क्यों बुलाते हो

क्यों बुलाते हो

खनकती चूड़ियाँ तेरी
हमें क्यों बुलाती है।
खनक पायल की तेरी
हमें लुभाती है।
हँसती हो जब तुम
तो दिल खिल जाता है।
और मोहब्बत करने को
दिल ललचाता है।।
कमर की करधौनी भी
तेरी कुछ कहती है।
जो प्यास दिलकी
बहुत बढ़ाती है।
और होठो की लाली
हंसकर लुभाती है।
फिर आँखे आँखो से
मिलाने को कहती है।।
पहनती हो जो
भी तुम परिधान।
तुम्हारी खूब सूरती
और भी बढ़ाती है।
और अंधेरे में भी पूनम के
चांद सी बिखर जाती हो।
और रात की रानी की
तरह महक जाते हो।।


तभी तो जवां दिलो में
मोहब्बत की आग लगाते हो।
और शरद पूर्णिमा की रात में
अपने मेहबूब को बुलाते हो।
और अपनी मोहब्बत को
ताजमहल जैसी दिलमे शामाते हो।
और अमावस्या की रात को भी
शरद पूर्णिमा की रात बन देते हो।।


तभी तो शरद पूर्णिमा की
गाथाएँ ग्रंथ अनेक है।
शिव पार्वती राधा कृष्ण की
महिमाये भी अनेक है।
युवा दिलो में मोहब्बत की
ज्योति जला देती है।
और एक नया आशियाना
ताज जैसा दिलमें बना देती है।।
जय जिनेन्द्र 
संजय जैन " बीना" 
मुम्बई
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