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सरकारी प्रतीकों का दुरुपयोग: जब कुछ NGO जनता को गुमराह करते हैं

सरकारी प्रतीकों का दुरुपयोग: जब कुछ NGO जनता को गुमराह करते हैं

✍🏻 लेखक: डॉ. राकेश दत्त मिश्र

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहाँ नागरिकों की सेवा और उत्थान के लिए विभिन्न सरकारी योजनाएँ लागू की जाती हैं, वहीं गैर-सरकारी संगठन (NGO) एक सेतु के रूप में कार्य करते हैं। वे समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और विकास की किरण पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि कुछ तथाकथित सामाजिक संस्थाएँ इस पवित्र कार्य को गंदा कर रही हैं। वे अपने निजी स्वार्थ और आर्थिक लाभ के लिए भारत सरकार के प्रतीक चिन्हों का दुरुपयोग कर न केवल जनता को गुमराह कर रही हैं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीकों की गरिमा को भी ठेस पहुँचा रही हैं।

यह आलेख ऐसे ही संगठनों की पोल खोलने, उनके खिलाफ कानूनी स्थिति को स्पष्ट करने, और आम जनता को जागरूक करने के उद्देश्य से लिखा गया है।

भारत सरकार के प्रतीक चिन्ह का विधिक महत्व

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक - अशोक स्तंभ (जिसे सिंह स्तंभ भी कहा जाता है) देश की संप्रभुता, गरिमा और अखंडता का प्रतीक है। यह भारत के संविधान की प्रस्तावना में भी अंकित है। इसका प्रयोग केवल भारत सरकार और उसके अधिकृत निकायों द्वारा ही किया जा सकता है।
विधिक प्रावधान:

State Emblem of India (Prohibition of Improper Use) Act, 2005:

यह अधिनियम स्पष्ट करता है कि कोई भी व्यक्ति या संस्था भारत सरकार के प्रतीक चिन्ह का अनधिकृत रूप से उपयोग नहीं कर सकती।

उल्लंघन पर ₹5000 तक का जुर्माना और/या कारावास का प्रावधान है।


भारतीय दंड संहिता (IPC) की निम्नलिखित धाराएँ भी लागू हो सकती हैं:

धारा 420: धोखाधड़ी के लिए


धारा 468: धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी करना


धारा 471: फर्जी दस्तावेज़ का प्रयोग करना

कैसे करते हैं कुछ NGO यह धोखाधड़ी?

कुछ कथित NGO, जिनका समाज सेवा से कोई वास्ता नहीं, केवल आर्थिक लाभ और व्यक्तिगत प्रचार के उद्देश्य से कार्य करते हैं। वे:

आईडी कार्ड और प्रशस्तिपत्र पर भारत सरकार का प्रतीक चिन्ह लगाते हैं।

"भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त", "राष्ट्रीय सलाहकार", "सरकारी प्रतिनिधि" जैसे झूठे पदनामों का उपयोग करते हैं।

पब्लिक प्लेस, स्कूल, पंचायत और यहाँ तक कि थानों में भी झूठे प्रभाव के आधार पर कार्यक्रम करवाते हैं।

सोशल मीडिया और वेबसाइट पर फर्जी समाचार और सरकारी समर्थन का दावा करते हैं।

कई बार यह संस्थाएँ सरकार की लोकप्रिय योजनाओं का नाम लेकर लोगों से पैसे वसूलती हैं।

जनता को कैसे बनाते हैं मूर्ख?

सरकारी योजना के नाम पर पैसे वसूलना: जैसे “प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना”, “महिला सशक्तिकरण योजना”, “बेटी बचाओ योजना” आदि के नाम पर आवेदन शुल्क लेना।

फर्जी प्रमाण पत्र देना: NGO के कार्यक्रमों में भाग लेने पर 'भारत सरकार' का लोगो लगा हुआ नकली प्रमाण पत्र देना, ताकि लोगों को लगे कि यह सरकारी संस्था है।

नौकरी दिलाने का झांसा: सरकारी विभागों में नौकरी लगवाने के नाम पर 'रजिस्ट्रेशन फीस' या 'प्रशिक्षण शुल्क' लेना।

CSR, RTI, शिक्षा, महिला सहायता समूह के नाम पर डोनेशन लेना: जबकि संस्था का इन कार्यों से कोई लेना देना नहीं होता।

