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“मुक्तक सुमन” एवं “बादल हैं तो बरसेंगे ही” का भव्य लोकार्पण समारोह सम्पन्न

“मुक्तक सुमन” एवं “बादल हैं तो बरसेंगे ही” का भव्य लोकार्पण समारोह सम्पन्न

  • झारखंड विधानसभा के प्रथम सभापति इंदर सिंह नामधारी रहे मुख्य अतिथि
मेदिनीनगर (नावाटोली)। हिंदी साहित्य भारती के बैनर तले साहित्यप्रेमियों के लिए एक अविस्मरणीय क्षण साकार हुआ जब सुकंठ कवि श्री सत्येंद्र चौबे ‘सुमन’ द्वारा रचित दो काव्य संग्रह ‘मुक्तक सुमन’ एवं ‘बादल हैं तो बरसेंगे ही’ का भव्य लोकार्पण समारोह होटल निर्वाणा में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में झारखंड विधानसभा के प्रथम सभापति श्री इंदर सिंह नामधारी ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और अपने विचारों से उपस्थित जनसमूह को प्रेरित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. सुभाष चंद्र मिश्र ने की, जबकि मंच संचालन की जिम्मेदारी हिंदी साहित्य भारती के महामंत्री एवं 'गोदान' उपन्यास के पद्य रूपांतरणकार श्री राकेश कुमार ने पूरी निपुणता से निभाई।
इस अवसर पर कई विशिष्ट अतिथियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से समारोह को गौरवशाली बनाया। इनमें प्रमुख रूप से समकालीन जवाबदेही पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. सुरेंद्र प्रसाद मिश्र (औरंगाबाद), प्रख्यात भूगोलविद प्रो. रामाधार सिंह, बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री शंभुनाथ पांडेय, वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सिद्धेश्वर विद्यार्थी, मीडिया प्रभारी व शिक्षक श्री सुरेश विद्यार्थी, तथा छंदशास्त्र के मर्मज्ञ श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी शामिल रहे।
कार्यक्रम का आगाज़ श्री रामप्रवेश पंडित द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ, जिसने वातावरण को आध्यात्मिक छटा से आलोकित कर दिया। अतिथियों का गद्यमय स्वागत वरिष्ठ साहित्यप्रेमी श्री अनुज कुमार पाठक ने किया, वहीं छंदमय स्वागत की प्रस्तुति ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
धन्यवाद ज्ञापन शिक्षक श्री रमेश कुमार सिंह द्वारा किया गया, जिन्होंने सभी साहित्यप्रेमियों, अतिथियों एवं उपस्थित जनसमूह के प्रति आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम की स्मृतियों को संजोते हुए समारोह के छायाचित्र और वीडियो श्री प्रेम प्रकाश दुबे द्वारा उपलब्ध कराए गए, जो इस ऐतिहासिक आयोजन की जीवंत झलकियाँ प्रस्तुत करते हैं। यह आयोजन न केवल कवि सत्येंद्र चौबे सुमन की साहित्यिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव रहा, बल्कि स्थानीय साहित्यिक चेतना के लिए भी एक प्रेरणादायक क्षण बन गया। हिंदी साहित्य भारती के इस आयोजन ने एक बार फिर यह प्रमाणित किया कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं, बल्कि उसका मार्गदर्शक भी है।
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