सडकों पर फूहड प्रदर्शन को, प्रेम नही कहते हैं,
बहन बेटीयों पर व्यंग, अभिव्यक्ति नही कहते हैं।अधेड छेडते बच्चों को, बच्चे छेडें चाची, मामी,
छेडा- छेडी, गुण्डागर्डी, संस्कार नही कहते हैं।
लिखकर अच्छी सी कविता, हो गुण्डों से हमदर्दी,
बलात्कार पर चुप्पी को हम, मर्यादा नही कहते हैं।
अत्याचार चरम पर हो, बहन बेटियाँ रोती घर घर,
कानून के पालन को अब, अत्याचार नही कहते हैं।
माना पिस जाता है घुन भी, कभी कभी गेहूँ संग में,
फिर भी गेहूँ आटे को, घुन का आटा नही कहते हैं।
फूहडपन और नग्नता को जो अधिकार समझते,
ऐसे सडक छाप दुष्टों को, कोई वीर नही कहते हैं।
अ कीर्तिवर्धन
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