बन्दर की शादी

बन्दर की शादी

एक बंदर था बहुत उन्मादी ,
बंदर ने लगाई बन्दर की शादी ।
मुश्किल थे उस बन्दर की शादी ,
एकत्रित हुए थे शादी प्रतिवादी ।।
बन्दर नहीं रहता घर के अन्दर ,
लांघता चलता कई कई समन्दर ।
बन्दर निकला सौभाग्यशाली ,
बन्दरिया भी मिली बहुत धुरंधर ।।
बन्दर थे इस बन्दर से परेशान ,
शादी भी नहीं थी इतनी आसान ।
था बहुत ही शरारती यह बन्दर ,
शादी में पड़े बहुत ही व्यवधान ।।
जल्दी जल्दी हो गई अब शादी ,
छिन गया जीवन अब ये उन्मादी ।
बन्दर का जीवन संभल चुका था ,
आईं आशीष देने बन्दर की दादी ।।
बात समझाईं सुनो तुम बन्दर ,
पत्नी संग रहना घर के अन्दर ।
पत्नी तुम्हारी है बहुत धुरंधर ,
तुम भी हुए भाग्य के सिकंदर ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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