सच में ‘हिजाब’ किसे चाहिऐ ?

सच में ‘हिजाब’ किसे चाहिऐ ?

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने छात्राआें का हिजाब पहनकर विद्यालय आना अथवा परीक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगाया हैपरंतु अब भी कुछ स्थानों पर हिजाब की अनुमति के लिए आंदोलन भी हो रहे हैं । कुछ हिजाबियों ने परीक्षा में बैठने से नकार दिया है । वास्तव में हिजाब की सक्ती किसे चाहिएइस प्रश्‍न का खुलासा करने के लिए एक अनुभव लिख रहा हूं ।

रेल्वे की हिजाबी कन्याओं से संवाद

     साधारणतः वर्ष 2017 की यह घटना है । मैं भाग्यनगर (हैदराबादमें एक कार्यक्रम के निमित्त से गोवा से रेल्वे से निकला । इस प्रवास के अंतर्गत हुबळी (कर्नाटकरेल्वे स्थानक पर तीन मुस्लिम छात्राएं और उनके अब्बाजान (संभवतदादाजी होंगे ।हमारी रेलगाडी में चढे ।  मेरे आसपास की सीटें इन चारों की होने से मेरी उनसे पहचान हुई । फिर वार्तालाप हुआ ।

      ये तीन कन्याएं ग्यारवीं कक्षा में पढ रही थीं और किसी परीक्षा के लिए भाग्यनगर (हैदराबादजा रही थीं । उनके अभिभावक के रूप में उनके साथ उन कन्याओं में से किसी एक के सगे-संबंधी आए थे । वे लडकियां उन्हें ‘अब्बाजान’ कह रही थीं । काले रंग का हिजाब पहनी तीनों कन्याएं बातूनी थीं । उनमें से एक तो संपूर्णतबुरखे में ही ढकी थीकेवल चेहरा खुला था । मैंने जिज्ञासावश उनसे पूछा, ‘हिजाब का अर्थ क्या है’ और ‘बुरखा क्या होता है?’ उनमें से एक के पिता मस्जिद में मौलाना थेइसलिए उसने विस्तार से इस संदर्भ में इस्लाम की जानकारी दी ।
मैंसे उससे पूछा, ‘तुम्हें यह सब कैसे पता ?’ तब उसने बताया कि उसके पिता मौलाना हैं और उन्होंने ही यह सब उसे सिखाया है ।

हिजाब एवं घूंंघट पर ‘गरम’ चर्चा !

       ‘‘गर्मियों के दिन हैं । मई महीने में तो अत्यंत गर्मी होती है । फिर काले रंग का स्कार्फ (हिजाबडालने से तुम्हें गर्मी नहीं लगती ?’’ तब उन तीनों ने ही कहा, ‘यह हमारे मजहब का फैसला है इसीलिए हमने हिजाब को अपनाया है ।’’ उनमें से एक ने आगे कहा, ‘आपके धर्म में भी तो घूंंघट डालते हैं । वैसा ही यह हिजाब है ।’’ संक्षेप में आपके और हमारे धर्म की सीख एक ही हैऐसा कहने का उसका निरर्थक प्रयत्न था !

      मैंने उन्हें ‘घूंंघटप्रथा भारत में कैसे आई’इस बारे में कुछ विस्तार से बताते हुए सुलतानी आक्रमकों द्वारा हिन्दू कन्याओं पर किए गए अत्याचारों का वर्णन किया । मैंने उन्हें बताया कि ‘‘घूंंघटप्रथादहशत के कारण आई । वह कभी हिन्दू धर्म में नहीं थी । हमारी सभी देवी मां कभी घूंघट नहीं डालती थीं’’यह सरल-सुलभ शब्दों में उन्हें बताया ।

       घूंघटप्रथा के लिए मेरे इस्लाम को दोष देने से उनमें से एक को क्रोध आया और वह कुछ क्रोधित स्वर में बोली, ‘‘आपने झूठी कहानी बताई है । यह देश पहले मुसलमानों का ही था । गांधी और नेहरू ने हमारे लोगों को पाकिस्तान भेज दिया ।’’ उसके ये वाक्य विद्यार्थीदशा के मुसलमान-मन को समझने के लिए पर्याप्त थे !

