विभागीय कार्यशैली से ‘योग’ पर संकट का बादल - आयुष के उच्च अधिकारियों का ‘योग’ को लेकर पक्षपातपूर्ण रवैया - संकट में ‘योग’ के संकल्प

विभागीय कार्यशैली से ‘योग’ पर संकट का बादल - आयुष के उच्च अधिकारियों का ‘योग’ को लेकर पक्षपातपूर्ण रवैया - संकट में ‘योग’ के संकल्प

दिव्य रश्मि संवाददाता जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश में आयुष प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास किये जा रहे हैं। बता दें कि आयुष प्रणाली में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, और होम्योपैथी जैसे कई आयाम हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आयुष के समस्त पद्धतियों के ज्ञान को संरक्षित और संवर्धित करने के उद्देश्य के साथ, नवंबर 2014 में आयुष मंत्रालय का भी गठन किया और उनका यह प्रयास अभी तक अपने लक्ष्यों को इष्टतम रूप से हासिल करने में अत्यंत सफल रहा है।

लेकिन, इसे लेकर अब आयुष मंत्रालय के उच्च अधिकारियों द्वारा अपने काम में लापरवाही और पक्षपातपूर्ण रवैये का मामला प्रकाश में आया है, जिससे प्रधानमंत्री मोदी के लक्ष्यों और संकल्पों को गहरा आघात पहुँच सकता है।

दरअसल, आयुष मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, यह सूचना है कि विभाग के उच्च अधिकारी पक्षपात पूर्ण तरीके से केवल आयुर्वेद से जुड़े पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और उनका योग से जुड़े आयामों पर कोई ध्यान नहीं है। उनके इस कार्यशैली से न केवल योग के पेशेवरों में कुंठा का भाव जाग्रत हो रहा है, बल्कि इससे पूरे भारत में योग को बढ़ावा देने की गति भी प्रभावित हो रही है।

सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों ने मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान में निदेशक के पद को भरने के दौरान बेहद ही अपारदर्शिता और पक्षपातपूर्ण कार्य शैली का परिचय दिया है। क्योंकि, इस रिक्ति के लिए बैचलर ऑफ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंसेज़ वाले उम्मीदवारों को आवेदन की अनुमति ही नहीं दी गई ।

जबकि, योग को अंशकालिक विषय रखने वाले आयुर्वेद डिग्री धारकों को इस पद पर आवेदन करने की अनुमति दे दी गई।

बता दें कि आयुर्वेद पीजी पाठ्यक्रम में जिस ‘स्वस्थवृत्त’ विषय को शामिल किया गया है, उसमें केवल योग और प्राकृतिक चिकित्सा केवल और केवल विषय के अंग हैं, न कि कोई स्पेशलाइजेशन। वहीं, बीएनवाईएस के लिए निर्धारित साढ़े चार वर्षों के दौरान हर दिन सुबह 5.45 बजे से शाम 7 बजे तक 80% उपस्थिति के साथ 1250 घंटे योग थ्योरी और 1200 घंटे प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के मुक़ाबले उन्हें 200 घंटे से भी कम ट्रेनिंग मिलती है।

ऐसे में, अब प्रश्न उठता है कि जब रिक्ति योग पेशेवरों के लिए है, तो वहाँ आयुर्वेद के डिग्री धारक आवेदन कैसे कर सकते हैं और योग के पेशेवरों को आवेदन क्यों नहीं करने दिया गया?

उच्च अधिकारियों के इस रवैये से स्पष्ट है कि वे इस रिक्ति के लिए किसी विशेष व्यक्ति को पदस्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, जो वास्तव में बेहद दुःखद है।

इस प्रकार की घटनाओं से आयुष मंत्रालय जैसे बड़े और महत्वपूर्ण विभाग पर एक गंभीर सवाल खड़ा होता है। इससे मंत्रालय की कार्य योजनाएं बुरी तरह से प्रभावित होने के साथ ही, देश में योग पेशेवरों और प्रतिभाओं में भी निराशा का भाव जागृत होगा।

क्योंकि, योग और आयुर्वेद को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है। दोनों आपस में घनिष्ठता के साथ जुड़े हुए हैं। यदि देश में आयुष विनिर्माण उद्योग को बढ़ावा देते हुए, भारत को वैश्विक जन-कल्याण का रास्ता तय करना है, तो हमें इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण को अपनाना होगा।

विश्व हिन्दी परिषद् के महासचिव डॉ० विपिन कुमार ने कहा कि इस रवैये को देखते हुए प्रेस जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखने की तैयारी की जा रही है, ताकि मंत्रालय के उच्च अधिकारियों की सतत निगरानी के लिए एक समर्पित तंत्र स्थापित किया जा सके।
https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