पहाड़ पर लाबिंग पालिटिक्स

पहाड़ पर लाबिंग पालिटिक्स

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राजनीति की बहुत पुरानी बीमारी गुटबंदी है। इसी का एक नतीजा पार्टी या सरकार टूटने के रूप में सामने आता है। महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना को तोड़ दिया और खुद मुख्यमंत्री बने हैं। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की गुटबंदी ने कमलनाथ सरकार को ही गिरा दिया। यह गुटबंदी कमोवेश सभी राजनीतिक दलों में देखी जा सकती है। तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी अन्नाद्रमुक पन्नीर सेल्वम और पलानीस्वामी के गुट में बंट गयी है। उत्तर प्रदेश में गुटबाजी के चलते ही कांग्रेस चैथे स्थान पर फिसल गयी है। यह सब देखते हुए भी नेता अपनी-अपनी लाॅबिंग मजबूत करते रहते हैं। पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों में इस समय गुटबाजी सड़क पर दिखने लगी है। सत्तारूढ़ भाजपा के कार्यकर्ता, विधायक और पदाधिकारी अपनी-अपनी लाॅबिंग कर रहे हैं तो मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में भी घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। हरीश रावत को कांग्रेस के पोस्टर से ही गायब कर दिया गया था। अब यूथ कांग्रेस की एक सूची को लेकर बखेड़ा हो रहा है।

उत्तराखंड कांग्रेस एक तरफ पॉलिटिकल अफेयर कमेटी बनाकर नेताओं के बीच चल रहे शीतयुद्ध को शांत करने की कोशिश कर रही है, वहीं नेताओं की गुटबाजी पार्टी के लिए मुसीबत का सबब बन रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा के आधिकारिक रूप से जारी पोस्टर में पूर्व सीएम हरीश रावत का फोटो न लगाने से जुड़ा विवाद ठंडा भी नहीं हुआ था कि यूथ कांग्रेस में एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया। पदाधिकारियों के एक दर्जन से ज्यादा नामों की यह लिस्ट जारी की गई थी, लेकिन संगठन में ऐसा बवाल मचा कि इसे वापस लेना पड़ा और यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को आरोपों सामना करने की नौबत भी आई। दरअसल उत्तराखंड यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष सुमित्तर भुल्लर के साइन से जारी एक लिस्ट में प्रदेश उपाध्यक्ष, महासचिव और जिला अध्यक्ष के नाम थे, लेकिन लिस्ट पर बवाल मच गया। भुल्लर पर उन्हीं के संगठन के लोगों और कई विधायकों ने मनमानी के आरोप लगा डाले। यूकां प्रदेश महामंत्री प्रदीप बिष्ट ने कहा संगठन में बदलाव से पहले सभी को विश्वास में लिया जाना चाहिए, लेकिन 13 घोषणाओं के मामले में ऐसा नहीं हुआ। हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश ने साफ कह दिया कि यूथ कांग्रेस की जो मॉनीटरिंग पीसीसी के लेवल पर होनी चाहिए, वो नहीं हो रही और कांग्रेस व यूकां के बीच कम्युनिकेशन गैप है। भुल्लर ने रातों-रात हरिद्वार, पिथौरागढ़, नैनीताल, ऊधम सिंह नगर, चमोली और देहरादून के जिलाध्यक्षों के साथ ही दून और रुद्रपुर महानगर के अध्यक्षों को भी हटा दिया था। फिर आरोप लगा कि इस बदलाव में बड़े नेताओं को भरोसे में नहीं लिया गया। यहां तक कि विधायकों को भी नजरअंदाज कर दिया गया। कई नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी, तो पीसीसी को मामले में दखल देना पड़ा और सारी घोषणाओं को रोक दिया गया। करन माहरा भी एक पोस्टर जारी करने को लेकर विवादों में हैं। कांग्रेसियों से राजभवन कूच का आह्वान करने वाले इस पोस्टर में जिन नेताओं के फोटो लगे हैं, उनमें पूर्व सीएम हरीश रावत शामिल नहीं हैं। माहरा द्वारा जारी आधिकारिक पोस्टर में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ ही प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और उप नेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी के चित्र हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या उत्तराखंड कांग्रेस के लिए हरीश रावत का चेहरा अब काम का नहीं रहा?

