राष्ट्र हित और चीन पर बहस

राष्ट्र हित और चीन पर बहस

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
यह सच है कि चीन के सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लांघ आए थे लेकिन यह भी सच है कि उन्हें वापस खदेड़ दिया गया। अंत भला तो सब भला की कहावत के अनुसार हम संतुष्ट होकर नहीं बैठ सकते थे और बैठे भी नहीं हैं लेकिन इस मामले को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष की बहस में राष्ट्रहित को थोड़ा नजरंदाज किया जा रहा है। इसी तरह की बहस सन् 1962 में भारत पर चीन के हमले के दौरान भी छिड़ी थी। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के हित को सर्वोपरि बताते हुए सफाई पेश की थी और विपक्षी दल जनसंघ के नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने भी देश के हित को प्राथमिकता देते हुए सरकार की आलोचना की थी। अटल जी ने सबसे पहले यही कहा था कि आज देश पर आए बहुत बड़े संकट के समय हम सरकार के साथ खड़े हैं। इसके बाद उन्होंने सरकार से यह हिसाब भी मांगा था कि ऐसी नौबत क्यों आई? आज इस तरह की बहस क्यों नहीं हो सकती?

विपक्षी दलों ने अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प को लेकर बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर अपना हमला तेज कर दिया है। संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में इसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ। झड़प में दोनों देशों के सैनिकों के घायल होने की खबर है। ये झड़प 9 दिसंबर को तवांग के करीब हुई है। इस दौरान भारतीय सैनिकों ने चीन को करार जवाब दिया। झड़प में चीन के 20 से ज्यादा सैनिक घायल हुए हैं। अक्टूबर 2021 में अरुणाचल प्रदेश के यांगसे में भी दोनों देशों के सैनिकों में विवाद हुआ था। इस झड़प को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच जुबानी हमले तेज हो गये।

यह सच है कि 1962 में चीन से युद्ध के वक्त विपक्षी सांसद के तौर पर भाजपा के पूर्वावतार जनसंघ के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी तक ने यह नहीं माना था कि सरकार और सेना पर सवाल उठाना देशद्रोह होता है, इसलिए नेहरू सरकार को सवालों के सामने लाने के बजाय बख्श देना चाहिए। तब अटल द्वारा सरकार की तीखी आलोचना के बावजूद प्रधानमंत्री नेहरू या उनकी कैबिनेट के किसी मंत्री ने उनको देशद्रोही नहीं ठहराया था और न संकट की दुहाई देकर लोकतंत्र को स्थगित करने की कोई कवायद की थी। उलटे उनकी मांग पर राज्यसभा की बैठक भी बुलायी गयी थी और उसमें व्यापक बहस-मुबाहिसा हुआ था। अटल जी ने यह जरूरत कहा था कि संकट के समय विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है।

प्रसंगवश, चीन से वह युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 से 21 नवंबर, 1962 तक यानी एक महीना एक दिन चला था। हालांकि पहली झड़प इससे पहले 5 सितंबर को ही हो गयी थी, जो अटल के अनुसार चीन के इरादों का पता देने के लिए पर्याप्त थी। उन्होंने इस बीच नेहरू सरकार द्वारा प्रतिरक्षा की कोई तैयारी न करने को राज्यसभा में अपने भाषण का बड़ा मुद्दा बनाया था। एक ओर सीमा पर युद्ध जारी था और दूसरी ओर वे नेहरू सरकार को घेर रहे थे। उन्होंने पूछा था क्या पं. नेहरू को पता था कि सेना नेफा (अब अरुणाचल) में चीनी हमले का सामना करने के लिए कितनी तैयार है? चीन ने 5 सितंबर और 20 अक्टूबर को हमला किया। भारत ने बीच के इतने दिनों में तैयारी क्यों नहीं की? नेफा में सरहद की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सैनिकों को क्यों नहीं लगाया गया और जो थे, वे जरूरी हथियारों और अन्य चीजों से लैस क्यों नहीं थे? विदेश से लौटने के बाद पं. नेहरू ने चीन से बढ़ते तनाव को लेकर सरकार के फैसलों के बारे में सबको जानकारी क्यों नहीं दी? मोदी सरकार को भी नेहरू सरकार जैसे सवालों के सामने क्यों नहीं खड़ा किया जाना चाहिए? लेकिन देश को प्राथमिकता देनी ही पड़ेगी।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में झड़प के कुछ ही दिन बाद हाई-रिसॉल्यूशन तस्वीरों से संकेत मिलते हैं कि चीन ने तिब्बत के प्रमुख एयरबेसों पर बड़ी तादाद में ड्रोन और लड़ाकू विमान तैनात किए हैं, जिनकी रेंज में भारत का पूर्वोत्तर हिस्सा है। ये तस्वीरें उस वक्त मिली हैं, जब चीन की बढ़ी हुई हवाई गतिविधियों की वजह से अरुणाचल प्रदेश के आकाश में भारतीय वायुसेना भी लगातार युद्धक हवाई गश्त कर रही है। पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय वायुसेना ने भी कम से कम दो मौकों पर अपने लड़ाकू विमानों को उड़ाया है, जब उन्होंने चीन के विमानों को अरुणाचल प्रदेश के आकाश में भारतीय सीमा का उल्लंघन करने के करीब देखा।

