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भगवान शिव के अवतार पिप्लाद ऋषि



भगवान शिव के अवतार पिप्लाद ऋषि
                                                    पंडित श्रीकृष्ण दत्त शर्माअवकाश प्राप्त अध्यापक
सी 5/10 यमुनाविहार दिल्ली

मानव जीवन में भगवान् शिवजी के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है, शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका, कथा यह है, त्रेतायुग में एक बार बारिश के अभाव से अकाल पड़ा। तब कौशिक मुनि परिवार के लालन-पालन के लिए अपना गृहस्थान छोड़कर अन्यत्र जाने के लिए अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ चल दिए। फिर भी परिवार का भरण-पोषण कठिन होने पर दु:खी होकर उन्होनें अपने एक पुत्र को बीच राह में ही छोड़ दिया।
वह बालक भूख-प्यास से रोने लगा। तभी उसने कुछ ही दूरी पर एक पीपल का वृक्ष और जल का कुण्ड देखा। उसने भूख शांत करने के लिए पीपल के पत्तों को खाया और कुण्ड का जल पीकर अपनी प्यास बुझाई। वह बालक प्रतिदिन इसी तरह पत्ते और पानी पीकर और तपस्या कर समय गुजारने लगा। तभी एक दिन वहां देवर्षि नारद पहुंचे। बालक ने उनको नमन किया। नारद मुनि विपरीत दशा में बालक की विनम्रता देखकर खुश हुए। उन्होंने तुरंत बालक का यथोचित संस्कार कर वेदों की शिक्षा दी। उन्होंने उसे ओम नमो भगवते वासुदेवाय की मंत्र दीक्षा भी दी।
वह बालक नित्य भगवान विष्णु के मंत्र का जप कर तप करने लगा। नारद मुनि उस बालक के साथ ही रहे। बालक की तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु ने प्रगट होकर बालक से वर मांगने को कहा। बालक ने भगवत भक्ति का वर मांगा। तब भगवान विष्णु ने बालक को योग और ज्ञान की शिक्षा दी। जिससे वह परम ज्ञानी महर्षि बन गया।
एक दिन बालक के मन में जिज्ञासा पैदा हुई। उसने नारद मुनि से पूछा कि इतनी छोटी उम्र में ही क्यों मेरे माता-पिता से अलगाव हो गया। क्यों मुझे इतनी पीड़ा भोगना पड़ रही है। आपने मुझे संस्कारित कर ब्राह्मण बनाया है। अत: मेरी पीड़ा का कारण भी बताएं। नारद मुनि ने बालक से कहा - तुमने पीपल के पत्तों को खाकर घोर तप किया है, इसलिए आज से तुम्हारा नाम पिप्पलाद रखता हूं। जहां तक तुम्हारे कष्टों की बात है, तो उसका कारण शनि ग्रह है। जिसके अहंकार वश धीमी चाल के कारण तुम्हारे साथ ही पूरा जगत भी अकाल की पीड़ा भोग रहा है।
यह सुनकर बालक ने बहुत क्रोधित हो गया। उसने आवेशित होकर जैसे ही आकाश में विचरण कर रहे शनि को देखा। तब शनि ग्रह बालक पिप्पलाद के तेजोबल से जमीन पर एक पर्वत पर आ गिरा। जिससे वह अपंग हो गया। शनि की ऐसी दुर्दशा देखकर नारद मुनि खुश हो गए। उन्होंने सभी देवी-देवताओं को यह दृश्य देखने के लिए बुलाया।
तब वहां पर ब्रह्मदेव सहित अन्य देवों ने आकर बालक पिप्पलाद के आवेश को शांत कर कहा कि नारद मुनि द्वारा रखा गया तुम्हारा नाम श्रेष्ठ है और आज से तुम पूरे जगत में इसी नाम से प्रसिद्ध होगे। जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन पिप्पलाद नाम का ध्यान कर पूरी श्रद्धा और भावना से पूजा करेगा। उसको शनि ग्रह के कष्टों से छुटकारा मिलेगा और उसको संतान सुख भी प्राप्त होंगे।
