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खाने के लिए अपनी, अपनी पसंद

खाने के लिए अपनी, अपनी पसंद

(प्रस्तुति: अचिता-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
शरीर के लिए भोजन जरूरी है लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है पसंद का भोजन। इससे इंसान तो क्या पशु और देवी-देवता भी अपने को नहीं रोक पाते। एक बिल्ली बेचारी दूध को कैसे छोड़ सकती थी लेकिन दूध संकरे बर्तन मंे रखा था। पसंद की चीज थी सो बर्तन मंे मुंह डाल दिया लेकिन फिर गर्दन बाहर निकालने मंे नानी याद आ गयी। बिल्ली की तरह ही एक बंदर को नानवेज और दारू का चश्का लग गया। दारू ने उसे धूर्त बना दिया। इसके चलते उसे जेल मंे जाना पडत्रा। कोलकाता मंे माँ दुर्गा ने अपने एक चीनी श्रद्धालु की आस्था देखी तो स्वाद बदलने के लिए नूडल्स खाए। अब उस मंदिर मंे प्रसाद स्वरूप नूडल्स ही दिये जाते हैं।

जानवर हो या इंसान हर किसी के जीवन में कुछ न कुछ सबसे खास और पसंदीदा जरूर होता है। ऐसी पसंद जिसके लिए वो कुछ भी कर जाने को तैयार रहते हैं। ऐसी ही कोशिश एक बिल्ली को भारी पड़ गई। बिल्ली का सबसे पसंदीदा आहार होता है दूध। देखते ही पूरा पतीला खाली कर देती है लेकिन इस बार जब बिल्ली ने दूध भरी बाल्टी में अपनी गर्दन घुसाई, तो फिर निकालना मुश्किल हो गया। फिर उसका ऐसा तमाशा बना कि लोग देखते रह गए। ट्विटर पर एक ऐसी ही बिल्ली का वीडियो शेयर किया गया जो गर्दन में बर्तन फंसाकर घूमती दिखाई दी। असल में बिल्ली की गर्दन में फंसा बर्तन दूध की बाल्टी है जो दूध चोरी के दौरान बेचारी बिल्ली की गर्दन में ऐसी अटकीं कि छुड़ाना मुश्किल हो गया। फिर वो बर्तन को गर्दन में लेकर यहां-वहां घूमती दिखाई दी। बेचारी बिल्ली खुले रास्तों पर यहां वहां घूमती रही। इस दौरान उसकी गर्दन दूध वाली बाल्टी में अंदर तक घुसी हुई थी। वह उसे निकाल नहीं पाई लिहाजा बाल्टी के साथ ही घूमने लगी। इस दौरान बिल्ली के सामने से कई परिंदे भी पार होते दिखे, लेकिन बिल्ली के गर्दन में पड़ी बर्तन के चलते वो बिल्ली से सुरक्षित होने में कामयाब रहे। बेचारी बिल्ली को क्या पता था कि इस बार दूध की चोरी उसे इतनी महंगी पड़ जाएगी। बिल्ली को बर्तन में फंसा घूमते देख कोई भी उसकी मुश्किल का अंदाजा लगा सकता है। आंखों के आगे अंधेरा होगा और कुछ ही देर में सांस फूल सकती है। लिहाजा बहुत से लोग उसे देख कर द्रवित भी हो रहे होंगे। कोई भी बिल्ली की मदद को आगे नहीं आया। ‘दूध चोरी करने की मिली बिल्ली को सजा’।

बिल्ली की तरह एक बंदर भी समाज भोगने को मजबूर हुआ। यूपी के कानपुर जिले में एक बंदर को उम्र कैद की सजा मिली है। कानपुर प्राणि उद्यान में पिछले पांच सालों से पिंजड़े में कैद कालिया नाम के बंदर को उम्र कैद मिली है। मिर्जापुर से पकड़ कर इस आतंकी बंदर को यहां लाया गया था, जिसके व्यवहार में अब तक कोई सुधार नहीं आया है। इस बंदर कालिया का आतंक इस कदर था कि महिलाएं और बच्चे उसके नाम से दहशत खाते थे। यूपी के मिर्जापुर में 5 साल पहले एक बंदर ने जमकर आतंक मचा रखा था। इस बंदर ने लगभग 250 महिलाओं और बच्चों को अपना निशाना बनाकर गंभीर रूप से घायल किया था। तमाम प्रयासों के बाद भी बंदर को पकड़ा नहीं जा सका, जिसके बाद कानपुर प्राणी उद्यान की टीम ने उसको मिर्जापुर से पकड़ा था। वैसे तो कानपुर चिड़ियाघर में कई उत्पाती बंदर बंद हैं, जिनको अब रिहा करने की तैयारी भी है लेकिन कालिया को रिहा बिल्कुल नहीं किया जाएगा। दरअसल उसके स्वभाव में सुधार नहीं आया। वह अभी भी पहले की तरह ही आक्रामक है। कालिया महिलाओं के लिए खौफ का पर्याय बना हुआ था।वह महिलाओं को देखकर तरह तरह के भद्दे इशारे किया करता था। बंदर महिलाओं को इशारे करने के साथ ही मन ही मन बुदबुदाने लगता था। 5 साल उसको कैद में रहते हुए हो गए लेकिन अभी भी वह अटैक करने को दौड़ता है। इस वजह से उसको गेट के बाहर नहीं निकाला जा सकता।

चिड़ियाघर के डॉ नासिर ने बताया कालिया को एक तांत्रिक ने पाला था। वह उसे खाने में मांस और पीने के लिए दारू देता था, जिसके चलते उसका स्वभाव बहुत हिंसक हो गया। तांत्रिक की मौत के बाद वह लोगों के ऊपर अटैक करने लगा था। उसे पांच साल पहले मिर्जापुर से पकड़ कर चिड़ियाघर लाया गया था।

पशुओं को छोड़िए, देवी-देवता भी खाने-पीने मंे मूडी हो गये हैं। कोलकाता में एक ऐसा मंदिर है जहां पर मां को नूडल्स का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर का निर्माण चीन के लोगों ने करवाया था। हिंदू धर्म में काली माता को क्रोध का प्रतीक माना जाता है लेकिन कोलकाता में स्थित काली मंदिर उदारता का प्रतीक माना गया है।

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में एक ऐसा मंदिर मौजूद है जिसे चाइनीज काली मंदिर कहा जाता है। खास बात है कि यहां नूडल्स वाला प्रसाद दिया जाता है। इस मंदिर की देखरेख यहां मौजूद चीनी समुदाय द्वारा की जाती है। कोलकाता के टेंगरा में मौजूद चाइनीज काली बाड़ी को चाइनाटाउन ऑफ इंडिया के रूप में जाना जाता है। वैसे टेंगरा में बौद्ध और ईसाई रीति-रिवाजों का ज्यादा पालन किया जाता है। नवरात्र के दौरान यहां काली पूजा की अलग ही रौनक रहती है। कहते हैं कि इस मंदिर को साल 1998 में तैयार किया गया था। यह मंदिर कोलकाता से करीब 12 किमी दूर टांग्रा शहर में है।यहां अधिकतर चीनी लोग रहते हैं इसलिए यह जगह चाइना टाउन के नाम से मशहूर है। कहा जाता है कि यहां मां दुर्गा के रूप काली की पूजा के लिए चीनी समुदाय जमा हुआ और एक समय पर सभी ने पेड़ के नीचे पूजा शुरू की थी। आज ये एक चर्चित मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर में नूडल्स को प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। यही वजह इसे बाकी मंदिरों से काफी अलग बनाती है। एक कथा के अनुसार करीब 60 साल पहले यहां काली माता का कोई मंदिर नहीं था। यहां एक पेड़ के नीचे कुछ काले पत्थर रखे हुए थे, जिन्हें लोग देवी का प्रतीक मानकर पूजते थे। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन चीनी लड़का बीमार हो गया। बहुत कोशिशों के बाद भी वह ठीक नहीं हुआ। किसी को भी उसकी बीमारी के कारण समझ नहीं आ रहा था। फिर बीमार लड़के का परिवार पेड़ के नीचे स्थित माता की पूजा करने लगे। बस यहीं से लगातार पूजा की गई और लड़का ठीक हो गया। इसके बाद सभी चीनी लोगों को देवी की शक्तियों पर भरोसा हो गया। कुछ समय के बाद कुछ चीनी लोगों ने वहां पर मंदिर का निर्माण करवाया जिसे चाइनीज काली मंदिर के नाम से जाना जाता है। तब से यहां मौजूद चीनी समुदाय में मां काली के प्रति विश्वास और बढ़ गया और वे उनकी पूजा करने लगे। इस मंदिर में जो भक्त आते हैं वे मंदिर के भीतर हाथ से बने एक पेपर को जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और बुरी आत्माएं उनसे दूर रहती हैं। ध्यान रहे कि साम्यवादी चीन मंे धर्म को अफीम समझा जाता है लेकिन कोलकाता मंे चीनी देवी के भक्त हैं।
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