भीड़ है, पर आवाज नहीं है

भीड़ है, पर आवाज नहीं है

भीड़ है, पर आवाज नहीं,
कितनों की जीभ कटी है अंदाज नहीं।


यह क्या हो गया है
हमारे इस समाज को,


मानों यंत्र मानव हो सभी,
किसी में कोई भाव नहीं।


जहाँ लोग तो एक साथ हैं,
पर हर शख़्स बेजुबान है।


इस बेजुबानों के समाज में,
देखो निःशब्द हर इंसा है।


यहाँ पर लोगों में अपनी,
बात कहने का साहस नहीं।


लोगों में है कैसा ये डर,
क्या कोई निडर बचा नहीं?


उन्हें लगता है,
कि अगर बोलेंगे तो हानि होगी।


इसलिए वे चुप हैं,
अपनी आवाज़ दबाए हुए हैं।


परिंदे बेसुरे लगते हैं,
महफिल है चुपचाप, पर साज नहीं।


आओ मिलकर,
अपनी आवाज़ उठाएँ।


अपनी बात कहें,
अपनी राय व्यक्त करें।


हमें नहीं डरना चाहिए,
कि अगर बोलेंगे तो हानि होगी।


हमें अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए,
और इस समाज को बदलना चाहिए।


एक ऐसा समाज बनाना चाहिए,
जहाँ हर किसी की आवाज़ सुनी जाए।


एक ऐसा समाज बनाना चाहिए,
जहाँ लोग खुश और उत्साहित हों।


आओ एक ऐसा समाज बनायें,
जहाँ रचनात्मकता-नवाचार का अभाव नहीं।


आओ समाज में नव जागृति लायें,
आवाजें बुलंद हो गूंगा कोई रहे नहीं।


स्वरचित, अप्रकाशित एवं मौलिक
पंकज शर्मा ( कमल सनातनी )हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

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