजन, बेर, बादाम, ताजे फल और सब्जियों सहित विभिन्न प्रकार के खाद्य प्रदार्थ शामिल हैं। जंगली क्षेत्रों में ये गेहूं, बादाम और थोड़ी-बहुत फल और सब्जियां खाएंगे जो उन्हें जमीन पर पड़े मिल सकते हैं और कभी-कभी ये छोटे-छोटे फल मक्खी, कीट-पतंग और आहार- कृमि जैसे छोटे-छोटे कीड़े खाएंगे. उनके सिर के दोनों तरफ लम्बे-लम्बे फर-रेखित थैलियां होती हैं जिनका विस्तार उनके कन्धों तक होता है, जिन्हें वे भोजन का संग्रह करने के लिए, अपने निवास स्थान पर ले जाने के लिए या बाद में खाने के लिए भोजन से भर देते हैं।
गिनी सूअर

पिग या गिनी सूअर (वैज्ञानिक नाम: केविआ पोर्सेलस), कृतंक परिवार की प्रजाति है। अन्य नाम केवी है जो इसके वैज्ञानिक नाम से आया है। इनके आम नाम के बावजूद, ये जानवर सुअर परिवार से नहीं हैं, न ही ये अफ्रीका में गिनी से आते हैं। वे दक्षिण अमेरिका के एंडीज़ में उत्पन्न हुए।

छिपकली
छिपकली स्क्वमाटा जीववैज्ञानिक गण के सरीसृप प्राणियों का एक उपगण है, जिसमें अंटार्कटिका के अलावा लगभग विश्व भर के हर बड़े भू-भाग में मिलने वाली लगभग 6000 ज्ञात जातियाँ शामिल हैं। ध्यान दें कि सर्प भी स्क्वमाटा गण के सदस्य होते हैं और छिपकली व सर्प दोनों एक ही पूर्वज के वंशज हैं लेकिन परिभाषिक रूप से सर्पों को छिपकली नहीं समझा जाता।

फ्रेट्स

फेरेट (मुस्टेला पुटेरियस फुरो), यूरोपीय पोलकैट का घरेलू रूप है, जो परिवार मस्टलीडे में वेसल, मुस्टेला के समान जीन से संबंधित एक स्तनपायी है। उनके फर आमतौर पर भूरे, काले, सफेद या मिश्रित होते हैं। उनकी औसत लंबाई 51 सेमी (20 इंच) है, जिसमें 13 सेमी (5.1 इंच) पूंछ शामिल है, जिनका वजन लगभग 1.54 पाउंड (0.7-2 किलोग्राम) है, और प्राकृतिक जीवन काल 7 से 10 साल है। फेरेट्स यौन रूप से मंद शिकारी होते हैं, जिनमें नर मादा से काफी बड़े होते हैं।

मछ्ली
मछली शल्कों वाला एक जलचर है जो कि कम से कम एक जोडा़ पंखों से युक्त होती है। मछलियाँ मीठे पानी के स्त्रोतों और समुद्र में बहुतायत में पाई जाती हैं। समुद्र तट के आसपास के इलाकों में मछलियाँ खाने और पोषण का एक प्रमुख स्रोत हैं। कई सभ्यताओं के साहित्य, इतिहास एवं उनकी संस्कृति में मछलियों का विशेष स्थान है। इस दुनिया में मछलियों की कम से कम 28,500 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें अलग अलग स्थानों पर कोई 2,18,000 भिन्न नामों से जाना जाता है | इसकी परिभाषा कई मछलियों को अन्य जलीय प्रणी से अलग करती है, यथा ह्वेल एक मछली नहीं है। परिभाषा के मुताबिक़, मछली एक ऐसी जलीय प्राणी है जिसकी रीढ़ की हड्डी होती है (कशेरुकी जन्तु), तथा आजीवन गलफड़े (गिल्स) से युक्त होती हैं तथा अगर कोई डालीनुमा अंग होते हैं (लिंब) तो वे फ़िन के रूप में होते हैंः

पक्षी
पंख वाले या उड़ने वाले किसी भी जन्तु को पक्षी कहा जाता है। जीव विज्ञान में एविस् श्रेणी के जन्तुओं को पक्षी कहते हैं। इस अण्डा देने वाले रीढ़धारी प्राणी की लगभग 10,000 प्रजातियाँ इस समय इस धरती पर निवास करती हैं। इनका आकार 2 इंच से 8 फीट तक हो सकता है तथा ये आर्कटिक से अन्टार्कटिक तक सर्वत्र पाई जाती हैं। पक्षी ऊँचे पहाडों को उड़ कर पार कर जाते हैं। ये गहरे जल में 250 मीटर तक डुबकी लगा लेते हैं। इन्हें ऐसे महासागरों के ऊपर उड़ते देखा गया है जहाँ से तट हजारों किलोमीटर दूर है। इनका शरीर पंखों से ढँका होता है। सभी प्राणियों में पक्षी सबसे अधिक सुन्दर एवं आकर्षक प्राणी हैं। पंख रहते हुए भी कुछ पक्षी उड़ नहीं सकते हैं परन्तु अधिकतर पक्षी आकाश में उड़ते हैं।
इस श्रेणी के अंदर मुर्गी पालन, बत्तखपालन और कबूतरपालन भी आता है, जिसे लोग शौकिया भी करते हैं।

कछुआ
कछुए (Turtles) या कर्म टेस्टूडनीज़ नामक सरीसृपों के जीववैज्ञानिक गण के सदस्य होते हैं जो उनके शरीरों के मुख्य भाग को उनकी पसलियों से विकसित हुए ढाल-जैसे कवच से पहचाने जाते हैं। विश्व में स्थलीय कछुओं और जलीय कछुओं दोनों की कई जातियाँ हैं। कछुओं की सबसे पहली जातियाँ आज से 15.7 करोड़ वर्ष पहले उत्पन्न हुई थीं, जो की सर्वप्रथम सर्पों व मगरमच्छों से भी पहले था। इसलिये वैज्ञानिक उन्हें प्राचीनतम सरीसृपों में से एक मानते हैं। कछुओं की कई जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं लेकिन 327 आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से कई जातियाँ ख़तरे में हैं और उनका संरक्षण करना एक चिंता का विषय है। इसकी उम्र 300 साल से अधिक होती है।"
पालतू जानवरों को पालना एक शाश्वत क्रिया है। दूध के लिए गाय पालने की कथायें हमें पुरानी कथाओं में भी मिलती हैं। गाय की संख्याओं से किसी राजा की औकात भी मापी जाती थी। गायों के लिए युद्ध भी हुए!

पर हमें यह भी ध्यान में रहना चाहिये कि उस पर हमारा मोह इतना न बढ़ जाय कि हमारे दैनिक जीवन में वह एक व्यवधान के रूप में खड़ा हो जाय!

आज के व्यस्तम युग में हम जितना अपने तक ही सीमित रहें तो अच्छा है। विश्वभर में

व्याप्त कोरोना भय के संदर्भ में भी तो यही बात सर्वविदित हो चुकी है!

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