हिजाब’ किसे चाहिए ?

       अन्य दोनों और उनके अब्बाजान जिज्ञासा से हमारा वार्तालाप सुन रहे थे । मैंने उनसे कहा, ‘‘कई बार हमें मिली जानकारी सत्य ही हैऐसा नहीं होता । इसलिए उसके बारे में विचार मत करो । मुझे तो लगा था कि आपके अब्बाजान साथ हैंइसलिए आप लोगों ने इतनी गर्मी में भी यह काला स्कार्फ डाला होगा ।’’ मेरे ऐसा कहते ही उनमें से एक लडकी शरमाई । उतने में ही उनके अब्बाजान चर्चा में सहभागी होते हुए बोले, ‘‘मैंने किसी को मजबूर नहीं किया । यह तो उनका खुद का फैसला है ।’’ दूसरी लडकी ने भी कुछ बल देकर कहा, ‘‘यह हमारा खुद का फैसला है ।’’ तीसरी लडकी ने प्रांजलता से कहा, ‘‘मुझे मेरे अब्बा ने बताया है । वीं कक्षा तक हम नहीं पहनते थे ।’’

        कुछ समय पश्‍चात गुंटकल नामक रेल्वे स्थानक आ गया । यहां गाडी घंटे रुकनी थीकारण हमारी मुख्य गाडी बेंंगलोर जानेवाली थी और हमारे भाग्यनगर (हैदराबादके डिब्बे दूसरी गाडी से जोडे जानेवाले थे । गुंटकल स्थानक पर गाडी रुकने के पश्‍चात अब्बाजान उठे और इन कन्याओं से बोले, ‘‘मेरे पुराने रिश्तेदार यहां रहते हैं । मैं घंटे में वापस लौट आऊंगा । तब तक अपना ख्याल रखना ।’’ उनके गाडी से उतरने की निश्‍चिति होते ही वे तीनों ‘हिजाबी’ कन्याएं अपने-अपने स्थान से उठती हुई बोलीं, ‘‘भैयाहम घंटों में बाजार होकर आते हैं । अब्बाजान आने के पहले ही आ जाएंगे ॥’’

        गुंटकलयह नगर अलंकार एवं सौंदर्यप्रसाधनों के लिए प्रसिद्ध है । साधारणतः घंटों में ये लडकियां पुनरेलगाडी में चढ गईं । उन्होंने कर्णफूलगले की मालाकाली बिंदीक्लिप और छोटे-छोटे आइने खरीदे थे । रेलगाडी में चढने के उपरांत उन तीनों ने ही अपने-अपने ‘हिजाबी’ स्कार्फ उतार करएक ओर रख दिए और वे अलंकार परिधान किए । अलंकार परिधान करवे स्वयं को दर्पण में निहार रही थीं । तब मैंने हंसते-हंसते उनसे पूछा, ‘‘गुंटकल में यह शृंगारसामग्री सस्ती मिलती है क्या तीनों ही एकसुर में बोलीं, ‘‘भैया बहुत सस्ती ।’’ मैंने तुरंत पूछा, ‘‘पर इस्लाम में शृंगार जायज (वैधहै क्या ?’’ मेरा यह प्रश्‍न सुनते ही तीनों कन्याओं ने एक-दूसरे को देखा और कुछ शर्मा गईं । उनमें से एक के ‘‘नहीं’’ कहने का धैर्य दिखाते ही दूसरी बोली, ‘‘भैया हमने यह सामान खरीदा हैऐसा आप अब्बाजान को ना बताएं ।’’ मैंने अपनी गर्दन हिलाते हुए सहमति दीकारण उनकी विनती से ‘सच में हिजाब किसे चाहिए’इस प्रश्‍न का उत्तर मुझे मिल गया था ।
       शृंगारनारी का प्राकृतिक कर्म है । वास्तव मेंउसे नकार कर काले स्कार्फ में नारी को लपेटनेवालों की प्रवृत्ति के विरोध में नारीस्वतंत्रता अभियान होना चाहिएपरंतु यह आधुनिक नारीस्वतंत्रतावालों को कौन बताएगा ?


- श्री. चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था
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