वास्तविक उदाहरण 

  • एक संस्था ने बिहार में सैकड़ों युवाओं से "राष्ट्रीय सुरक्षा योजना" के अंतर्गत गार्ड की नौकरी के नाम पर ₹500-₹1000 लिए। सभी को एक नकली ID कार्ड और भारत सरकार का प्रतीक लगा हुआ सर्टिफिकेट दिया गया। जब युवाओं ने स्थानीय पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि वह संस्था सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं थी।
  • एक महिला NGO ने “बेटी पढ़ाओ योजना” के अंतर्गत हजारों महिलाओं से आवेदन और प्रशिक्षण शुल्क के नाम पर पैसे लिए और फर्जी प्रमाण पत्र बाँटे। बाद में शिकायत पर पुलिस ने संस्था के संचालकों को गिरफ्तार किया।

कानून की दृष्टि से दंडनीय अपराध

भारत सरकार के प्रतीकों का प्रयोग केवल संविधानिक पदों पर नियुक्त व्यक्तियों, सरकारी अधिकारियों एवं कुछ विशेष स्वीकृत संस्थाओं द्वारा ही किया जा सकता है। अन्यथा:

यह राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान माना जाता है।

  • इससे सरकार की छवि धूमिल होती है और जनता का विश्वास टूटता है।
  • यह देशद्रोह की मानसिकता के समान गंभीर अपराध है, भले ही कानूनी भाषा में ऐसा न कहा जाए।
  • प्रशासन की भूमिका
  • जांच कमेटी का गठन: जिलाधिकारी के स्तर पर एक समिति बने जो सभी NGO के ID कार्ड, प्रचार सामग्री और कार्यों की नियमित जांच करे।
  • पंजीकरण जांच: NGO-DARPAN पोर्टल, CSR-1, FCRA आदि के प्रमाण पत्रों की प्रमाणिकता जांची जाए।
  • पुलिस में FIR दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाए।
  • प्रेस विज्ञप्तियों और सरकारी कार्यक्रमों में स्पष्ट किया जाए कि कौन-सी संस्था अधिकृत है।
  • मीडिया और समाज की भूमिका
  • पत्रकारों को चाहिए कि वे NGO की जमीनी हकीकत की जांच कर रिपोर्टिंग करें।
  • सामाजिक संगठनों और विद्यालयों को चाहिए कि बच्चों और अभिभावकों को जागरूक करें।
  • सोशल मीडिया पर ऐसे मामलों को उजागर किया जाए, ताकि और लोग सतर्क हो सकें।
  • आम नागरिक की भूमिका: सतर्कता और जागरूकता
  • NGO की वैधता NGO-DARPAN पोर्टल पर जांचें।
  • भारत सरकार के प्रतीक चिन्ह युक्त किसी भी संस्था के कागजात को बिना जाँचे न मानें।
  • शक होने पर तुरन्त स्थानीय प्रशासन, थाने या मीडिया से संपर्क करें।
  • बिना रसीद और रजिस्ट्रेशन के किसी NGO को डोनेशन न दें।
  • कार्यक्रम में भाग लेने से पहले उस संस्था की पारदर्शिता और इतिहास जानें।


भारत के प्रतीक चिन्हों का दुरुपयोग केवल कानून का उल्लंघन नहीं है, यह राष्ट्र और जनता के विश्वास के साथ छल है। यह कार्य उस भावना के विपरीत है, जिसके लिए कोई भी संस्था समाजसेवा में उतरती है। हम सब की यह जिम्मेदारी है कि हम ऐसी गतिविधियों के विरुद्ध आवाज़ उठाएँ और सतर्क रहें।

मैं, डॉ. राकेश दत्त मिश्र, इस लेख के माध्यम से सरकार, मीडिया, प्रशासन, और समाज से यह अपील करता हूँ कि झूठे समाजसेवियों की असलियत उजागर करें और सच्चे समाज सेवियों को बढ़ावा दें।

भारत सरकार के प्रतीक केवल दीवार पर सजाने की वस्तु नहीं, यह हमारे राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक हैं। इनका सम्मान कीजिए, इनका दुरुपयोग रोकिए।

यदि आपने किसी NGO को इस प्रकार के गैरकानूनी कार्य करते देखा है, तो तुरन्त शिकायत दर्ज करें। हमे उसकी खबर भेजें news@divyarashmi.com par |यह केवल आपकी नहीं, राष्ट्र की रक्षा का कार्य है।

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