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हो रही है शाम जीवन की गली में गान छेड़ो।

हो रही है शाम जीवन की गली में गान छेड़ो।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
हो रही है शाम जीवन की गली में गान छेड़ो।
आ रहा होगा आँधेरा आज कोई तान छेड़ो।।
मधुकलश की मौखिरी उघरी पड़ी देखो।
स्निधता गाती रहेगी व्यथा मत व्यवधान छेडो।।
तख्तियों चलने लगी हैं मौन नारों के लिए।
कल चुभन सी धूप होगी काल का अवधान छेड़ो।
मुठ्ठियों में कहाँ उगता फूल कोई बिन उगाए।
चाहते जो रोशनी बरसे कि कुछ अभियान छेड़ो।
राह में होंगे अनेक विरूद्ध और अशुद्ध मन के।
सहज अनुकूलन बने अविराम पथ संज्ञान छेड़ो।।
बात मत कर विजन की छाया भली या अनभली। 
नाद की आंतर्व्यथा की प्रीति का सम्मान छेड़ो।।
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