सौर संबत और मकर संक्रांति

सौर संबत और मकर संक्रांति

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म एवं वैदिक पञ्चाङ्ग तथा ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रान्ति सौर संबत का नव वर्ष आत्मोद्धारक व जीवन-पथ प्रकाशक का पर्व मकर संक्रांति है। भगवान सूर्य उत्तर दिशा की तरफ प्रयाण करने के कारण उतरायण (मकर संक्रांति) का पर्व मनाया जाता । मकर संक्रांति से अंधकारमयी रात्रि कम होती और दिन बढ़ता है।
मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है और संक्रांति का स्नान कर लेने से तेजस्वी और पुण्यात्मा हो जाता है । संक्रांति के दिन उबटन लगाने एवं काले तिल का उपयोग करना चाहिए । भगवान सूर्य को भी तिलमिश्रित जल से अर्घ्य देने , तिल का दान पापनाश , तिल का भोजन से आरोग्य , , तिल का हवन पुण्य , पानी में तिल डाल के पिने से स्वास्थ्यलाभ , | तिल का उबटन आरोग्यप्रद , सुर्योद्रय से पूर्व स्नान करने से १० हजार गौदान करने का फल की प्राप्ति होती है । पुण्यकर्म उत्तरायण के दिन तिल और गुड के व्यंजन, चावल और चने की दाल की खिचड़ी आदि ऋतु-परिवर्तनजन्य रोगों से रक्षा करती है । ब्रम्हज्ञान की प्रथम प्राप्ति भगवान सूर्य को मिलने के बाद रजा मनु को, यमराज को मिला था । भास्कर आत्मज्ञानी हैं, पक्के ब्रम्ह्वेत्ता हैं | बड़े निष्कलंक व निष्काम हैं | पद्म पुराण’ में भगवान सूर्य का मूल मंत्र है : ॐ ह्रां ह्रीं स: सूर्याय नम: सूर्य मंत्र का ‘आत्मप्रीति व आत्मानंद की प्राप्ति हो’। सूर्यनमस्कार करने से ओज-तेज और बुद्धि की बढ़ोत्तरी होती है | ॐ सूर्याय नम: | ॐ भानवे नम: | ॐ खगाय नम: ॐ रवये नम: ॐ अर्काय नम: . आदि मंत्रो से सूर्यनमस्कार करने से आदमी ओजस्वी-तेजस्वी व बलवान बनता है । भगवान सूर्य की उपासना करने , अर्घ्य देने , सूर्यस्नान व सूर्य-ध्यान आदि करने से कामनापूर्ति , सूर्य का ध्यान भ्रूमध्य में करने से बुद्धि बढती और नाभि-केंद्र में करने से मन्दाग्नि दूर और आरोग्य का विकास होता है ।
सूर्य की धूप में जो खाद्य पदार्थ, जैसे-घी, तेल आदि २ – ४ घंटे रखा रहे तो अधिक सुपाच्य हो जाता है | धूप में रखे हुए पानी से कभी –कभी स्नान करने से सूखा रोग नहीं होता और रोगनाशिनी शक्ति रहती है । सूर्य की किरणों से रोग दूर करने की प्रशंसा ‘अथर्ववेद’ के कांड – १, सूक्त २२ के श्लोकों में सूर्य की किरणों का वर्णन आता है ।
मैं १५-२० मिनट सूर्यस्नान करता हूँ | लेटे–लेटे सूर्यस्नान करना और भी हितकारी होता है लेकिन सूर्य की कोमल धूप हो, सूर्योदय से एक-डेढ़ घंटे के अंदर-अंदर सूर्यस्नान करने से मांसपेशियाँ तंदुरस्त , स्नायुओं का दौर्बल्य दूर होता है ।
सूर्यस्नान से त्वचा के रोग भी दूर , हड्डियाँ मजबूत , रक्त में कैल्शियम, फ़ॉस्फोरस व लोहें की मात्राएँ बढती , ग्रंथियों के स्त्रोतों में संतुलन , सूर्यकिरणों से खून का दौरा तेज, नियमित व नियंत्रित चलता है । लाल रक्त कोशिकाएँ जाग्रत होती हैं, रक्त की वृद्धि होती है । गठिया, लकवा और आर्थराइटिस के रोग में लाभ होता है । रोगाणुओं का नाश होता है, मस्तिष्क के रोग, आलस्य, प्रमाद, अवसाद, ईर्ष्या-द्वेष आदि शांत होते हैं | मन स्थिर होने में भी सूर्य की किरणों का योगदान है | नियमित सूर्यस्नान से मन पर नियंत्रण, हार्मोन्स पर नियंत्रण और त्वचा व स्नायुओं में क्षमता, सहनशीलता की वृद्धि होती है |*नियमित सूर्यस्नान से दाँतों के रोग दूर होने लगते हैं । विटामिन ‘डी’ की कमी से होनेवाले सूखा रोग, संक्रामक रोग आदि भी सूर्यकिरणों से भगाये जाते हैं ।
कलियुग संवत्.5124 , विक्रम संवत 2079 ,शक संवत 1944 ,आंग्ल संबत 2023 ,संवत्सर श्री नलनाम् 14 जनवरी 2023 शनिवार की रात को मकर राशि में प्रवेश कर लेंने के बाद पुण्‍य काल मकर संक्रांति 15 जनवरी 2023 रविवार को मनाई जाएगी । -तिल का दान : मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा जाता है. इस दिन तिल का दान करना बहुत लाभ देता है. इससे शनि दोष दूर होता है. इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु, सूर्य और शनि देव की पूजा भी करनी चाहिए. कंबल का दान: मकर संक्रांति के दिन गरीब व्यक्ति को कंबल का दान करें. इससे राहु दोष दूर होता है. गरीब, असहाय, जरूरतमंद लोगों को काले रंग के कंबल का दान करें. गुड़ का दान: गुड़ को गुरु ग्रह से जोड़ा गया है. मकर संक्रांति रविवार के दिन पड़ रही है इसीलिए इस दिन गुड़ का दान करना कुंडली में गुरु ग्रह को मजबूत करेगा और जीवन में सौभाग्य, सुख-समृद्धि देगा. खिचड़ी का दान: मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाने का बहुत महत्‍व है. इसलिए इसे खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है. मकर संक्रांति की खिचड़ी में चावल, उड़द की दाल और हरी सब्जियों का उपयोग किया जाता है, ये चीजें शनि, बुध, सूर्य और चंद्रमा से जुड़ी हुई हैं. इस दिन खिचड़ी खाना और दान करना इन सभी ग्रहों की कृपा