इन्सानों की फितरत
इंसानों की भी अजीब फितरत है,जरूरत पड़े तो प्यार वरना नफरत है।
स्वार्थवश ही रिश्ते में अपनापन झलकता है,
वरना लोगों की जुबान से जहर टपकता है।
स्वार्थ ही कलयुग की खास विशेषता है,
स्वार्थ के बिना कौन किसी को पूछता है।
माँ-बाप निःस्वार्थ भाव से बच्चों को पालते हैं,
किन्तु स्वार्थवश वही उन्हें घर से निकालते हैं।
कुमति ने सुमति पर अपना कब्जा जमाया है,
तभी तो खून के रिश्ते पर भी संकट गहराया है।
अपनी सभ्यता और संस्कृति को हमें बचाना है ,
स्वार्थ रहित व प्रेमासिक्त समाज हमें बनाना है।
= सुरेन्द्र कुमार रंजन
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