Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

विधाता तेरी दुनिया में क्या हो रहा है

विधाता तेरी दुनिया में क्या हो रहा है

जीतेन्द्र कानपुरी (नन्ना )
विधाता तेरी दुनिया में ,क्या हो रहा है ।
आदमी ही आदमी का, खून पी रहा है ।।

मारे जा रहे है लोग, उन्नति की होड़ में ।
 खफ रही है जिंदगी, कीटाणु बम के सोध में ।।

कर रहे दूसरों के, नाश की तैयारियां ।
फैलती ही जा रही है, आजकल बीमारियां ।।

ऐसी उन्नति सुनो ,सच में ये बेकार है ।
इस समय तो आदमी ही ,आदमी का काल है ।।

प्रकृति से उपद्रव की, चल रही तैयारियां ।
 कुछ नष्ट करके जाएंगी ये, घातक बीमारियां ।।

अभी तो और भी, खराब वक्त आएगा ।
आदमी ही आदमी को, मारकर  खाएगा ।।

विज्ञान के इस युग में ,विज्ञान की मनमानी हुई ।
देखकर हालात, प्रकृति पानी पानी हुई ।।

मगर कोन मानता है, प्रकृति के संदेश को ।
उन्नति बस चाहिए, विज्ञान की हर देश को ।।

इस विषैले व्यापार में, हानियां ही हानियां है ।
इंसान, जीव - जंतु, पशु - पक्षी, सबको परेशानियां है ।।

छटिग्रस्त होगा विश्व ,विज्ञान के आवेश में ।
दुख के अंबार होगे एक दिन हर देश में ।।
लेखक कवि ..जीतेन्द्र कानपुरी (नन्ना )
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश