पहली बार मिले थे हम तुम

पहली बार मिले थे हम तुम,

जय प्रकाश कुँवर 
पहली बार मिले थे हम तुम
 हुई थी आंखें चार ;
आंखों ही आंखों में हुआ था ,
हम दोनों का प्यार ।
आंखों ने स्वीकार किया तब ,
होंठ लगे मुस्काने ;
गैर नहीं तुम लगते थे ,
अपने जाने पहचाने ।
होंठों पर मुस्कान तैरती ,
पर न कभी मुख खुलता था ;
बार बार मिलते रहने को ,
मेरा पैर मचलता था ।
मिल कर भी थे होंठ न खुलते ,
चलती न थी जबान ;
बंद मुंह तब थे मुस्काते ,
दोनों के एक समान ।
इंतजार था खत्म न होता ,
कैसे अब बात बढ़ेगी ;
उलझन अपने प्रेम लता की ,
कब परवान चढ़ेगी ।
सुलझाने को विकट समस्या ,
दिल था अलग बेचैन ;
हां, ना , दोनों सोच सोच कर ,
नहीं पड़ती थी चैन ।
एक दिन होंठ खुले फिर उसके ,
बोली प्रेम तुम समझ न पाए ;
दिल में उपजी प्रेम न होती ,
तुम बस होते सिर्फ पराए ।
आंखों ने आंखों में समझा ,
होंठों पर मुस्कान बिखेरी ;
फिर दिल पढ़ा तुम्हारे दिल को ,
तनिक हुई नहीं दिल से देरी ।
हम तो बस ये परख रहे थे ,
धैर्य और विश्वास तुम्हारा ;
चाहत है शरीर की केवल ,
या फिर सच्चा प्यार तुम्हारा ।
धैर्य और विश्वास न हो तो ,
बनते रिश्ते टुट जाते हैं ;
केवल सौंदर्य पर मरने वाले ,नहीं एक दुसरे के हो पाते हैं ।
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