अरुणाचल प्रदेश की सीमा से 150 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित चीन के बांगदा एयरबेस से मिली तस्वीर में अत्याधुनिक डब्ल्यूजेड-7 सोरिंग ड्रेगन ड्रोन दिखाई देता है। वर्ष 2021 में पहली बार आधिकारिक रूप से जारी किए गए सोरिंग ड्रेगन, जो बिना रुके 10 घंटे तक उड़ सकता है, को जासूसी, निगरानी और सर्वेक्षण के कामों के लिए बनाया गया है, तथा यह डेटा को ट्रांसमिट भी कर सकता है, ताकि क्रूज मिसाइलें जमीनी लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम हो सकें। भारत इस तरह के किसी ड्रोन को ऑपरेट नहीं करता है।

बांगदा एयरबेस की 14 दिसंबर की तस्वीर में दो फ्लैन्कर-टाइप लड़ाकू विमान भी फ्लाइट लाइन पर नजर आते हैं। ये विमान भारतीय वायुसेना द्वारा उड़ाए जाने वाले रूस-निर्मित सुखोई एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमानों के चीन में बने वेरिएन्ट हैं।

तिब्बत क्षेत्र में बढ़ते चीनी सैन्य इन्सटॉलेशन पर बारीक नजर रखने वाली फोर्स एनैलिसिस से जुड़े प्रमुख सैन्य विश्लेषक सिम टैक का कहना है, अन्य हालिया रिपोर्टों के साथ-साथ उपग्रह की तस्वीरों में देखे गए प्लेटफॉर्म लंबे समय तक टिके रहने वाले प्लेटफॉर्म की एक विस्तृत शृंखला को जाहिर करते हैं, जिनका उपयोग चीन द्वारा भारतीय गतिविधियों पर निगरानी करने, उन्हें थका डालने और उलझाने के लिए किया जा सकता है। इस क्षेत्र में चीन की हवाई युद्ध क्षमता में सुधार का निश्चित रूप से भारतीय वायुसेना पर बड़ा असर पड़ेगा और इस पर भी कि वह कैसे भविष्य के खतरे के लिए खुद को तैनात करता है। चीन की सैन्य हवाई गतिविधियां उस वक्त बढ़ी हैं, जब अरुणाचल प्रदेश के यांग्त्से क्षेत्र (तवांग सेक्टर) में आमने-सामने हिंसक झड़पें हुई हैं, और 9 दिसंबर को भारतीय जवानों ने चीनी फौजियों के ऊंचाई पर मौजूद एक पोस्ट पर कब्जा करने के मंसूबों को नाकाम कर दिया था। संसद में दिए बयान में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इसे चीन की ओर से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश करार दिया था, जिसे दूसरे शब्दों में भारतीय क्षेत्र में घुसने की कोशिश कहा जा सकता है। झड़प में दोनों तरफ के फौजियों को चोटें आई थीं। हालांकि 2020 में भारत के साथ सीमा पर तनाव शुरू होने के बाद से चीन द्वारा अपने एयरबेसों और हवाई उपकरणों, जिनमें लड़ाकू विमान, ट्रांसपोर्ट विमान, ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध सामग्री तथा टोही विमान शामिल हैं, का उन्नयन बेहद चैंकाने वाला रहा है। तभी से बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने के लिए रेललाइनें बिछाए जाने के साथ-साथ तिब्बत में जमीनी हवाई सुरक्षा, हेलीपोर्ट आदि का व्यापक विकास किया गया है।
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