हेमंत सोरेन का सामयिक फैसला

हेमंत सोरेन का सामयिक फैसला

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
झारखंड सरकार सम्मेद शिखरजी को धार्मिक पर्यटन स्थल घोषित करने को तैयार हो गयी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह सामयिक फैसला है। सम्मेद शिखर जैनियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां कितने ही तीर्थंकरों ने निर्वाण प्राप्त किया है। इसलिए झारखण्ड सरकार गिरिडीह के पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखरजी को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में घोषित करने को तैयार है तो यह एक तरफ जैन समाज की धार्मिक भावनाओं को संतुष्ट करेगा तो दूसरी तरफ राज्य को देशी और विदेशी मुद्रा में राजस्व भी मिलेगा। सबसे बडी बात यह कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा झामुमो को नया वोट-बैंक मिलेगा। हालांकि इस मामले में एक पेंच फँसा है। जैन समाज वर्ष 2019 में राज्य सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को निरस्त करने की मांग पर अड़ा हुआ है, जिसके तहत पारसनाथ को अंतरराष्ट्रीय महत्व का पर्यटन स्थल घोषित किया गया है। अब राज्य अधिसूचना में पर्यटन स्थल के साथ धार्मिक स्थल जोड़ने को तो तैयार है लेकिन अधिसूचना को निरस्त नहीं किया गया है ।सम्मेद शिखरजी के लिए जयपुर में जैन मुनि की समाधि के सवाल पर राज्य के पर्यटन, कला संस्कृति मंत्री हफीजुल हसन ने कहा कि जैन समाज की आस्था का पूरा ख्याल रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि गत दिनों उनसे मिलने पहुंचे जैन समाज के प्रतिनिधिमंडल को इसका आश्वासन भी दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ प्रतिनिधिमंडल की बैठक शीघ्र कराई जाएगी, ताकि इसका सम्पूर्ण समाधान निकल सके।

झारखंड सरकार सम्मेद शिखरजी को धार्मिक पर्यटन स्थल घोषित करने को तैयार है। पर्यटन कला संस्कृति मंत्री ने कहा कि जैन समाज की आस्था का पूरा ख्याल रखा जाएगा। मुख्यमंत्री के साथ जैन समाज के प्रतिनिधिमंडल की शीघ्र मुलाकात कराई जाएगी। इस प्रकार झारखंड सरकार गिरिडीह के पारसनाथ स्थित सम्मेद शिखरजी को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में घोषित करने को तैयार हो गयी है , लेकिन जैन समाज वर्ष 2019 में राज्य सरकार द्वारा जारी उस अधिसूचना को ही निरस्त करने की मांग पर अड़ा हुआ है, जिसके तहत पारसनाथ को अंतरराष्ट्रीय महत्व का पर्यटन स्थल घोषित किया गया है। राज्य सरकार इस अधिसूचना में पर्यटन स्थल के साथ धार्मिक स्थल जोड़ने को तैयार है।

झारखण्ड राज्य सरकार द्वारा जैन धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थस्थल श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद विरोध के स्वर तेज हो गए थे। सरकार से निर्णय वापस लेने की मांग की जा रही थी। राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ राजधानी रांची में मौन पद यात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में महिला-पुरुष शामिल हुए। इस यात्रा को जैन धर्मावलंबियों के अलावा मारवाड़ी व अन्य समाज का भी समर्थन मिला।

