कितनी बार सिये।
सत्येन्द्र तिवारी
गीत,छंदअनुबंध,गंध
संबंध परागों के
अग्नि, अश्क
अनुरोध,वचन
संग बादल रागों के
उलझन के अंधियारों में हम
ऐसे दीप लियें
होते रहे प्रवाहित
लय की धारा संग जीये।
पूर्ण चांदनी
छल छल जाती
किरणों के कर से
पर सागर का
ज्वार रहे है
तपते मरुधर से
पंखुरी पंखुरी से बिखरे है
कोमल सपन लिए।
रूप सलोना
टिम टिम जुगनू
नयना कजरारे
काली ,उजली रात
भोर, दिन
संध्या मछुआरे
रहे फेंकते जाल सदा
मन मछली कहां जिये।
वचनों की
सौगंध सहेजे
वो कपास से भोर
कच्चा धागा
कात रही है
मिले न कोई छोर
छिद्र हो रहे है नित नूतन
कितनी बार सिये।
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