अग्निपरीक्षा ( सीता जी की )
जय प्रकाश कुवंर
हमारे शास्त्रों के अनुसार अग्नि देवता को पवित्रता का देवता माना जाता है। और किसी को अपनी पवित्रता को प्रमाणित करने के लिए अग्नि में उतरना अग्निपरीक्षा कहलाता है।
रामायण की कहानी में लक्ष्मी का अवतार माता सीता को भी अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा था।
राम वनवास के अवधि में जब रावण की वहन सूर्पनखा का नाक, कान राम जी के इशारे पर लक्ष्मण जी द्वारा काटा गया और जब उसने लंका में जाकर अपने भाई लंकापति रावण को यह सारा वृतांत बतायी, तभी रावण इस अपमान का बदला लेने के लिए राम की पत्नी सीता जी का हरण और राम से बैर ठानने के लिए तय कर लिया था।
परमपिता परमेस्वर के अवतार राम यह सब जानते थे कि अब भविष्य में क्या होने वाला है। वे यह भी जानते थे कि अब प्रतिशोध के रूप में रावण द्वारा सीता का हरण होगा। सीता का हरण बिना रावण द्वारा सीता को स्पर्श किये संभव नहीं था। अतः भगवान् राम ने कुछ ऐसी लीला रची जिसे लक्षमण जी भी नहीं जान सके। जब लक्षमण जी फल मूल लाने के लिए जंगल में गये हुए थे तब राम ने सीता जी से कहा कि वो अब कुछ मानवी लीला करना चाहते हैं। जब तक मैं राक्षसों का पूरा नाश नहीं कर देता हूँ तब तक तुम अग्नि देवता के शरण में चली जाओ। जब श्री राम ने उन्हें सारी बातें बतायी तब भगवान् श्री राम के श्री चरणों को अपने हृदय में रख कर माता सीता अग्नि में प्रवेश कर गयीं। उन्होंने अपनी प्रतिबिंब सीता को, जो रूप, गुण आदि में सीता जैसी ही थी, वहाँ पर राम के साथ रख दिया।
इसके बाद रावण द्वारा सीता जी का हरण होता है और सीता को वापस लाने के लिए राम रावण युद्ध होता है। रावण सहित राक्षसों का पूर्ण नाश होने के बाद जब सीता लंका से वापस आती हैं, तब असली सीता को अग्नि देवता से पाने के लिए, इस प्रतिबिंब सीता को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है।
इस बार भी भगवान् राम ने कुछ ऐसी लीला रची। श्री राम दल के सबको यह पता था कि यह युद्ध मायावी राक्षसों के साथ हुआ है।अतः ऐसा हो सकता है कि राक्षसों ने सीता माता के रूप में कोई राक्षसी भेज दी हो। अतः इतने बड़े युद्ध का कोई फल नहीं हुआ और सीता जी के बिना ही वापस जाना पड़े। इस दुविधा को मिटाने के लिए भी अग्निपरीक्षा जरूरी था। अगर कोई राक्षसी वेश बदलकर सीता के रूप में आयी है तो वह अग्नि में जलकर राख हो जायेगी, जबकि असली सीता को कुछ नहीं होगा क्यूँकि वो तो जगदंबा हैं।
दूसरी तरफ सीता के अग्निपरीक्षा से लंका निवासी और सुग्रीव के राज्य के लोग यह समझ सकेंगे कि सीता जी कोई साधारण स्त्री नहीं है जिनके लिए राम रावण युद्ध हुआ। साधारण व्यक्ति का पंच तत्वों से बना शरीर अग्नि में सम्पूर्ण भस्म हो जाता , जबकि परम सती सीता माता पर अग्नि की उष्णता का कोई प्रभाव ही नहीं हुआ।
इस प्रकार भगवान् राम ने सीता जी को अग्निपरीक्षा से गुजरने के लिए इस लिए भी कहा क्योंकि ऐसा करने से उनके राक्षसी वेश में कोई और होने एवं उनके चरित्र के बारे में किसी को कोई संदेह न हो तथा जनता के सामने उनकी प्रतिष्ठा स्थापित रहे। इस प्रकार माता सीता को समाज की बुराईयों से बचने के लिए अग्निपरीक्षा देना पड़ा।
अग्निपरीक्षा के दौरान माता सीता के अग्नि में प्रवेश करते ही उनका प्रतिबिंब जल गया और असली सीता माता को अग्नि देवता अपने साथ लेकर आये और भगवान् राम को समर्पित कर दिये।
जय श्री राम। जय सीता माता 🙏🙏
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