दिलाता है । घी का दान: मकर संक्रांति के दिन घी का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि घी को सूर्य और गुरु ग्रह से जोड़कर देखा जाता है. मकर संक्रांति का पर्व सूर्य की आराधना का पर्व है और इस साल यह रविवार के दिन पड़ रही है ऐसी स्थिति में घी का दान करने से कुंडली में सूर्य और गुरु ग्रह मजबूत होंगे. यह दोनों ग्रह जीवन में सफलता सुख समृद्धि और मान सम्मान दिलाते हैं. उत्तर भारत में मकर संक्रांति को 'मकर सक्रान्ति, पंजाब में लोहडी, गढ़वाल में खिचडी संक्रान्ति, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होने व उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है जिससे उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। अतः मकर संक्रान्ति अन्धकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि की शुरुआत है। जीवधारी पशु,पक्षी व् पेड़ पौधे प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं । शनि देव मकर राशि के स्वामी हैं । भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के दिन की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। भगवद् गीता के अध्याय ८ में भगवान कृष्ण के अनुसार उत्तरायण के छह माह में देह त्याग करने वाले ब्रह्म गति को प्राप्त होते हैं जबकि और दक्षिणायन के छह माह में देह त्याग करने वाले संसार में वापिस आकर जन्म मृत्यु को प्राप्त होते हैं।अग्निर्ज्योतिरहः शुक्लः षण्मासा उत्तरायणम् ।तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः ৷৷धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्।तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ৷৷शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ৷৷ भीष्म पितामह महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद मकर संक्रान्ति की प्रतीक्षा में अपने प्राणों को रोके अपार वेदना सह कर शर-शैया पर पड़े रहे थे। माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और भगीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्ति प्रदान की थी । बंगाल में गंगासागर तीर्थ में कपिल मुनि के आश्रम परजाने से "सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार" मनोवांक्षित फल मिलता हैं। तीर्थराज प्रयाग में लगने वाले कुम्भ और माघी मेले का प्रथम स्नान मकर संक्रांति से होता है।मकर संक्रांति को अनेक स्थानों पर पतंग महोत्सव मनाए जाते हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य में भी पतंग उड़ाने का उल्लेख है। रामचरित् मानस के बालकाण्ड में श्री राम के पतंग उड़ाने का वर्णन है। 'राम इक दिन चंग उड़ाई, इन्द्र लोक में पहुंची जाई।' पंपापुर से हनुमान जी को बुलवाया गया था, तब हनुमान जी बाल रूप में थे। जब वे आए, तब 'मकर संक्रांति' का पर्व था ।मकर संक्रांति को हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। राजस्थान व् गुजरात में पतंग उड़ाने की परम्परा है। गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने तड़के से ही जनसैलाब उमड़ पड़ता है। मकर संक्रांति के महापर्व पर लाखों श्रद्धालु गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी (चावल-दाल, उड़द) चढ़ाकर अपनी आस्था व श्रद्धा निवेदित करते हैं।खिचड़ी चढ़ाने के पहले मंदिर में तड़के तीन से चार बजे तक श्रीनाथ जी की विशिष्ट पूजा-आरती होती है। इसके बाद महाप्रसाद से गुरु गोरखनाथ का भोग लगता है। इसके बाद भारत राष्ट्र की सुख समृद्धि की कामना के साथ मंदिर की ओर से शिवावतार बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसके बाद पहली खिचड़ी नेपाल राज परिवार की ओर से श्रीनाथ जी को अर्पित की जाती है। चार बजते ही मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाते हैं। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। बंगाल में इस पर्व पर गंगा सागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। असम में मकर संक्रान्ति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं।आंध्र प्रदेश व् तेलंगाना में चावल के आटे से आंगन में मग्गू की रचना करते हैं और उसके पास बैठ कर कन्याएं गीत गाती हैं।भगवान सूर्य को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। पशुओं को सजाते हैं और तमिलनाडु का प्रसिद्ध खेल जल्लिकट्टु होता है। इस खेल में बैल के सींग पर ईनाम की राशी बांधी जाती है और जो साहसी युवक आक्रामक बैल को साधता है उसे वह राशि दी जाती है। तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। चौथे दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है ।कर्नाटक में मकर संक्रांति के दिन तिरुपति बाला जी की यात्रा का समापन होता है। केरल में इस दिन सबरीमाला मंदिर और त्रिचूर के कोडुगलूर देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ एकत्र होती है।
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