कही लगता नहीं ...
न कही मन लग रहा
न ही दिल लग रहा।
पता नहीं मुझे क्यों
अब ऐसा होने लगा।
बड़ी अजीब बेचैनी
मुझे क्यों हो रही।
कराये किससे हम इलाज
जिससे मिट जाये ये रोग।।
हवाएं भी अब देखो
यहां की रुक गई है।
घटाए भी यहां की
अब छट गई है।
पर दिलकी धड़कने जरूर
बहुत तेज हो गई है।
और एक तूफान सा
दिलमें आ सा गया है।।
कभी हँसते खिल्ल खिलाते थे
इन गल्लियों और मोहल्लो में।
सुबह से शाम तक हमसब
यही खेला करते थे।
बहुत हालचल होकर भी
मुझे क्यों सुना लग रहा।
और दिल बस हर जगह
उन्हें खोजे जा रहा।।
आये है जब से वो
मेरी जीवन में।
और थमा है मेरा हाथ
सात जन्मों के लिए।
दिये है उन्होंने वचन
हर पल साथ निभाने के।
तभी से ही मुझे
ये रोग लग गया है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबईहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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