सम्वत् २०७७ का साम्वत्सरिक राशिफल एवं कुछ
अन्य बातें :—
सम्वत् २०७७ का नया पंञ्चाग दिनांक २५मार्च
२०२०से
लागू हो गया है, जो
आगामी १२
अप्रैल २०२१
तक लागू रहेगा ।
आंग्ल
नववर्ष (कैलेन्डर इयर) प्रारम्भ होने के बाद कई बन्धुओं ने आग्रह किया था राशिफल पोस्टिंग
के लिये, किन्तु पुराने सम्पर्की
बन्धु जानते हैं कि मैं साम्वत्सरिक राशिफल ही पोस्ट करता हूँ। नियमतः अब से पूर्व
ही इसे प्रकाशित कर देना चाहिए था,किन्तु किंचित विलम्ब हुआ,जिसके लिए
क्षमाप्रार्थी हूँ।
हर वर्ष की भाँति इस बार भी वार्षिक (साम्वत्सरिक)
राशिफल प्रस्तुत किया जा रहा है। किन्तु इससे पूर्व नये सम्वत् के सम्बन्ध में कुछ
खास बातें जानने योग्य हैं, जिन्हें
यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
वर्ष के प्रारम्भ में ‘प्रमादी
’नामक सम्वत्सर रहेगा,
किन्तु
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी,बुधवारदिनांक
६ मई २०२० को (गया समयानुसार) दिन में २ बजकर ५ मिनट से ‘
आनन्द ’नामक
सम्वत्सर का प्रवेश हो जायेगा, परन्तु
वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में ‘प्रमादी
’
नामक
सम्वत्सर का ही प्रयोग करना चाहिए, क्यों
कि नियम है कि वर्षप्रवेश में जो नामधारी है,
वही
आगे भी संकल्पित होना चाहिए। ऐसा प्रायः हर वर्ष ही होता है। ध्यातव्य है कि
किंचित गणितज्ञों नेसंवत्सर नाम परिवर्तन के सम्बन्ध में भेद व्यक्त किया है।
किन्तु आप इस भ्रम में न रहें।
इस सम्वत् २०७७ के प्रवेश के साथ-साथ
कलियुग का ५१२१
वर्ष व्यतीत हो जायेगा। प्रत्येक सम्वत्सर के एक राजा और मंत्री हुआ करते हैं,
जिनके
स्वभावानुसार प्रजाजन सुख-दुःखादि भोग करती है। इस सम्वत्सर के राजा बुध और मंत्री
चन्द्रमा हैं । ये गत सम्वत् से किंचितभिन्न स्थिति है। पिता-पुत्र(शनि-सूर्य) गत
वर्ष भी और इस वर्ष भी(बुध-चन्द्र),किन्तु वहाँ उभय विरोधी भाव था,जबकि यहाँ एक
पक्षीय मैत्री भाव है। पौराणिक प्रसंगों के जानकार ये जानते हैं कि चन्द्रमा के
पुत्र हैं बुध,जो गुरुपत्नी तारा से उत्पन्न हुए हैं। चन्द्रमा को अपने पुत्र के
प्रति स्नेह है,किन्तु बुध को अपने जनक के प्रति आक्रोश है। ऐसे में स्वाभाविक है
कि राजा-मन्त्री का ये आपसी सम्बन्ध प्रजाजन के लिए सुखद नहीं हो सकता । उच्चपदस्थ
पदाधिकारियों का अपने सहयोगीजनों के प्रति असन्तोषप्रद आक्रोश बना रहेगा,फिर भी
शासनकार्य सुचारु ढंग से गतिमान होने की आशा की जा सकती है।
जगल्लग्न के अनुसार लग्नेश मंगल तृतीयभाव यानी पराक्रम स्थान में
विराज रहे हैं अपनी उच्च राशि मकर पर। स्वाभाविक है कि ऐसे में विश्वपटल पर
राष्ट्र की प्रतिष्ठा और प्रभाव में बढ़ोत्तरी होगी। निश्चित है कि विरोधियों को
ईर्ष्या होगी और तरह-तरह के षड़यन्त्र भी कर सकते हैं,किन्तु अन्ततः उन्हें हताशा
और निराशा ही हाथ लगेगी। राजनीतिक दलों में आपसी खींचतान की स्थिति बनी रहेगी।
आरोप-प्रत्यारोप का दौर पूर्ववत चलता रहेगा। फिर भी राष्ट्रनिर्माण में बाहरी
योगदान भी सुनिश्चित है।
जगल्लग्न के रोगेश भी मंगल
ही हैं। तृतीयस्थ होकर अपने भाव को पूर्ण चतुर्थ दृष्टि से देख रहे हैं। रोगस्थान
