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निष्पक्ष बयान

निष्पक्ष बयान

यह सिर्फ भ्रांति है कि
कविता होती है 
कवि की कल्पना मात्र 
जिसे वह देता है कलम की धार
पर कविता की वास्तविकता 
जुड़ी है उस दर्द या पीड़ा से 
जिसके अनुभव से गुजरा है कवि
चाहे वह अपनी हो या पराई 
या हो शामिल 
संपूर्ण मानव समाज 
या जुड़ा हो प्रकृति का कोई पहलू
इसी को अपनी लेखनी से 
कवि देता है मूर्त रूप 
यदि पाठक निष्पक्ष भाव से 
करे विचार 
तो कविता बोल उठेगी 
कि तुम भी हो कहीं ना कहीं 
मुझमें शामिल 
कविता रखती है अपनी गरिमा 
वह नहीं करती पसंद ओछापन
नहीं बंध सकती छंदों में 
तब तक 
जब तक कि वह न गुजरी हो 
किसी गहरे अनुभव से
कविता समेटे रहती है 
अपने में सुख-दुख 
उम्मीद, संवेदना ,दर्द,
शक्ति और प्रोत्साहन जैसे 
अनछुए पहलुओं को 
तभी तो अत्यंत पुरानी कविता भी 
हर युग में लगती है जीवंत । 

-- वेद प्रकाश तिवारी

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