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ICU — एक अलग दुनिया

ICU — एक अलग दुनिया

वह कोई साधारण कमरा नहीं था,
जहाँ मैं लाया गया था
शरीर को चीरकर भीतर तक देखा गया,
और फिर जो शुरू हुआ—
वह था जीवन का एक और ही अध्याय।

चारों ओर पलंगों की कतारें थीं
हर पलंग पर एक संसार,
एक अधूरी कहानी,
एक शरीर जो जूझ रहा था
अपने ही भीतर चल रही जंग से।

कुछ मुँह से बोल नहीं सकते थे
पर आँखें माँग रही थीं—
थोड़ा पानी, एक सहारा,
कभी दवा, कभी बस एक परिचित हाथ।

हर कोई लेटा था
जैसे समय थम गया हो,
जैसे शरीर अपना आकार भूल गया हो।

इन सबके बीच
कदमों की आवाज़ें आती थीं—
धीमी, मद्धिम, पर लगातार।
नर्सें, सहायक, रेज़िडेंट डॉक्टर्स—
सब किसी अदृश्य लय में
बिना शिकायत, बिना थके,
सेवा में रमे हुए।

कोई दस्तावेज़ भर रहा था,
कोई ड्रिप की गति जाँच रहा था,
कोई शांत स्वर में कह रहा था—
"सब ठीक होगा।"

मैं देखता था—
कैसे एक दवा,
सैकड़ों दवाओं के बीच से
किसी एक पलंग तक पहुँचती है,
कैसे यदि वह नहीं चाहिए होती,
तो उतनी ही निपुणता से लौट जाती है।

यह कोई चमत्कार था—
न केवल चिकित्सा का,
बल्कि व्यवस्था का,
धैर्य का, समर्पण का।

डॉक्टर आते थे—
गंभीर, किंतु स्नेहिल—
उन्हें पहले से पता होता था
किसका रक्तचाप क्या है,
किसकी नब्ज़ कमज़ोर हो रही है,
किसकी रिपोर्ट क्या कहती है।

क्योंकि कहीं न कहीं
किसी ने वह सब
समय पर, सावधानी से
लिखा, दर्ज़ किया, सम्हाला।

मैंने जाना—
सेवा सिर्फ़ हाथों से नहीं होती,
वह मन से होती है,
एकाग्रता से होती है,
और सबसे बढ़कर
संवेदनशीलता से होती है।

ICU—
एक अलग दुनिया थी,
जहाँ जीवन हर पल लटकता था
सूई की नोक पर,
और फिर भी
कोई घबराया नहीं दिखता था।

मैं जब निकला
तो केवल शल्य-चिकित्सित नहीं था,
मैं भीतर से कुछ और भी बन गया था—
नम्र, चकित, कृतज्ञ।

मैंने मानवता का
एक अद्भुत रूप वहाँ देखा—
जहाँ तकनीक और करुणा
हाथ थामे
एक-दूसरे के साथ चल रही थीं।


. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
✍️ "कमल की कलम से"
✍️ (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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