नागपंचमी इतिहास और उत्सव

नागपंचमी (3 अगस्त) पर विशेष फीचर

नागपंचमी इतिहास और उत्सव

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

भारत उत्सवधर्मी देश है। सावन में जब धरती हरियाली की चूनर ओढ़कर मौसम को सुहावना बना देती है तब त्योहार मनाने का मन होता है। श्रावण में शुक्ल पक्ष की तृतीया से ही त्योहार शुरू होते हैं। पंचमी को नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन गुड़िया पीटने की परम्परा भी है। लड़कियां पुराने कपड़े की गुड़िया बनाकर चैराहे पर डालती हैं और लड़के उन्हें रंगीन छड़ियों से पीटते हैं। इसके पीछे भी कथा है। तक्षकनाग के काटने से राजा परीक्षित की मोत हो गयी थी। समय बीतने पर तक्षक की चैथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चैथी पीढ़ी में ब्याही गयीं। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी अन्य को नहीं बताने के लिए कहा लेकिन महिलाएं बात को हजम नहीं कर पातीं। उस महिला ने ये भेद दूसरी महिला को बता दिया। धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गयी। तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर सभी लड़कियों को चैराहे पर इकट्ठा करके पिटवा दिया। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की परम्परा है। हालांकि इस संदर्भ में कुछ अन्य कहानियां भी हैं और आम धारणा है कि उत्साह और आनंद में इस तरह की प्रथाएं बना ली गयीं। नागपंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है और अगर किसी को नागों के दर्शन होते हैं तो उसे भी बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन घर में गोबर से नाग बनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजा को करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और सर्पदंश का डर भी दूर होता है। बता दें कि भारतीय संस्कृति में नागों का बेहद ही अहम और बड़ा महत्त्व है। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस बार नाग पंचमी 3 अगस्त को है। नाग पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा की जाती है। दीवार पर गेरू लगाकर पूजा का स्थान बनाया जाता है। साथ ही घर के प्रवेश द्वार पर नाग का चित्र भी बनाया जाता है। सुगंधित पुष्प, कमल व चंदन से नागदेव की पूजा की जानी चाहिए। खीर भी बनाई जाती है। इस खीर को ब्राह्मणों को परोसा जाता है, साथ ही सांप को भी दिया जाता है। इसी खीर को प्रसाद के तौर पर खुद भी ग्रहण किया जाता है। सपेरों को दूध और पैसे भी दिए जाते हैं। नागपंचमी के दिन नागों को दूध नहीं पिलाया जाता है। दूध से इनका अभिषेक किया जाता है। दरअसल, ऐसा कहा जाता है कि नागों को दूध पिलाने से उनकी मृत्यु हो जाती है। इससे व्यक्ति को श्राप लगता है। कई जगहों पर चूल्हे पर तवा भी नहीं चढ़ाया जाता है क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि नाग का फन तवे जैसा होता है और चूल्हे पर तवे को रखना मतलब नाग के फन को जलाना होता है। साथ ही इस दिन मिट्टी की खुदाई भी नहीं की जाती है।

भविष्यपुराण में पंचमी तिथि में नाग पूजा, इनकी उत्पत्ति और यह दिन खास क्यों है, इस बात का उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि जब सागर मंथन हुआ था, तब नागों को माता की आज्ञा न मानने के चलते श्राप मिला था। इन्हें कहा गया था कि राजा जनमेजय के यज्ञ में जलकर ये सभी भस्म हो जाएंगे। इससे सभी घबराए हुए नाग ब्रह्माजी की शरण में पहुंच गए। नागों ने ब्रह्माजी से मदद मांगी तो ब्रह्माजी ने बताया कि जब नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक होंगे, तब वह सभी नागों की रक्षा करेंगे। ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को नागों को उनकी रक्षा का उपाय बताया था। वहीं, आस्तिक मुनि ने भी नागों को यज्ञ में जलने से सावन की पंचमी को ही बचाया था। मुनि ने नागों के ऊपर दूध डालकर नागों के शरीर को शीतलता प्रदान की थी। इसके बाद नागों ने आस्तिक मुनि से कहा था कि जो भी उनकी पूजा पंचमी तिथि पर करेगा, उन्हें नागदंश का भय नहीं रहेगा। तब से ही सावन की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी मनाई जाती है।

भारत में पाई जाने वाली नाग जातियों और नाग के बारे में बहुत ज्यादा विरोधाभास नहीं है। भारत में आज नाग, सपेरा या कालबेलियों की जाति निवास करती है। यह भी सभी कश्यप ऋषि की संतानें हैं। नाग और सर्प में भेद है। कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें 8 पुत्र मिले जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हें ही नागों का प्रमुख अष्टकुल कहा जाता है। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के अष्टकुल क्रमशः इस प्रकार हैं- वासुकी, तक्षक, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंख, चूड़, महापद्म और धनंजय। कुछ पुराणों के अनुसार नागों के प्रमुख पांच कुल थे- अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगला। शेषनाग ने भगवान विष्णु तो उनके छोटे भाई वासुकी ने शिवजी का सेवक बनना स्वीकार किया था। इसीलिए नाग पूजा से पूर्व भगवान शंकर की पूजा की जाती है । इसके बाद घर पर ही चांदी के नाग नागिन के साथ इन आठ नागों- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक की पूजा करें। नाग पूजा के साथ ही नाग माता कद्रू, मनसा देवी, बलराम पत्नी रेवती, बलराम माता रोहिणी और सर्पो की माता सुरसा की वंदना भी करें। चांदी के नाग नागिन न हों तो एक बड़ी सी रस्सी में सात गांठें लगाकर उसे सर्प रूप में बना लें। फिर उसे एक आसन पर स्थापित करके उसपर कच्चा दूध, बताशा और फूल अर्पित करें। फिर गुग्गल की धूप दें। इस दौरान राहु और केतु के मंत्र पढ़ें। राहु के मंत्र ऊं रां राहवे नमः और केतु के मंत्र ऊं कें केतवे नमः का जाप बराबर संख्या में करें। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान करते हुए एक-एक करके रस्सी की गांठ खोलते जाएं। फिर जब भी समय मिले रस्सी को बहते हुए जल में बहा दें। इससे काल सर्पदोष दूर हो जाएगा। चांदी के दो सर्पों के साथ ही स्वास्तिक बनवाएं। अब थाल में रखकर इन दोनों सांपों की पूजा करें और एक दूसरे थाल में स्वास्तिक को रखकर उसकी अलग पूजा करें। सर्पों को कच्चा दूध चढ़ाएं और स्वास्तिक पर एक बेलपत्र चढ़ाएं। फिर दोनों थाल को सामने रखकर ऊं नागेंद्रहाराय नमः का जाप करें।

इसके बाद नागों को ले जाकर शिवलिंग पर अर्पित करेंगे और स्वास्तिक को गले में धारण करेंगे। ऐसा करने से सर्प भय और स्वप्न दूर हो जाते हैं। नाग की बजाय गाय को भी दूध पिलाया जा सकता है। नागपंचमी वाले दिन चांदी का बना नाग-नागिन का जोड़ा किसी विप्र को या किसी मंदिर में दान करना बेहद शुभ माना जाता हैं। इसके लिए जरूरी नहीं है कि बड़ा चांदी का नाग नागिन का ही जोड़ा हो आप पतले तार वाला भी बनवा सकते हैं। इससे आपकी आर्थिक तंगी दूर होकर आपको धन लाभ होने की संभावना बढ़ जाएगी।
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