जीजा हरीश रावत और साले करन माहरा के बीच दूरियों को लेकर छिड़ी बहस के बीच पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने वरिष्ठ नेताओं को सम्मान दिए जाने की बात कही, तो युवा विधायक सुमित हृदयेश ने हरीश रावत के साथ ही पूर्व पीसीसी प्रमुख प्रीतम सिंह व गणेश गोदियाल का सम्मान किए जाने की प्रैक्टिस को जरूरी करार दिया। राष्ट्रपति चुनाव में क्राॅस वोटिंग के बाद उत्तराखंड कांग्रेस के भीतर खेमेबाजी और बड़े नेताओं के बीच शीतयुद्ध जैसे हालात पर काबू पाने के लिए पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी बनाई गई है। कमेटी में प्रदेश प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष से लेकर विधायक सुमित हृदयेश और राजेंद्र भंडारी को जगह मिली है तो टीम राहुल के वैभव वालिया भी इसमें शामिल हैं।

उधर, सत्तारूढ़ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं, विधायकों और तमाम पदाधिकारियों के बीच भी हलचल है और सब अपनी लाॅबिंग में जुटे हुए हैं। असल में राज्य सरकार की कैबिनेट विस्तार से लेकर प्रदेश भाजपा की नयी टीम तक बड़े बदलाव होने हैं। एक तरफ, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष का चार्ज संभालने के बाद महेंद्र भट्ट आगामी निकाय, पंचायत व लोकसभा चुनावों के लिए अपनी टीम तैयार करेंगे तो वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट के साथ ही दायित्वधारियों को लेकर बड़े फैसले कर सकते हैं। इस हलचल के बीच पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के भविष्य को लेकर सवाल भी चर्चा में हैं।

संगठन से लेकर कैबिनेट विस्तार तक में राष्ट्रीय नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होगी, लेकिन भट्ट और धामी की पसंद और नापसंद का भी अहम रोल होगा। भट्ट का कहना है प्रत्येक कार्यकर्ता महत्वपूर्ण है, जिसकी जहां जरूरत होगी, वहां काम दिया जाएगा। बीजेपी ऑफिस में भट्ट को बधाई देने के बहाने पार्टी वर्कर्स की भीड़ लगी है। टिहरी से पूर्व ब्लॉक प्रमुख खेम सिंह चैहान कहते हैं कि कार्यकर्ताओं को उम्मीद तो होती ही है। हालांकि, भट्ट के लिए मनपसंद टीम का चयन आसान नहीं होगा। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रहे मदन कौशिक अब राजनीतिक पुनर्वास की तलाश में हैं। सीएम धामी से उनकी दूरियां जगजाहिर हैं। ऐसे में संभावना कम ही है कि कैबिनेट विस्तार में उन्हें जगह मिले। जानकार बता रहे हैं कि कौशिक खुद भी कैबिनेट के बजाय राष्ट्रीय संगठन में किसी पद या लोकसभा चुनाव में हरिद्वार से टिकट के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व से आश्वासन की ओर देखना चाहेंगे। दूसरी ओर चर्चा है कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत का राजनीतिक वनवास अब खत्म हो सकता है। मार्च 2021 में सीएम पद से हटने के बाद से ही रावत सियासी वनवास पर हैं। पिछले दो दिन से दिल्ली दौरे पर रावत ने बीजेपी के कई नेताओं के साथ ही राष्ट्रीय महामंत्री संगठन बीएल संतोष से मुलाकात की। इस मुलाकात के खास मायने निकाले जा रहे हैं। चर्चा है कि उन्हें राष्ट्रीय संगठन में कोई जिम्मेदारी दी जा सकती है क्योंकि रावत मूलतः संगठन से ही निकले कार्यकर्ता हैं और पहले भी वह संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। भाजपा कार्यकर्ता 16 महीनों से दायित्वों की उम्मीद पाले बैठे हैं। त्रिवेंद्र रावत सरकार में सौ से अधिक कार्यकर्ताओं को दायित्वों से नवाजा गया था लेकिन मार्च 2021 में उनके हटते ही दायित्वधारियों की भी छुट्टी हो गई थी। तबसे तीरथ रावत सरकार रही या धामी सरकार, इन कार्यकर्ताओं के हाथ खाली रहे। धामी टू सरकार में भी चंपावत सीट छोड़ने वाले पूर्व विधायक कैलाश गहतौड़ी के अलावा अभी तक किसी और को दायित्व नहीं मिला।
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