आगे-पीछे दो शुभग्रहों—बुध और शुक्र से घिरा हुआ है,तथा दशमेश सूर्य अपनी उच्चराशि
मेष पर वहाँ विराज रहे हैं। स्वाभाविक है कि रोग और शत्रुओं का भयंकर कुचक्र
चलेगा,किन्तु किंचित परेशानियों के पश्चात् शुभग्रहों के सुप्रभाव के कारण सबकुछ
सुव्यवस्थित हो जायेगा । रोग-शत्रुओं से सामना करने में पराक्रमी मंगल और
रोगभावस्थ सूर्य का महत् योगदान रहेगा।
आर्द्राप्रवेशांकानुसार
आंशिक वृष्टियोग प्रतीत हो रहा है। शारदीय धान्यादि की पैदावार सन्तोषप्रद होनी
चाहिए। ग्रैष्मिकधान्य का भी उत्तम योग प्रतीत हो रहा है। फल एवं सब्जियों के
मूल्य भी अनुकूल रहेंगे। किसानों की प्रगति होगी।
विविध वैशम्य के बावजूद
सुख-समृद्धि-शान्ति का वातावरण बना रहेगा।
इस सम्वत् में दो ग्रहण
लगेंगे । दोनों सूर्यग्रहण ही हैं। प्रथम सूर्यग्रहण आषाढ़कृष्ण अमावस्या रविवार दिनांक
२१-६-२०२० को लगेगा,जो भारत के अधिकांश भागों में खण्डग्रास दर्शित होगा । इसका
प्रारम्भ भारतीय मानक समयानुसार दिन में ९.१६ से और समापन अपराह्न ३.४ बजे होगा एवं
दूसरा सूर्यग्रहण मार्गशीर्ष अमावस्या सोमवार दिनांक१४-१२-२०२० को लगेगा। ये खग्रास सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा
। इसका प्रारम्भ भारतीय मानक समयानुसार रात्रि ७.०४ से है एवं मोक्ष रात्रि १२.२३
बजे है। अस्तु।
अब यहाँ आगे क्रमशः मेषादि
बारहों राशि के जातकों के लिए संक्षिप्त राशिफल प्रस्तुत किया जा रहा है। आमतौर पर
सीधे अपनी राशि जानकर फल देख लेने की परम्परा है;
किन्तु
इस सम्बन्ध में मैंने पिछली बार भी कहा था,पुनः
स्मरण दिला रहा हूँ— फल-विचार
सिर्फ राशि से न करके, लग्न
से भी करें। जैसे - मेरी राशि कुम्भ है और लग्न सिंह । सटीक फल विचार के लिए
राशिफल-विवरण में दिए गये दोनों फलों का विचार करके निश्चय करना चाहिए । मान लिया
कुम्भ राशि का फल उत्तम है, किन्तु
सिंह लग्न का फल प्रतिकूल है । ऐसी स्थिति में निश्चयात्मक परिणाम मध्यम होगा ।
दूसरी
बात ध्यान देने योग्य यह है कि आपके नाम का प्रभाव भी सामान्य जीवन में काफी हद तक
पड़ता है। हमारे यहाँ विधिवत नामकरण-संस्कार की परम्परा थी । नाम सार्थक हुआ करते
थे,
उनका
निहितार्थ हुआ करता था; किन्तु
अब तो इंगलैंड-अमेरिका के कुत्ते-विल्लयों का नाम हम अपने बेटे-बेटियों का रखकर
गौरवान्वित होते हैं । नियमतः नाम के प्रथमाक्षर के अनुसार बनने वाली राशि के फल
का भी विचार कर लेना चाहिए । इस प्रकार त्रिकोणीय दृष्टि से राशिफल-विचार करना
सर्वोचित है ।
एक
और,सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण तथ्य, जिसे
लोग प्रायः नजरअंदाज कर देते हैं— व्योम-मण्डल
में सत्ताइस नक्षत्र और बारह राशियों के परिक्रमा-पथ पर विचरण करते हुए सूर्यादि
नवग्रह (ध्यातव्य है कि अरुण, वरुण,
यम
को प्राचीन भारतीय ज्योतिष में स्थान नहीं है) भूमण्डलीय समस्त पद-पदार्थों को
प्रभावित (नियन्त्रित) कर रहे हैं। विश्व की आबादी सात अरब से भी अधिक की है।
इन्हें मात्र बारह भागों में विभाजित करके किसी ठोस फलविचार / निर्णय पर पहुँचना
कितना बचकाना (नादानी) हो सकता है? सिर्फ
राशि वा लग्न के आधार पर मनुष्य मात्र को बांट देना क्या सही और समुचित नियम हो
सकता है? आपका उत्तर भी ‘कदापि
नहीं’
ही
होगा। आर्थिक,सामाजिक,
राजनैतिक,
धार्मिक,
शारीरिक,
मानसिक
आदि कई मापदण्ड होंगे इन्हें प्रभावित करने हेतु । इसके साथ ही अलग-अलग व्यक्तियों
के जन्मकालिक ग्रहों की स्थिति, तथा
वर्तमान (गोचर) स्थिति आदि कई बातों पर किसी व्यक्ति का वर्तमान और भविष्य आधृत
होता है । राशि तो मात्र जन्मकालिक चन्द्रमा की स्थिति को ईंगित करता है और लग्न
जन्मकालिक कक्षों (भावों) की सांख्यिकी मात्र है। अतः फलविचार कितना सार्थक-कितना
निरर्थक हो सकता है, आप
स्वयं समझ सकते हैं। पुनः यह कहना आवश्यक नहीं रह जाता कि राशिफल के आधार पर अपने
जीवन को आशा-निराशा, प्रसन्नता-अप्रसन्नता
के झूले में हिचकोले खाने से बचावें और अपना तात्कालिक कर्म यथोचित रीति से करने
का प्रयास करें। अस्तु।
सुविधा के लिए ‘अबकहड़ा
चक्र-सारणी’ भी राशिफल के साथ प्रस्तुत
है । इससे उन लोगों को भी लाभ होगा, जिन्हें
अपनी राशि और जन्म-समय आदि की सही जानकारी नहीं है।
विक्रम सम्वत् २०७७,शकाब्द १९४२,खृष्टाब्द
२०२०-२०२१
{ दिनांक
२५ मार्च २०२० से १२ अप्रैल २०२१ तक का
राशिफल }
बारह
राशियों का क्रमानुसार फल-विचार
१.मेष राशि- (चू,चे,चो,ला,ली,लू,ले,लो,अ)
—
मेष राशि वाले लोगों के लिए ये वर्ष
सामान्य शुभदायक होगा। आर्थिक स्थिति सामान्य बनी रहेगी। व्यापार में लाभ के आसार
हैं। नौकरी पेशा लोगों के उन्नति के योग दीख रहे हैं। सन्तान पक्ष की परेशानी
झेलनी पड़ सकती है। उनका स्वास्थ्य खराब रह सकता है। अध्ययन कार्य में बाधायें आ
सकती हैं। नीचराशिस्थ वृहस्पति के कारण कार्यक्षेत्र में बाधायें उत्पन्न होती
रहेंगी। वर्ष के उत्तरार्द्ध में उन्नति और भाग्योदय के संकेत मिल रहे हैं। माता-पिता
का स्वास्थ्य बाधित रह सकता है। विरोधियों से सन्धि की स्थिति बन सकती है। विवादों
में सफलता मिल सकती है।
वर्ष का चौथा,आठवाँ और बारहवाँ
महीना(आषाढ़,कार्तिक और फाल्गुन)किंचित कष्टकर और विपरीत धर्मी है,अतः इन महीनों
में कोई नये कार्य का प्रारम्भ न करें और संयमित जीवन व्यतीत करें।मेष राशि और मेष
लग्न वाले लोगों के लिए लाल चन्दन का तिलक लगाना लाभ दायक होगा। अपने आराध्यदेव की
उपासना नियमित करते रहें। इससे ग्रहजनित बाधाओं में शान्ति मिलेगी। साथ ही जन्म
कुण्डली के अनुसार भी महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन आदि
नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि पूर्ण सफलता लब्ध हो सके। अस्तु।
२.वृष राशि- (ई,उ,ए,ओ,वा,वी,वू,वे,वो)—
वृष राशि वालों के लिए यह संवत् सामान्य
शुभदायक होगा। वर्ष के उत्तरार्द्ध में आर्थिक संकट झेलना पड़ सकता है। अतः वैसे
समय में संयम और होशियारी से काम लें। निराशा-हताशा से बचें। दाम्पत्यजीवन में
कटुता आसकती है। अत्यधिक परिश्रम करना पड़ सकता है,किन्तु तदनुकूल लाभ नहीं
मिलेगा,जिसके कारण असन्तोष की स्थिति बनी रहेगी। भाई-बन्धुओं के उन्नति के आसार
हैं। भूमि,भवन,वाहन,माता आदि का भावफल अच्छा है। क्रय-विक्रय से लाभ होगा। पहले से
बन रही योजनाओं में सफलता मिल सकती है। सन्तान पक्ष का समुचित सहयोग मिलते रहना
चाहिए। वैवाहिक जीवन का उतार-चढ़ाव कष्टकर स्थिति उत्पन्न कर सकता है। पारिवारिक
