विधाता तेरी दुनिया में क्या हो रहा है
जीतेन्द्र कानपुरी (नन्ना )
विधाता तेरी दुनिया में ,क्या हो रहा है ।
आदमी ही आदमी का, खून पी रहा है ।।
मारे जा रहे है लोग, उन्नति की होड़ में ।
खफ रही है जिंदगी, कीटाणु बम के सोध में ।।
कर रहे दूसरों के, नाश की तैयारियां ।
फैलती ही जा रही है, आजकल बीमारियां ।।
ऐसी उन्नति सुनो ,सच में ये बेकार है ।
इस समय तो आदमी ही ,आदमी का काल है ।।
प्रकृति से उपद्रव की, चल रही तैयारियां ।
कुछ नष्ट करके जाएंगी ये, घातक बीमारियां ।।
अभी तो और भी, खराब वक्त आएगा ।
आदमी ही आदमी को, मारकर खाएगा ।।
विज्ञान के इस युग में ,विज्ञान की मनमानी हुई ।
देखकर हालात, प्रकृति पानी पानी हुई ।।
मगर कोन मानता है, प्रकृति के संदेश को ।
उन्नति बस चाहिए, विज्ञान की हर देश को ।।
इस विषैले व्यापार में, हानियां ही हानियां है ।
इंसान, जीव - जंतु, पशु - पक्षी, सबको परेशानियां है ।।
छटिग्रस्त होगा विश्व ,विज्ञान के आवेश में ।
दुख के अंबार होगे एक दिन हर देश में ।।
लेखक कवि ..जीतेन्द्र कानपुरी (नन्ना )
कानपुर नगर उत्तर प्रदेश