नस नस में है

नस नस में है

रात ढलने को है 
सपनो से निकलना है। 
दिन के उजाले में
खुदको खोजना है। 
फिर अपनी राह पर 
हमें चलना है। 
और अपनी मंजिल को
हमें पाना है।। 

लूटाकर सब कुछ 
हमने क्या पाया है। 
जीवन के लक्ष्य से
हमें भटकाया है। 
चाहत बहुत कुछ थी
जीवन में पाने की। 
पर मेरी किस्मत ने ही
मुझे हर जगह अटकाया है।। 

खोजता रहा उम्र भर
अपनी परछाई को। 
जो मिल न सकी 
कभी तन्हाइयों में। 
चाहकर भी हम उन्हें 
कभी भूला न सके। 
क्योंकि वो बसती जो
मेरी नस नस में।। 

जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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