दिल्ली बोल रही है! (हिंदी गजल)
संजय कुमार मिश्र"अणु", वलिदाद,अरवल(बिहार)
दिल्ली बोल रही है सुनों,अपने मन की बात।
जो कहना है कह लो पर-
ये याद रहे औकात।।१।।
तेरी गिनती यहां नही है,
मन्नत विनती यहां नहीं है।
हम भले तुम्हारे साथी हैं पर-
मेरी है अलग जमात।।२।।
सच कहने की बात नहीं है,
शीतयुद्ध है घात नहीं है।
बंद आखों से देखते जाओ-
तुम मेरा उत्पात।।३।।
यदि चाहते हो तुम रहना,
रहो मान कर मेरा कहना।
बद से भी बदतर होगा-
देखो ये हालात।।४।।
दिख रही जो छैल छविली,
मना रही है रंग रंगेली।
उसके घर पर भेज दिये हैं-
बिन दुल्हे की बारात।।५।।
---:भारतका एक ब्राह्मण.