मकर संक्रांति और शिक्षा।

मकर संक्रांति और शिक्षा।

आकाश में सूर्य परिभ्रमण पथ को क्रांति वृत्त कहते हैं । ज्योतिष शास्त्र में सूर्य की गति होती है जबकि विज्ञान सूर्य को स्थिर ग्रह मानता है ।गणितके अनुसार उसे 360 अंशों में बांटा गया है जो विज्ञान सम्मत है। ग्रहों की दैनिक गति का आकलन उनके अंश के अनुसार वर्ष,माह,दिन,प्रहर, कला, विकला, प्रविकला पराविकलाओं में किया गया है । इन्हीं पर सारा ग्रह- गणित आधारित हैं।इन 360 अंशों से 30 अंश के हिसाव से बनने वाली 12 राशियों में भ्रमण काल विभक्त किए गए हैं ।इस सिद्धांत के अनुसार सूर्यादि ग्रह द्वादश राशियों की परिक्रमा करते हैं। अभी तक हमने वर्ष मास दिन घंटे मिनट एवं सेकंड की ही गणना देखी है परंतु ज्योतिष शास्त्र में इसे वर्ष, आयन, मास, दिन, याम ,घटी, विघटि, कला ,विकला प्रविकला और पराविकला में विभक्त किया गया है । इन्हीं राशियों में सूर्य जब संक्रमण करते हैं तो दो राशियों की संधि बेला को संक्रांति कहते हैं । शास्त्रों के मतानुसार सभी संक्रांतिओं के नाम अलग-अलग हैं जैसे- धनु, मिथुन ,मीन और कन्या की संक्रांति को षडशीति संक्रांति कहा जाता है वहीं बृष, वृश्चिक ,कुंभ और सिंह राशि पर सूर्य संक्रांति को विष्णुपदी कहा जाता है । सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायण होने के समय संक्रमण को उनकी राशियों के नाम से जाना जाता है ।षडशीति संक्रांति में किए गए पुण्य कार्य सामान्य दिनों के पुण्य कार्य से 86000 गुना अधिक फल देने वाले , विष्णुपदी संक्रांति एक लाख गुना अधिक फल देने वाले, उत्तरायण होते सूर्य की संक्रांति, मकर संक्रांति पर किए गए पुण्य कार्य कड़ोड़ गुना अधिक फल देने वाला माना जाता है ।
सूर्य, चंद्रमा, मंगल ,बुध, बृहस्पति,, शुक्र, शनि, राहु और केतु ग्रह कहलाते हैं ।भारतीय संस्कृति में इस नवग्रह- उपासना का उतना ही महत्व है जितना विष्णु, शिव और अन्य देवताओं का है ।जीवन के संपूर्ण सुख- दुख, लाभ- हानि और जय -पराजय आदि विषय इन्हीं नवग्रहों की कृपा पर आधारित होते हैं । जीवन को प्रभावित करने वाले आकाशीय 27 नक्षत्रों एवं 12 राशियों पर ये सतत भ्रमण करते रहते हैं । इससे प्रभावित होकर ही ऋतुएँ -बसन्त,ग्रीष्म,वर्षा,शरद,हेमन्त,शिषिर परिवर्तित होती हैं एवं दिन-रात बनते हैं ।इस प्रकार ज्योतिष ग्रंथ के मतानुसार हर एक ग्रह इसमें सूरज भी सम्मिलित हैं, अपनी गति के अनुसार मंद -सौर चाल से राशि को पार करते रहते हैं
धनु राशि को पार कर सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस संधि काल को मकर संक्रांति कहा जाता है । मकर राशि पर आते ही सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और उस राशि पर एक महीना 21 कला आठ विकला 10 पराविकला रहते हैं ।उत्तरायण सूर्य के होते ही पृथ्वी पर सकारात्मक ऊर्जा का विकास आरंभ होने लगता है ।परिणामतः दिन बड़ा होने लगता है ,रात छोटी होने लगती है, ठंडक कम होने लगता है, शुभ लग्न एवं शुभकार्य प्रारंभ हो जाते हैं ,शुभ फलदायक कार्यारंभ हो जाते हैं ,विवाह आदि संस्कार प्रारंभ किए जाते हैं ।वैसे ठंढक के वारे में एक कहावत प्रचलित है-बीसी,तीसी,मकर पचीसी।यानी मकर संक्रांति के वाद ठंढक बीस,पच्चीस या तीस दिनों तक ही रहता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना स्वास्थ्य के लिए भी उत्तम बताया गया है ।इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारे शास्त्रों में जो भी पुण्य कार्य बताए गए हैं उनका संबंध सीधा स्वास्थ्य एवं सामाजिक सरोकार समरसता से है ।समाज में समभाव बनाए रखने में यह पर्व काफी मदद करता हैं और आपसी सुखद संयोग बनाता है।
संक्रांति के दिन विभिन्न स्थानों में विभिन्न तरह के व्यंजन और पकवान बनाए जाते हैं ।बिहार में यह चूड़ा दही के नाम पर रूढ़ हो गया है ।सभी लोग चूड़ा- दही या दही और चूड़ा इसमें दही की मात्रा अधिक होती है और तिल से बना तिलकुट जो गया का सुप्रसिद्ध मिष्ठान है और तिल का तिलवा ,तिल का लड्डू भोजन कराते हैं और करते हैं ।कई प्रदेसों में यह खिचड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। दक्षिण जाकर यह पोंगल,ओनम और पश्चिम में लोहड़ी हो जाता है।इससे समाज में समरसता बनी रहती है ।एक तरह के भोजन सभी लोग करें तो कहीं ऊंच-नीच का भेद ऊंच-नीच का भाव और जातीय उन्माद का काफी समन होता रहेगा ।सूरज की किरणें जाति ,संप्रदाय, मित्र, अमित्र सब की सीमा को लांघ कर समग्र भाव रखती है ।
आज वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार यह ज्ञात है कि सूर्य पृथ्वी को डेढ़ हॉर्स पावर शक्ति प्रति फुट वितरित करता है । संपूर्ण विश्व सूर्य से 330000 हॉर्स पावर शक्ति प्राप्त करता है । सूर्य की बाहरी अंतिम आर्बिट का तापमान लगभग 6111 डिग्री फैरेनहाइट है ।उसके अंतर भाग का तापमान अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है लेकिन अनुमान से यह कहा जा सकता है कि वह 4 100 करोड़ फैरेनहाइड से कम नहीं होगा ।सूर्य अपनी शक्ति का स्वयं में 11 करोड़ दो लाख मन भाग प्रति क्षण विभिन्न रूपों में परिवर्तित करता रहता है ।सूर्य इसी प्रकार निरंतर अपनी शक्ति वितरित करता रहे तो 150 लाख वर्षों में भी उसकी शक्ति की मात्रा 1% भी नहीं घटेगी।
अतःसूर्य पूजा के देवता इसीलिए हें कि वे ऊर्जा के अक्षय भंडार हैं। सौर ऊर्जा की शक्ति का ज्ञान विश्व को आज हुआ है जबकि भारत को उस समय से यह ज्ञान है जब दुनिया ने प्रकाश को पहली बार देखा था ।ऐसे सूर्य को वार-वार प्रणाम है।
तं देव देवं प्रणमामि सूर्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 
डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
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