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पूर्ण चन्द्र ग्रहण (शंका समाधान)

पूर्ण चन्द्र ग्रहण (शंका समाधान)

आनन्द हठीला
पूर्ण चन्द्रग्रहण (भारत में दृश्य) 07 सितम्बर 2025

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 07 सितम्बर, रविवार को यह ग्रहण अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, आस्ट्रेलिया, एशिया, हिन्द महासागर, यूरोप, पूर्वी अटलांटिक महासागर के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। आइसलैण्ड, अफ्रीका के पाश्चिमी भाग और अटलांटिक महासागर के कुछ भाग में उपच्छागा का अंत चन्द्रोदय के समय दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत के सभी हिस्सो में दिखाई देगा। पूरे देश में ग्रहण के आरम्भ से अंत तक सभी चरण दिखेगें इसका सूतक दोपहर 12:56 से आरम्भ हो जायेगा


ग्रहण की परिस्थितियाँ👉 (भारतीय मानक समय)


उपच्छाया प्रवेश👉 रात्रि 08:56 से


ग्रहण प्रारम्भ 👉 रात्रि 09:56 से


पूर्णता प्रारम्भ👉 मध्यरात्रि 11:00 से


ग्रहण मध्य👉 मध्यरात्रि 11:41 से


पूर्णता समाप्त 👉 मध्यरात्रि 12:23 से


ग्रहण समाप्त (मोक्ष) 👉 मध्य रात्रि 01:26 पर।


उपच्छाया अन्त 👉 मध्यरात्रि 02.26 पर


ग्रहण (परिमाण) 👉 1:368


ग्रहण की अवधि 👉 3 घण्टे 30 मिनट


पूर्णता की अवधि 👉 01 घंटा 23 मिनट


यह ग्रहण सम्पूर्ण भारत मे पूर्ण रूप से दिखाई देगा अतः धर्मनिष्ठ एवं श्रद्धालुजनों को ग्रहण-संबंधी पथ्य-अपथ्य का विचार करते हुए ग्रहण संबंधी व्रत-दानादि का अनुष्ठान करना चाहिए।


क्या है चंद ग्रहण पौराणिक एवं वैज्ञानिक मान्यता
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एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार समुद्र मंथन के दौरान असुरों और दानवों के बीच अमृत के लिए घमासान चल रहा था इस मंथन में अमृत देवताओं को मिला लेकिन असुरों ने उसे छीन लिया अमृत को वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नाम की सुंदर कन्या का रूप धारण किया और असुरों से अमृत ले लिया जब वह उस अमृत को लेकर देवताओं के पास पहुंचे और उन्हें पिलाने लगे तो राहु नामक असुर भी देवताओं के बीच जाकर अमृत पिने के लिए बैठ गया जैसे ही वो अमृत पीकर हटा, भगवान सूर्य और चंद्रमा को भनक हो गई कि वह असुर है तुरंत उससे अमृत छिना गया और विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दी। क्योंकि वो अमृत पी चुका था इसीलिए वह मरा नहीं उसका सिर और धड़ राहु और केतु नाम के ग्रह पर गिरकर स्थापित हो गए। ऐसी मान्यता है कि इसी घटना के कारण सुर्य और चंद्रमा को ग्रहण लगता है, इसी वजह से उनकी चमक कुछ देर के लिए चली जाती है। इसके साथ यह भी माना जाता है कि जिन लोगों की राशि में सुर्य और चंद्रमा मौजूद होते हैं उनके लिए यह ग्रहण बुरा प्रभाव डालता है।

वहीं, विज्ञान के अनुसार यह एक प्रकार की खगोलीय स्थिति है. जिनमें चंद्रमा, पृथ्वी और पृथ्वी तीनों एक ही सीधी रेखा में आ जाते हैं। इससे चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया से होकर गुजरता है, जिस वजह से उसकी रोशनी फिकी पड़ जाती है।


ग्रहण-सूतक के समय पालनीय
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सूतक के समय तथा ग्रहण के समय दान तथा जापादि का महत्व माना गया है. पवित्र नदियों अथवा तालाबों में स्नान किया जाता है। मंत्र जाप किया जाता है तथा इस समय में मंत्र सिद्धि का भी महत्व है। तीर्थ स्नान, हवन तथा ध्यानादि शुभ काम इस समय में किए जाने पर शुभ तथा कल्याणकारी सिद्ध होते हैं। धर्म-कर्म से जुड़े लोगों को अपनी राशि अनुसार अथवा किसी योग्य ब्राह्मण के परामर्श से दान की जाने वाली वस्तुओं को इकठ्ठा कर के रख लेना चाहिए फिर अगले दिन सुबह सूर्योदय के समय दुबारा स्नान कर संकल्प के साथ उन वस्तुओं को योग्य व्यक्ति को दे देना चाहिए।


ग्रहण-सूतक में वर्जित कार्य
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सूतक के समय और ग्रहण के समय भगवान की मूर्ति को स्पर्श करना निषिद्ध माना गया है। खाना-पीना, सोना, नाखून काटना, भोजन बनाना, तेल लगाना आदि कार्य भी इस समय वर्जित हैं. इस समय झूठ बोलना, छल-कपट, बेकार का वार्तालाप और मूत्र विसर्जन से परहेज करना चाहिए. सूतक काल में बच्चे, बूढ़े, गर्भावस्था स्त्री आदि को उचित भोजन लेने में कोई परहेज नहीं हैं।


सूतक आरंभ होने से पहले ही अचार, मुरब्बा, दूध, दही अथवा अन्य खाद्य पदार्थों में कुशा तृण डाल देना चाहिए जिससे ये खाद्य पदार्थ ग्रहण से दूषित नहीं होगें। अगर कुशा नहीं है तो तुलसी का पत्ता भी डाल सकते हैं. घर में जो सूखे खाद्य पदार्थ हैं उनमें कुशा अथवा तुलसी पत्ता डालना आवश्यक नहीं है।


ग्रहण में क्या करें, क्या न करें ?
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चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है। सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है। सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए। ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए। ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए। ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए। ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए। ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है। ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है। ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं। ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए। भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- 'सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।' ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण) भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए। (देवी भागवत) अस्त के समय सूर्य और चन्द्रमा को रोगभय के कारण नहीं देखना चाहिए।

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