जो लोग

जो लोग

       ---:भारतका एक ब्राह्मण.
          संजय कुमार मिश्र'अणु'
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चाहते नहीं देखना
वे दे रहे हैं
सूचना दर सूचना
कि इन्हे सुनना चाहिए
बात क्या है गुनना चाहिए
भले आपको लाख शिकायत हो
पर बाहर निकल घुमना चाहिए
जो सब दिन रहे दरवे में बंद
वे सुना रहे हैं मुक्त छंद
पर नहीं सुनना है मुझे तेरी बात
ध्यान देकर दिन और.रात
जो समझना है मुझे समझ लो
पर ऐसा उपदेश तुम मत दो
यदि चाहते हो तुम लोग मुझे सुनें
तो देखना शुरू करो चेहरा
किसीको मत समझो ऐरा गैरा
तुम देखोगे तो वो सुनेगा
नहीं तो क्यों सुनेगा तेरा गान
जब है हीं नहीं कुछ ध्यान
चाहे तुम लाख अच्छे हो
पर सामाजिकता में बच्चे हो
तुम सिर्फ जानते हो
नकि मानते हो
यदि पहले से जानते और मानते
तो ये इस्तेहार नहीं टांगते
कि आईये आपका स्वागत है
जबकि मन में नफरत है
सबमें स्वभाविक प्रेम जगाओ
तब सुनाओ
फिर तुम जिधर देखोगे
लोग तुम्हें सुनना पसंद करेंगें
नहीं तो देखना सुनना बंद करेंगें
तुम डालते रहो इस्तेहार पर इस्तेहार
वो नहीं करेगा कभी स्वीकार
तुम इधर देखोगे तभी हम सुनेंगें
नहीं तो दुसरी तरफ घूमेंगें
तुम रखे रहो अपनी काबिलियत
मेरे पास भी है खुद की मिलकियत
जैसा करोगे वैसा भरोगे
नहीं तो बेमौत मरोगे
करना सीखो सबका सम्मान
लोग रखेंगें निश्चित ध्यान
आदमी की बात छोड दिजिए
आजकल दीवारों के भी होते हैं कान
दीवारें सुनती है दीवारें बोलती है
अनुभूति बंद दरवाजे खोलती है
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वलिदाद,अरवल(विहार)८०४४०२.
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