सुरक्षा व्यवस्था के बीच जैन समाज एवं झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंपा कर सरकार के फैसले को रद करने की मांग की। ज्ञापन में कहा गया कि श्री सम्मेद शिखरजी पूरी दुनिया के जैन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। जैन समाज के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने इस पर्वत पर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया है। इसे पर्यटन स्थल बनाने से इसकी गरिमा कम हो सकती है। इसी मामले को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के बीच जैन समाज एवं झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी सम्मेलन के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस को ज्ञापन सौंप कर सरकार के फैसले को रद करने की मांग की। ज्ञापन में कहा गया कि श्री सम्मेद शिखरजी पूरी दुनिया के जैन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। जैन समाज के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने इस पर्वत पर तपस्या की और मोक्ष प्राप्त किया है। इसे पर्यटन स्थल बनाने से इसकी पवित्रता भंग होगी। इससे अहिंसक जैन समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने जैनियों के पवित्र तीर्थ स्थल पारसनाथ (सम्मेद शिखर जी) को पर्यटक स्थल घोषित किए जाने को लेकर चल रहे विवाद में हस्तक्षेप किया है। आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव समेत राज्य सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव को भी समन किया है। आयोग 17 जनवरी को इस मामले में सुनवाई करेगा। मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि इस विषय पर मैं विशेष बात अभी नहीं रख पाऊंगा। भारत सरकार द्वारा गजट प्रकाशित हुआ है। हमने न तो कोई टीका टिप्पणी की है और न कोई निर्णय लिया है। यह किस संदर्भ में है, इसकी जानकारी लेनी होगी। इसमें कोई चिंता की आवश्यकता नहीं है। सभी समाज और धर्मों का सम्मान है। जो इनके सवाल हैं, इन सवालों के क्या हल हो सकते हैं, ये हम देख रहे हैं। मीडिया ट्रायल का कोई फायदा नहीं है। क्या अभी तक कार्रवाई हुई है, उसे देखने के बाद ही सरकार निर्णय करेगी। झारखंड सरकार और केंद्र सरकार द्वारा जैन समाज के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल सम्मेद शिखरजी को पर्यटन स्थल घोषित किये जाने से जैन समाज नाराज है। इसे लेकर देश के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन हो रहे हैं। जैन समाज का कहना है कि “श्री संम्मेद शिखर एक तीर्थ स्थल है, उसे पर्यटन क्षेत्र घोषित नहीं किया जाना चाहिए। यह हमारी आस्था का क्षेत्र है, यदि इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित किया जाएगा तो लोग यहां आएंगे, घूमा फिरी करेंगे। यहां, खाना-पीना, शराब आदि वर्जित चीजों का उपयोग करेंगें जिससे इस तीर्थ स्थल की पवित्रता भंग होगी।

यहां जानना जरूरी है कि तीर्थ और पर्यटन स्थल में अंतर क्या है और कैसे मिलता है टूरिस्ट प्लेस का टैग । श्री सम्मेद शिखर जैन धर्म के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण और पवित्र तीर्थस्थल है। पिछले दिनों केंद्र और झारखंड की राज्य सरकार ने इसे टूरिस्ट प्लेस घोषित किया। इसके बाद इसे टूरिस्ट प्लेस घोषित करने के विरोध में देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगे। दुनियाभर में जहां कहीं भी तीर्थस्थल हैं, वहां पर धार्मिक शुचिता और बेहतर आचरण जैसी परिपाटी पर जोर दिया जाता है। धार्मिक स्थलों पर कई तरह की मर्यादा, शुद्धता और पाबंदियों से भी गुजरना होता है। वहां जाने के लिए शुद्धता भाव पर बल ज्यादा दिया जाता है ।भारत में सबसे अधिक कठिन तीर्थस्थल सबरीमाला है, जहां जाने वाले 40 दिन पहले से व्रत और आचरण पर जोर देना होता है। आस्था और शुचिता को बरकरार रखने के लिए बहुत से तीर्थस्थलों में तमाम पाबंदियां और आचारसंहिताओं पर भी जोर दिया जाता है। इसमें तिरुपति बालाजी से लेकर श्री सम्मेद शिखरजी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, मक्का, वेटिकन सिटी जैसे तमाम तीर्थ शामिल हैं जहां आपको कुछ तय अनुशासन का पालन करना ही होता है। टूरिस्ट प्लेस का टैग पाए स्थलों में शुचिता की जगह एक अलग तरह के आनंद, मौजमस्ती और मनोरंजन के तमाम तरह के साधन सुविधाएं स्थान ले लेते हैं। जैन समाज इसीलिए विरोध कर रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले को सहमति से सुलझा लेंगे ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।
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