कलह की स्थिति परेशान कर सकती है।
वर्ष के दूसरे,पाँचवें और ग्यारहवें
माह अनिष्टकारी हैं,अतः इन महीनों में कोई नवीन और महत्त्वपूर्ण कार्य का शुभारम्भ
करने से बचें। महीनों की गणना
चैत्रादिक्रम से करें। अभिमन्त्रित किया हुआ छतिवन की जड़ या छाल ताबीज में भर कर
धारण करें। तत्काल शान्ति मिलेगी। साथ ही अपने आराध्यदेव की उपासना नियमित रुप से
करते रहें। इससे ग्रह जनित बाधाओं में शान्ति मिलेगी। जन्म कुण्डली के अनुसार
महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए।
ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
३.मिथुन राशि- (का,की,कु,घ,ङ,छ,के,को,हा)—
मिथुन राशि वालों के लिए यह वर्ष
किंचित कष्टकर होगा,क्यों कि शनि की अढ़ैया से ये राशि ग्रसित हो चुकी है इस बार।
मानसिक चिन्ता,पारिवारिक विवाद,आर्थिक तंगी और संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़
सकता है। अनावश्यक भाग-दौड़ की स्थिति बन सकती है। शनि जनित विघ्नों के शमन हेतु
शनिस्तोत्र का पाठ,पीपल में जलार्पण,दीपदान आदि क्रियायें लाभ दायक होंगी।
ध्यातव्य है कि शनि-शान्ति हेतु लोग
सीधे हनुमान जी के शरण में चले जाते हैं,किन्तु ये पूर्णतः सही नहीं है। जिनकी
कुण्डली में शनि तुलाराशि में(अपनी उच्चराशि) वा मकर-कुम्भ(स्वगृही) में हों
उन्हें तो हनुमान जी की आराधना शनि-शान्ति हेतु नहीं ही करनी चाहिए,इससे शनि
क्षुब्ध होते हैं। हनुमानजी के भय से कार्य तो कर देते हैं,किन्तु अनमने होकर।
वर्ष के तीसरे,नौवें और दसवें महीने
अशुभ फलदायी हैं। अतः इन महीनों में कोई नयी कार्ययोजना बनाने और उस पर पहल करने
से परहेज करें। महीनों की गणना चैत्रादिक्रम से करें। कटहल का पका हुआ फल मौसम में
उपलब्ध हो तो एक-दो बार अवश्य खा लें। कटहल की पत्तियों पर लड्डुगोपाल की मूर्ति
को स्थापित कर नित्य पूजन करें। आशातीत लाभ होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा
एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि
विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
४.कर्क राशि - (ही,हू,हे,हो,डा,डी,डू,डे,डो)—
कर्क राशि के जातकों के लिए यह
संवत् सामान्य शुभदायक रहेगा। विशेष आर्थिक लाभ की सम्भावना तो नहीं है फिर भी
भूमि सम्बन्धित कार्यों में लाभ मिलने की आशा है । सोना-चांदी,रत्न आदि से जुड़े
व्यवसायियों को विशेष लाभ मिलने की आशा है। इस राशि के सामान्य जन भी संग्रह के
तौर पर कार्य करें तो लाभदायक होगा। चोट-चपेटया ऑपरेशन की स्थिति बन सकती है। शारीरिक
स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रहेगी । वर्ष के तीसरे,छठे और बारहवें महीने
किंचित अनिष्टकर हैं। महीनों की गणना चैत्रादिक्रम से करें। अतः इन महीनों में कोई नयी कार्ययोजना बनाने और
उस पर पहल करने से परहेज करें। पलाश के चार बीज लाल कपड़े में वेष्ठित(बांध कर)
ताबीज की तरह धारण करें। पलाश की लकड़ी और गोघृत से सोमवार की रात्रि में विधिवत
हवन करें। इन उपचारों से बड़ी शान्ति मिलेगी और सामयिक संकटों का निवारण भी होगा।
सम्प्रति जारी उभय दशापतिग्रहों की शान्ति पर भी ध्यान देना चाहिए। अस्तु।
