श्री राम
तुम दशरथ कौशल्या नन्दन,
केकई, सुमित्रा के प्यारे।
सीता के करूणानिधान,
जनक - सुनैना के तारे।
सूर्यवंशी, धनुषधारी,
ताड़का को मारे।
चन्द्रमुकुट पीताम्बरधारी,
भक्तों के रखवाले।
तुलसी की नेत्र ज्योति तुम,
शबरी के सपने।
सुग्रीव के धर्मबन्धु तुम,
महावीर के अपने।
लंका में मेघनाद पछाड़ा,
रावण का अन्त कर डाला।
मुक्त हुई जगजननी जानकी,
सहज हुई सब जीवन धारा।
हे श्री राम कर्मक्षेत्र में,
तुमने जो हमें ज्ञान दिया।
भारत ही क्या, सारे जग पर,
तुमने यह उपकार किया।
✍️प्रभात कुमार धवन
उपसंपादक - 'आज' दैनिक
फ्रेजर रोड, पटना 800001
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