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प्यार जेकर नईखे प्यारा

प्यार जेकर नईखे प्यारा

लिलार पर नईखे चमक ,
विचार में नईखे गमक ।
का कहिं मन‌ के बतिया ,
दिलवो में नईखे छमक ।।
मनवा हमेशा रहे चंचल ,
मन करे हम चरीं कंचन ।
सबसे एगो नजर चोराके ,
हमेशा करे अपने वंचन ।।
दिमागो में ना बाटे धमक ,
जब देखीं तबहीं तमक ।
वाणी बाटे अईसन जईसे ,
कवि के काव्य में यमक ।।
प्यार जेकर नईखे प्यारा ,
ओकर नईखे कहीं चारा ।
मारल फिरे हमेशा पीछे ,
जिनगी भर बनी बेचारा ।।
हाॅंक लीं रउआ कतनो ,
जीवन भर पारा के पारा ।
उल्टे बनल अब राह बा ,
उल्टे चले जीवन धारा ।।
केहू कतनों कुछुओ करो ,
तिल के बनावे के बा ताड़ ।
कहीं केहू के कबहूॅं कुछुओ ,
लेके कतहीं कुछुओ आड़ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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