५.सिंह राशि - (मा,मी,मू,मे,मो,टा,टी,टू,टे)—
सिंह राशि वालों के लिए यह संवत्सर
सामान्य शुभदायक रहेगा। उन्नति के नये मार्ग दृष्टिगत होंगे । इस राशिजात
व्यक्तियों के भाई-बन्धुओं का भी भाग्योदय हो सकता है। सन्तान सुख की प्राप्ति हो
सकती है। नौकरी आदि के लिए प्रतीक्षारत लोगों को अपने कार्य में सफलता मिलने की
आशा है। बाल-बच्चों को किंचित शारीरिक कष्ट हो सकता है। विद्यार्थियों के लिए ये
वर्ष उत्तम प्रतीत हो रहा है। भूमि-भवन,वाहनादि के क्रय-विक्रय के लिए भी उत्तम
योग मिल रहा है। मित्रों का सहयोग मिलता रहेगा। भौतिक सुख-साधनों की बढ़ोत्तरी हो
सकती है। उलझी हुयी समस्याओं का समाधान हो सकता है। विरोधियों का शमन होगा और
सन्धिवार्ता की स्थिति बन सकती है।
वर्ष का तीसरा,नौवां और बारहवां महीना
किंचित अनिष्टकर हैं। (महीनों की गणना चैत्रादिक्रम से करें।) अतः अच्छा होगा कि
इन महीनों में कोई नयी योजना पर अमल न करें। विविध कष्टों के निवारण के लिए शिव
एवं हनुमद् आराधना शान्तिदायक होगी। वटवृक्ष का वरोह(ऊपर से नीचे की ओर लटकती
जड़ें) जल में घिस कर तिलक लगायें। वरोह का छोटा टुकड़ा ताबीज में भर कर धारण करना
भी लाभदायक होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की शान्ति के
लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
६.कन्या राशि- (टो,पा,पी,पू,ष,ण,ठ,पे,पो)—
कन्या राशि वालों के लिए यह संवत्सर उन्नतिकारक
होते हुए भी आर्थिक कार्यों में बाधक प्रतीत हो रहा है। परन्तु निराशा की बात नहीं
है। थोड़े संघर्षपूर्ण स्थिति के पश्चात् अनुकूल स्थिति मिलने लगेगी। सन्तान पक्ष
से चली आरही निराशा भी आशा में बदल सकती है। उन्हें अनुकूल स्थिति प्राप्त हो सकती
है। नौकरी पेशा वालों के लिए भी अच्छे योग दीख रहे हैं। विद्यार्थियों के लिए भी
अनुकूल स्थिति है। सफलता के आसार अधिक हैं। न्यायिक कार्यों में अनुकूलता आयेगी।
वाद-विवादों में सफलता मिलेगी। नाम-यशपूर्ण किंचित कार्यों को करने का अवसर भी मिल
सकता है।
वर्ष के चौथे,आठवें और बारहवें महीने
अधिक प्रतिकूल हो सकते हैं। अतः इन महीनों
में कोई नयी योजना न बनायें। ध्यातव्य है कि महीनों की गणना चैत्रादि क्रम से ही
करें । आम के कच्चे और पके फलों को ब्राह्मण,
भिखारियों
और आत्मीय जनों में बांट कर, सबसे
अन्त में स्वयं भी खा लें। अद्भुत लाभ होगा। सम्भव हो तो आम के वृक्ष में नियमित
जल डालें। यह भी आपके लिए लाभदायक होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं
अन्तर्दशापतियों की शान्ति के लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष
लाभ हो सके। अस्तु।
७.तुला राशि- (रा,री,रु,रे,रो,ता,ती,तू,ते)—
तुला राशि वालों के लिए इस सम्वत्
का पूर्वार्द्ध किंचित कष्टप्रद होगा,किन्तु उत्तरार्द्ध सुख-शान्तिप्रद होना
चाहिए। ध्यातव्य है कि मकर राशि पर शनि के संक्रमण के कारण तुला राशि वालों के लिए
अढ़ैया(लघुकल्याणी)का दुष्प्रभाव प्रारम्भ हो चुका है। अतः शनि प्रभाव जनित
आर्थिक,मानसिक परेशानियाँ झेलनी पड़ सकती हैं । स्वजनों से अकारण विवाद की स्थिति
उत्पन्न होगी। पारिवारिक-सामाजिक जीवन में भी पर्याप्त उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी
रहेगी। पाचनतन्त्र की बीमारियाँ सता सकती हैं। व्यापारिक कार्यों में अनूकूलता
रहेगी। परिवार में मांगलिक कार्य भी हो सकते हैं।
न्यायिक कार्यों में गति मन्द बनी रहेगी। भूमि-विवाद भी उत्पन्न हो सकते
हैं। इसमें धैर्य के काम लेना होगा,अन्यथा परेशानी बढ़ेगी। विशेष पूँजीनिवेश करने
से बचें। किसानों के लिए वर्ष सामान्य रहेगा। व्यापारी वर्ग की स्थिति पूर्ववत
रहेगी।
वर्ष के प्रथम,पंचम एवं नवम मास
किंचित कष्टप्रद होंगे। अतः इन महीनों में
कोई नयी योजना न बनायें। ध्यातव्य है कि महीनों की गणना चैत्रादि क्रम से करें।
मौलश्री(बकुल) के पुष्प उपलब्ध हों तो उन्हें भगवान विष्णु (राम,कृष्णादि
किसी विग्रह) पर अर्पित करें। मौलश्री की छाल को चूर्ण बनाकर ताबीज में भरकर धारण
करें। विशेष लाभ होगा। जन्मकुण्डली के अनुसार महादशा एवं अन्तर्दशापतियों की
शान्ति के लिए जप-हवन आदि नियमित करना/कराना चाहिए। ताकि विशेष लाभ हो सके। अस्तु।
८.वृश्चिक राशि- (तो,ना,नी,नू,ने,नो,या,यी,यू)—
वृश्चिक राशि वालों के लिए यह वर्ष
पहले की अपेक्षा काफी अच्छा होगा। हालाकि लम्बे समय से चली आ रही शनि की साढ़ेसाती समाप्त हो चुकी है। इस
कारण पहले की अपेक्षा काफी राहत महसूस होगी। परिवार में मांगलिक कार्य सम्पन्न हो
सकते हैं। स्वास्थ्य सम्बन्धी किंचित नयी समस्या उत्पन्न हो सकती है। विद्यार्थीवर्ग
को नयी बाधायें झेलनी पड़ सकती हैं। अध्ययनकार्य में बाधाएं आसकती हैं। सामाजिक,
पारिवारिक सहयोग और सद्भाव कि स्थिति बनेगी। मित्रों का भी सहयोग मिलेगा । न्यायिक
कार्यों में प्रगति आयेगी। रुके हुए कार्य सम्पन्न होंगे। पूँजी निवेश की अनूकूल
स्थिति बनेगी। कृषकों एवं व्यापारी वर्ग को सामान्य लाभ मिलेंगे।
वर्ष के तीसरे,आठवें और ग्यारहवें महीने
किंचित कष्टकर हो सकते हैं। इन महीनों में कोई नयी योजना पर कार्यान्वयन न करें।
अपना सामान्य प्रयास जारी रखें। शान्ति-लाभ होगा। खैर की लकड़ी और घी से मंगलवार
को दोपहर में यथोचित हवन करें। पान यदि खाते हों तो कत्था अधिक खायें। इन उपचारों
से यथोचित लाभ मिलेगा। तात्कालिक महादशा,अन्तर्दशादि
के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि
विशेष लाभ हो। अस्तु।
९.धनु राशि - (ये,यो,भा,भी,भू,ध,फ,ढ,भे)—
धनु राशि वालों के लिए यह संवत्सर प्रायः कष्ट और चिन्ताओं से घिरा हो
सकता है। मकर राशि में शनि के संचरण से साढ़ेसाती का प्रभाव जारी रहेगा,
क्यों
कि शनि का पृष्ट पाद इस राशि पर ही है।
यानी धनुराशि वालों के निम्नांगो पर शनि का प्रकोप है। वर्ष के अन्दर इनका वक्री-मार्गी
संचरण भी होगा, जिसके
कारण परेशानियाँ कमोवेश होती प्रतीत होंगी। फिर भी कुल मिलाकर शनि का गहरा
दुष्प्रभाव बना ही रहेगा। निरर्थक दौड़धूप,मानसिक
तनाव,परेशानी,सन्ताप,
उद्विग्नता,
आर्थिक-शारीरिक
क्लेश आदि प्रायः वर्ष पर्यन्त झेलने पड़ेंगे। विशेष कर उदर व्याधि की आशंका है।
आर्थिक कठिनाई, स्वजनों
से अकारण वैर-विरोध,पारिवारिक
अशान्ति का वातावरण बना रहेगा। अर्थ व्यवस्था के लिए कठोर संघर्ष करना पडेगा।
स्वास्थ्य के प्रति विशेष सचेष्ट रहने की आवश्यकता है। अवांछित कार्यों को करने के
लिए विवश होना पड़ सकता है। न्यायिक उलझनों में पड़ना पड़ सकता है। किसी निकट
सम्बन्धी के वियोग की स्थिति आ सकती है। हालाँकि लम्बे समय से रुके हुए कुछ कार्य
सम्पादित हो सकते हैं। भूमि-भवन-वाहनादि के क्रय-विक्रय में सावधानी वरतें। सन्तान
पक्ष से किंचित चिन्ता की स्थिति बन सकती है। उनके स्वास्थ्य को लेकर विशेष रुप से
परेशानी उठानी पड़ सकती है। नये कार्यों का भी अवसर मिल सकता है। किन्तु सोच-समझ
कर निर्णय लेना चाहिए। रोग-व्याधि में धन का अपव्यय होगा। शत्रुपक्ष की प्रबलता भी
दीखेगी। वर्ष का दूसरा,सातवाँ और दसवाँ महीना विशेष कष्टप्रद हो सकता हैं।
ध्यातव्य है कि महीनों की गणना चैत्रादि क्रम से करें। अतः अच्छा होगा कि इन
महीनों में कोई नयी कार्य-योजना न बनायें।
मुख्य रुप से शनि की आराधना पर ध्यान देना जरुरी है। साथ ही अन्य उपाय भी
करने चाहिए। तात्कालिक महादशा और अन्तर्दशापतियों की यथोचित शान्ति का उपाय भी
करना चाहिए। हल्दी का तिलक (स्त्रियों के लिए
पीला सिन्दूर का व्यवहार) लाभदायक होगा। अपने प्रिय देवता की आराधना करते
रहें। विशेष कष्ट का निवारण अवश्य होगा। पीपल की लकड़ी और घी से प्रत्येक गुरुवार
को यथोचित होम किया करें। इससे काफी राहत मिलेगी। जन्म कुंडली के तात्कालिक महादशा,अन्तर्दशादि
के ग्रहों का उपचार भी साथ-साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि
विशेष लाभ हो। अस्तु।
१०.मकर राशि- (भो,जा,जी,खी,खू,खे,खो,गा,गी)—
मकर राशि वालों के लिए यह संवत्सर
प्रायः कष्ट और चिन्ताओं से घिरा हो सकता है। शनि के संचरण से साढ़ेसाती का प्रभाव
और भी गहरा हो गया है,क्यों कि शनि का मध्य पाद इस राशि पर आरुढ़ है। इस प्रकार
मकर राशि वालों का हृदयस्थल शनि के चपेट में आया हुआ है। वर्ष के अन्दर इनका
वक्री-मार्गी संचरण भी होगा, जिसके
कारण परेशानियाँ कमोवेश होती प्रतीत होंगी। फिर भी कुल मिलाकर शनि का गहरा
दुष्प्रभाव बना ही रहेगा। कार्यक्षेत्र में परिवर्तन के आसार हैं। नौकरी पेशा
लोगों का स्थानान्तरण भी हो सकता है।निरर्थक दौड़धूप,
मानसिक
तनाव,
परेशानी,
सन्ताप,
उद्विग्नता,
आर्थिक-शारीरिक
क्लेश आदि प्रायः वर्ष पर्यन्त झेलने पड़ेंगे। विशेषकर मानसिक संताप अधिक झेलना
पड़ सकता है। किसी बात में अनिर्णय की स्थिति बनी रह सकती है। हालाकि कोई निर्णय
बहुत सोच-विचार कर और अनुभवियों की राय से ही करनी चाहिए। क्यों कि शनि के प्रभाव
से गलत निर्णय (गलत कदम) की अधिक आशंका है। वाहन दुर्घटना हो सकती है। माता-पिता
को शारीरिक पीड़ा हो सकती है। वर्ष के उत्तरार्द्ध में परिवार में रोग-शत्रु की
बढ़ोत्तरी हो सकती है। नौकरी पेशा वालों को समय पर वेतन आदि न मिलने के कारण आर्थिक
संकट झेलना पड़ सकता है। व्यापारी वर्ग के लिए भी ये वर्ष आर्थिक रुप से सुखद नहीं
कहा जा सकता । साझेदारी के कार्यों में वाधायें आयेगी। ऑपरेशन की स्थिति भी बन
सकती है। राजनैतिक सम्बन्धों में मजबूती आयेगी।
वर्ष के दूसरे,छठे और दसवें महीने
प्रायः अशुभ फलदायी हैं। अतः इन महीनों में किसी प्रकार की नयी योजना बनाने से
बचें। शीशम(विशेष कर काला शीशम) के फूल शीशे के पात्र में भर कर घर में
सुविधानुसार किसी ऐसे स्थान पर रखे दें
जहां नित्य उन पर दृष्टि पड़ सके। सड़ने से पहले उसे विसर्जित कर दूसरा फूल रख
दें। अद्भुत लाभ होगा। तात्कालिक महादशा,अन्तर्दशादि
के ग्रहों का उपचार भी साथ-साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि
विशेष लाभ हो। अस्तु।
११.कुम्भ राशि- (गू,गे,गो,सा,सी,सू,से,सो,दा)—
कुम्भ राशि वालों के लिए यह सम्वत्सर नयी
समस्याएं लेकर आया है। शनि के मकरराशि संचरण के कारण कुम्भराशि जातकों के लिए
साढ़ेसाती का दौर प्रारम्भ हो चुका है गत सम्वत के अन्त से ही। ध्यान रहे कि इस
राशि के स्वामी स्वयं शनिदेव ही हैं,इस कारण अपने आराधकों पर विशेष कृपादृष्टि भी
अवश्य रखेंगे। कुम्भ राशि वालों को शनि-तुष्टि-शान्ति हेतु हनुमानजी की आराधना कदापि
नहीं करनी चाहिए, बल्कि सीधे शनिदेव की ही आराधना करनी चाहिए। उदर-विकार के कारण
किंचित कष्ट झेलना पड़ सकता है। स्वजनों से विरोध की स्थिति बन सकती है। आर्थिक
कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। विद्यार्थियों,शोधकर्ताओं और अध्यवसायियों
के लिए ये वर्ष उत्तम होना चाहिए। साझेदारी कार्यों में विवाद की स्थिति उत्पन्न
हो सकती है,अतः सावधानी और संयम से काम लेने की आवश्यकता है। यदि पहले से साझेदारी
कार्य में न हों तो नयी साझेदारी व्यवस्था में न उलझे। धार्मिक कार्यों में सफलता
मिलेगी । व्यावसायिक गतिविधियाँ अनुकूल होंगी।
वर्ष के प्रथम,पंचम और नवम मास प्रायः
अशुभ फलदायी हैं। अतः इन महीनों में किसी प्रकार की नयी योजना बनाने से बचें।
सम्भव हो तो घर के पश्चिम दिशा में शमी का पौधा स्थापित करें और उसकी पत्तियाँ
भगवान भोलेनाथ को नित्य अर्पित करें। शमी का फूल उपलब्ध हो तो उसे भी शिवार्पण
करना चाहिए। शमी की लकड़ी और घी से शनिवार को संध्या समय हवन करने से विशेष लाभ
होगा। शिव की आराधना लाभदायक होगी। तात्कालिक महादशा,अन्तर्दशादि
के ग्रहों का उपचार भी साथ-साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि
विशेष लाभ हो। अस्तु।
१२.मीन राशि-(दी,दू,थ,झ,ञ,दे,दो,चा,ची)—
मीन राशि वाले लोगों के लिए यह
संवत्सर प्रायः शुभदायक रहेगा। सुख-संसाधनों पर व्यय होगा,फिर भी अभाव और असन्तोष
की स्थिति बनी रह सकती है । परिवार में किसी नवीनकार्य का शुभारम्भ हो सकता है।
पारिवारिक वातारवरण अनुकूल बना रहेगा। माता या पिता का स्वास्थ्य किंचित बाधित रह
सकता है। वाहन दुर्घटना का शिकार होना पड़ सकता है। भ्रातृविवाद हो सकता है। किसी
निकट सम्बन्धी का वियोग सहना पड़ सकता है। उद्योगकर्मियों को सामान्य लाभ मिलेंगे।
न्यायिक कार्यों में सफलता मिलेगी। वौद्धिक विकास का वातावरण अनुकूल होगा।
वर्ष के दूसरे,पांचवें,नौवें और
बारहवें महीने किंचित कष्टप्रद होंगे। अतः उन महीनों में कोई नवीन कार्य की योजना
न बनावें और न पहल करें। नित्य वटवृक्ष
में जल डालना, परिक्रमा
करना,
तथा
वरोह वा वट-पत्र को तकिये में डाल कर सोने से चमत्कारी लाभ होगा। तात्कालिक महादशा,
अन्तर्दशादि
के ग्रहों का उपचार भी साथ साथ अवश्य करना चाहिए,ताकि
विशेष लाभ हो। अस्तु।
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