ब्रह्मदेव ने साथ ही पिप्पलाद मुनि को शनिग्रह की शांति के लिए उनकी पूजा और व्रत का विधान बताकर कहा कि तुम धराशायी हुए शनि को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित कर दो, क्योंकि वह निर्दोष हैं। पिप्पलाद मुनि ने भी ब्रह्मदेव के आदेश का पालन किया और उनसे शनिश्चर व्रत विधि जानकर जगत को शनि ग्रह की शांति का मार्ग बताया। इसीलिए शनि ग्रह की शांति के लिए शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के साथ ही शनिदेव के पूजन की परंपरा है।
सनातन धर्म में पीपल वृक्ष को देवतुल्य माना गया है। तभी तो इसके पूजन का विधान शास्त्रों में भी बताया गया है। पीपल को कलियुग का कल्पवृक्ष माना जाता है। पीपल एकमात्र पवित्र देववृक्ष है जिसमें सभी देवताओं के साथ ही पितरों का भी वास रहता है। श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि,,,,
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रहमरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे, अग्रत: शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नम:। अर्थात मैं वृक्षों में पीपल हूं।
पीपल के मूल में ब्रह्मा जी, मध्य में विष्णु जी तथा अग्र भाग में भगवान शिव जी साक्षात रूप से विराजित हैं। स्कंदपुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है।
क्या न करें ?????
शास्त्रानुसार शनिवार को पीपल पर लक्ष्मी जी का वास माना जाता है तथा उस दिन जल चढ़ाना जहां श्रेष्ठ है वहीं रविवार को पीपल पर जल चढ़ाना निषेध है। शास्त्रों के अनुसार रविवार को पीपल पर जल चढ़ाने से जीव दरिद्रता को प्राप्त करते हैं।
पीपल के वृक्ष को कभी काटना नहीं चाहिए। ऐसा करने से पितरों को कष्ट मिलते हैं तथा वंशवृद्धि की हानि होती है। किसी विशेष प्रयोजन से विधिवत नियमानुसार पूजन करने तथा यज्ञादि पवित्र कार्यों के लक्ष्य से पीपल की लकड़ी काटने पर दोष नहीं लगता।
अकसर लोग ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर जाते हैं, जो शुभ कर्म है लेकिन मंदिर जाकर पीपल के पेड़ पर जल न चढ़ाएं क्योंकि उस समय पर अलक्ष्मी वहां वास कर रही होती हैं। सूर्योदय के बाद ही पीपल पूजन करें, जिससे महालक्ष्मी प्रसन्न होकर सदा आपके पास रहें।
क्या करें ??????
पीपल के पेड़ का सिंचन, पूजन और परिक्रमा करने से जहां जीव की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है वहीं शत्रुओं का नाश भी होता है। यह सुख सम्पत्ति, धन-धान्य, ऐश्वर्य, संतान सुख तथा सौभाग्य प्रदान करने वाला है। इसकी पूजा करने से ग्रह पीड़ा, पितरदोष, काल सर्प योग, विष योग तथा अन्य ग्रहों से उत्पन्न दोषों का निवारण हो जाता है।
अमावस्या और शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करने से कष्ट निवृत्ति होती है।
प्रात: काल नियम से पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर जप, तप एवं प्रभु नाम का सिमरण करने से जीव को शारीरिक एवं मानसिक लाभ प्राप्त होता है।
पीपल के पेड़ के नीचे वैसे तो प्रतिदिन सरसों के तेल का दीपक जलाना उत्तम कर्म है परंतु यदि किसी कारणवश ऐसा संभव न हो तो शनिवार की रात को पीपल की जड़ के साथ दीपक जरूर जलाएं क्योंकि इससे घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है, कारोबार में सफलता मिलती है, रुके हुए काम बनने लगते हैं।
तांबे के लोटे में जल भरकर भगवान विष्णु जी के अष्टभुज रूप का स्मरण करते हुए पीपल की जड़ में जल चढ़ाना चाहिए। वृक्ष की पांच परिक्रमाएं नियम से करनी चाहिएं। जो लोग पीपल के वृक्ष का रोपण करते हैं उनके पितृ नरक से छूटकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं|